विशाल दास, धर्म प्रचारक
आज से करीब 600 साल पूर्व भारत में तुर्क (इस्लाम) शासन के रूप में तप रहा था उसे अपनी खुदाई किताब कुरान पर गर्व था उसके ख्याल से गैर तुर्क (इस्लामी) काफिर हैं। अर्थात नरक के अधिकारी हैं इधर ब्राह्मण के पास ईश्वरीय ग्रंथ वेद था इन्हें इसका अभिमान था अतिमानवीय कल्पना मिथ्या अंधविश्वासों को जन्म देकर मानवीय मूल्यो को गिरा दिया था अज्ञानतावष हिंदू और मुसलमान परस्पर लड़ते थे ब्राह्मण एक वर्ग को शुद्र कहकर घृणा करते थे इस प्रकार मानव में प्रेम करुणा सत्यता मानो नहीं के बराबर थी राजाओं, नवाबों, और जमीदारों, का दमन चक्र प्रजापर चल ही रहा था पूरी मानवता त्रस्त थी तब भारत की अंतरात्मा किसी ऐसे त्राता को चाह रही थी जो सभी संकुचित विचारों से परे सास्वत सत्य को को बिना लाग लपेट के ज्यों का त्यों कह सके।
उपरोक्त संकटकाल में भारतीय नभ पर एक ऐसा सितारा चमका जो अपने ज्ञान लोक से सबको आलोकित कर दिया जिसे हम महान संत सम्राट सदगुरु कबीर के नाम से जानते हैं।
सदगुरु कबीर के प्राकट्य के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है परंतु कबीरपंथी परंपरा के अनुसार कबीर साहब का प्राकट्य (वाराणसी) काशी के लहरतारा में दिव्य कमल पुष्प पर हुये। उन्हें नीरू नीमा नामक जुलाहा दंपति ने लालन-पालन किये। काल विक्रम संवत 1455 तदनुसार सन 1398 को गुप्त काल विक्रम संवत 1575 तदनुसार सन, 1518 माना जाता है इस प्रकार सदगुरु कबीर की कुल आयु लगभग 121 वर्ष मानी गई है।
सद्गुरु कबीर साहब का व्यक्तित्व अथाह सागर है वे अपने जीवन काल में ही लोगों द्वारा महान संत सद्गुरु ही नहीं अपितु अलौकिक पुरुष के रूप में माने जाने लगे थे उनकी सुकीर्ति और उत्तर भारत ही नहीं पूरे भारत और आस-पास के देशों में भी उनके विचार पहुंच गए थे कबीर साहेब के सम सामयिक प्रसिद्ध भक्त पीपा दास जी गदगद होकर जो श्रद्धांजलि अर्पित की है वह अप्रतिम है उन्होंने कहा।
जो कली मांझ कबीर ना होते,। तो ले वेद अरु कलयुग मिल भक्ति रसातल देते।।
और कहा- नाम कबीर सांच परकाशा,। तहां पीपा कछू पायो ।। अर्थात यदि कबीर साहब कलयुग में नही होते तो वेद और कलयुग दोनों मिलकर भक्ति को रसातल में पहुंचा देते। मैं सद्गुरु कबीर के ज्ञान से ही कुछ प्राप्त किया हूं।
यहां पर ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पूज्य पीपा जी ने कबीर साहब के साथ कलयुग को जोड़ा है अत: कबीर दो-चार जिलों में नहीं वरन पूरे देश में छा गए थे। कलयुग से जोड़कर कबीर को समय की व्यापकता से जोड़ दिया है । कबीर साहब के निर्वाण गोरखपुर से लगभग 30 किलोमीटर पश्चिम दिशा मगहर नगर पंचायत मैं हुये उस समय मन घडत विचारधाराओं में काशी में मृत्यु होगी उसे स्वर्ग की प्राप्ति मगहर मृत्यु पर गधायोनि जैसे मिथ्या बताते कर्म के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति होगी। राजा वीरसिंह बघेला गुरु व बिजली खान पीर माने मगहर में आनुयायी हुये। सद्गुरु के निर्वाण स्थली आज भी प्रासंगिक है हिंदू समाधि बनाकर पूजा करते हैं वही मुसलमान मजार बनाकर नमाज पढ़ते हैं एक ही जगह पर स्थित है। समरसत्ता भाईचारे का संदेश मानवता के लिए जीता जागता उदाहरण है। व निर्वाण के 60,70 वर्ष पश्चात वैष्णव भक्त नाभा दास जी कबीर साहेब के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केवल छ: पंक्तियों में जो उ,दगार प्रकट किया है वह सार निचोड़ कर रख दिया है। कबीर साहेब के विश्लेषण में आज तक बनी हजारों पुस्तके इन 6 पंक्तियों का अनुवाद मात्र है उन्होंने कहा-
