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दिक्कत बस यह है कि विपक्ष की एकजुटता या उनमें समन्वय का लक्ष्य महज बातचीत से हासिल नहीं होने वाला। इस प्रक्रिया में शामिल तमाम छोटी-छोटी पार्टियां और नेता अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन का विस्तार करने का मकसद भी साथ लिए चल रहे हैं, जो मौजूदा हालात में आम तौर पर कांग्रेस की कीमत पर ही संभव है।
एनसीपी प्रमुख और राष्ट्रीय राजनीति के कद्दावर नेता शरद पवार के घर पर मंगलवार को हुई 'लाइक माइंडेडÓ लोगों की बैठक विपक्षी एकता की दिशा में कितनी बड़ी पहल है, इस सवाल पर जाने से पहले यह देख लेना ठीक होगा कि खुद इस पहल से जुड़े लोग इसे कितनी अहमियत दे रहे हैं। जिन शरद पवार के घर यह बैठक हुई, वह खुद को मेजबान तक मानने को तैयार नहीं। कहा जा रहा है कि बैठक के लिए आमंत्रण यशवंत सिन्हा ने भेजा था, इसलिए बैठक उन्हीं की बुलाई हुई मानी जाएगी। जिनकी बुलाई हुई बैठक थी, वह भी बैठक के बाद मीडिया के सामने नहीं आए। जो लोग मीडिया के सामने आए, उनकी भी ज्यादा मेहनत यही साबित करने में लगी कि यह कोई राजनीतिक बैठक नहीं थी, न ही इसका मकसद विपक्षी दलों का कोई साझा मोर्चा वगैरह बनाना था। यह भी कहा गया कि भले कांग्रेस से कोई इस बैठक में शामिल नहीं हुआ, लेकिन इसका मतलब यह न माना जाए कि यहां कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकता की खिचड़ी पकाने का कोई प्रयास हो रहा था। बहरहाल, इन तमाम सफाइयों और स्पष्टीकरणों से बैठक की अहमियत कम नहीं होती, इनसे सिर्फ यह अंदाजा मिलता है कि विपक्ष की राजनीति की जटिलता आज कितनी बढ़ गई है।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों ने निश्चित रूप से विपक्षी खेमे का हौसला बढ़ाया है। उसे 2024 लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ बीजेपी और एनडीए को हराने का लक्ष्य अब पहले जैसा नामुमकिन नहीं लग रहा। लेकिन आम चुनाव से पहले यूपी विधानसभा चुनाव में खासी जोर-आजमाइश होगी। ऐसे में वे तमाम ताकतें जो बीजेपी को सत्ता से बाहर देखना चाहती हैं, अगर आपस में संवाद और समन्वय के सूत्र मजबूत कर रही हैं तो यह आश्चर्य की कोई बात भले न हो, महत्वपूर्ण जरूर है। अक्सर ऐसे छोटे-छोटे प्रयासों का बड़ा नतीजा निकलता है। दिक्कत बस यह है कि विपक्ष की एकजुटता या उनमें समन्वय का लक्ष्य महज बातचीत से हासिल नहीं होने वाला। इस प्रक्रिया में शामिल तमाम छोटी-छोटी पार्टियां और नेता अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन का विस्तार करने का मकसद भी साथ लिए चल रहे हैं, जो मौजूदा हालात में आम तौर पर कांग्रेस की कीमत पर ही संभव है। जाहिर है, कांग्रेस स्वेच्छा से तो इसे मंजूर नहीं कर सकती। ऐसे में स्पष्ट है कि बातचीत, विचार-विमर्श और मेलजोल के बीच आपस में शक्ति परीक्षण की प्रक्रिया भी चलती रहेगी। 'तुम्हीं से दोस्ती और तुम्हीं से लड़ाईÓ की मौजूदा मजबूरी का ही नतीजा है कि कांग्रेस को साथ न रखते हुए भी साथ बताया जाए और कांग्रेस अलग रहते हुए भी खुद को अलग न बताए। बहरहाल, इन्हीं जटिलताओं के बीच और ऐसी ही प्रक्रिया से विपक्षी एकता का कोई स्वरूप उभरेगा।