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कोरोना महामारी की वजह से बीता वित्त वर्ष अर्थव्यवस्था के लिए बेहद निराशाजनक रहा, लेकिन संकुचन के बावजूद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में उल्लेखनीय वृद्धि भविष्य के लिए उत्साहवर्द्धक है। व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले साल (2020-21) एफडीआइ के रूप में 64 अरब डॉलर की राशि आयी। वित्त वर्ष 2019-20 के 51 अरब डॉलर के निवेश की तुलना में यह आंकड़ा 27 फीसदी अधिक है।
इस विश्व निवेश रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि महामारी की दूसरी लहर संभलती भारतीय अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है, लेकिन आधारों की मजबूती से निकट भविष्य के लिए सकारात्मक उम्मीदें हैं। दरअसल, यह उम्मीद ही वह कारण है, जिसके चलते निवेशकों ने पिछले साल भारत में इतनी बड़ी रकम लाने का जोखिम उठाया। यदि निवेश की वैश्विक स्थिति पर नजर डालें, तो निवेशकों का यह भरोसा बेहद अहम हो जाता है। महामारी से पहले के वित्त वर्ष में दुनियाभर में डेढ़ ट्रिलियन डॉलर का निवेश हुआ था, पर पिछले साल इसमें 35 फीसदी के गिरावट आयी और कुल निवेश एक ट्रिलियन डॉलर हो सका। भारत में इसके 27 फीसदी बढऩे की मुख्य वजह सूचना व संचार तकनीक से जुड़े उद्योग का विस्तार है। महामारी में घरों में बंद रहने के कारण विभिन्न गतिविधियों में डिजिटल तकनीक का दायरा बड़ी तेजी से बढ़ा है। इस क्षेत्र में भारत अग्रणी देशों में है और यहां इसका बाजार भी बड़ा है। पिछले कुछ सालों में डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसके कारोबार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सरकार ने अनेक नीतियों व योजनाओं का भी सूत्रपात किया है। इसमें स्टार्टअप से जुड़ी संभावनाओं को साकार करना प्राथमिकता है। निवेश आकर्षित करने में इन पहलों का बड़ा योगदान रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर जोर देने से भी निवेशक आकर्षित हुए हैं। विदेशी निवेश आने के साथ यह भी उल्लेखनीय है कि दूसरे देशों में भारत से होनेवाले निवेश में एक अरब डॉलर की कमी आयी है। इसका मतलब यह है कि यह राशि में देश के भीतर निवेशित है। यूरोपीय संघ और अफ्रीकी देशों से होनेवाले मुक्त व्यापार समझौते के बाद इसमें बढ़त की संभावना है। इससे विदेशी निवेशकों के साथ करार की संभावनाएं भी बढ़ेंगी, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद होंगे। महामारी ने चीन पर बहुत हद तक आश्रित वैश्विक आपूर्ति शृंखला से जुड़े जोखिम को भी उजागर किया है। चीन के भू-सामरिक पैंतरों ने भी अंतरराष्ट्रीय चिंता को बढ़ाया है। ऐसे में कुछ देशों को आर्थिक, औद्योगिक और वित्तीय दृष्टियों से अधिक सकारात्मक माना जा रहा है, जिनमें भारत भी शामिल है। व्यापार सुगमता और नीतिगत स्थायित्व को सुनिश्चित करने से भी भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास बढ़ा है। यदि सुधारों का सिलसिला जारी रहे तथा नियमन में अधिक स्थिरता व पारदर्शिता हो, तो निवेश में वृद्धि आगे भी बनी रहेगी।