भक्ति विमुख जो धर्म, अधर्म करी गायों।
योग यज्ञ व्रत दान,भजन बिनातुच्छ दिखायो ।।
हिंदु तुरुक प्रमान, रमैनी
शब्दी साखी।
पक्षपात नहि किन, सबन के हित के भाखि।।
आरूढ़ दशा होय जगत पर मुख देखिन नाही भनि।
कबिर कानि राखि नही वर्ण आश्रम सट दर्शनी ।।
अर्थात : भक्ति विनम्रता कोमलता एवं निरविषय की स्थिति में पहुंचे बिना धर्म सार हीन है यही अधर्म है। सदाचार के बिना योग यश व्रत दान आदि सब निर्थक हैं। उन्होंने अपनी साखी शब्द रमैनी के माध्यम से हिंदू मुसलमान को सत्य बातें बताई उन्होंने पक्षपात रहित सबके कल्याण की बातें बताई। जगत में निरपेक्ष रहे किसी की मुख देखि बात नहीं कहीं। कबीर साहब सत्य कहने में वर्ण, आश्रम, षठशास्त्र, योग, जंगम, सेवड़ा, सन्यासी, दरवेश, और ब्राह्मण की मर्यादा नहीं रखी उपरोक्त वचन एक वैष्णव भक्त के मुख से निकला हुआ है बड़ा से बड़ा तार्किक, आलोचक, पारखी, भी इससे अधिक और क्या कह सकेगा इस प्रकार सत्य के प्रकाशन में विघ्न उत्पन्न करें, ऐसी किसी मान्यता मर्यादा को नहीं मानना ही कबीर साहब को आकर्षण का केंद्र बना दिया है
कबीर साहब मानवता के आदर्श थे सारी परंपराओं से हटकर सत्य के उपासक थे वे हिंदू के नहीं थे न मुसलमान के नहीं थे वे किसी के नहीं थे इसलिए वे सब के थे। सूरज चांद हवा के समान यह सब के थे वह पूरे मानवता के लिए रोते थे अवतार पैगंबर बनकर नहीं शुद्ध मनुष्य बन कर वास्तविकता की बात और अस्तित्व की व्याख्या करते थे
कबीर की वाणीयों से उच्च कोटि के संत जन स्वरूप स्थिति की खोज कर आत्मिक संतोष पाते थे मध्यम वर्ग के लोग उनकी वाणीओं से सत्य और सदाचार ग्रहण कर जीवन को सुधारते थे चरवाहे और हल चलाने वाले किसान उनकी वाणी यों को गा गा कर रिझा देते थे उनकी वाणियों में कैसी चटपटाहट और आकर्षण था सोचते ही बनता है
कबीर की महिमा बहुमुखी थी पारखी तो थे ही,। ब्रह्मवादियों के लिए ब्रह्मावादी, आर्य समाज के लिए आर्य समाजी, वैष्णवो के लिए वैष्णव, यहां तक की अवतारवादियों के लिए समर्थक, योगीयो के दृष्टि में महान योगी, कवियों के दृष्टि में महान कवि, महान समाज सुधारक एवं मानव एकता के शंखनाद करने वाले थे। सद्गुरु कबीर साहब इसलिए हिंदू के गुरु, मुसलमान के पीर, सिखों के भगत, और कबीरपंथीयो के लिए अवतारी कहलाए, तभी तो सभी गर्व से कहते हैं
हिंदू के गुरु मुसलमान के पीर,। सात द्वीप नौ खंड में सोहम, सत्य कबीर ।।
कबीर साहेब के प्रखर वाणी,
निष्पक्ष आलोचना और खरे ज्ञान से प्रभावित होकर श्रुतिगोपाल साहब, भगवान साहब, जागोदास साहब, और धर्मदास साहब, ने कबीर पंथ का विस्तार किया जितने भी साहब कहलाने वाले आचार्य हैं यह सब कबीर साहब से प्रभावित होकर आगे बढ़े जैसे- नानक, पलटू , घीसा, पीपा, आदि
अतएव आज के युग में भी कबीर साहब के विचार सभी क्षेत्रों में पहुंच कर सबको प्रभावित और प्रकाशित कर रहा है आज उनके उपदेश भले ही कई रंगों में हो गए हो, फिर भी चारों ओर से उनकी वाणी अंधविश्वास पाखंड और आडंबर को बिडायन करने वाली है उनका विरोध करने वाले भी उनसे रीझे बिना नहीं रह सकते
कबीर साहब के विचार जो संसार को मिले हैं यह केवल सामयिक ही नहीं वरन शाश्वत है आज कबीर को कुछ लोग ही नहीं, पूरा अस्तित्व स्वीकार कर रहा है और स्वीकार करता रहेगा।
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