महाभारत के विराट पर्व में जब कीचक-वध के बाद सुशर्मा और कौरव सेना ने मिलकर विराट नगर पर हमला कर उनकी गायें चुरा ली थीं। उस समय युद्ध व्युह में फंसकर जब विराट नरेश और चारों पाण्डव सुशर्मा से युद्ध कर रहे थे, तब दूसरी ओर से कौरव सेना ने विराट नगर पर हमला कर दिया था। ऐसे में अर्जुन ने अपना बृहन्नलला का रूप त्यागकर गाण्डीव उठाया और राजकुमार उत्तर को सारथी बना कर अकेले ही कौरव सेना का समाना करने चल पड़े। अर्जुन ने कौरवों से द्यूत क्रीड़ा के अपमान का बदला लिया और एक-एक करके अकेले ही सभी कौरव योद्धाओं को रणभूमि छोडऩे पर मजबूर कर दिया।
अर्जुन का युद्ध के लिए शंखनाद : अर्जुन का देवदत्त शंख रणभूमि में गूँज उठा। शंखनाद सुनकर दुर्योधन ने भीष्म पितामह से कहा- यह तो अर्जुन के देवदत्त शंख की ध्वनि है, अभी तो पाण्डवों का अज्ञातवास पूरा समाप्त नहीं हुआ है। अर्जुन सबके सामने आ गया है, इसलिए शर्त के अनुसार पाण्डवों को पुन: 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास करना होगा। दुर्योधन की बात सुनकर भीष्म पितामह ने कहा- दुर्योधन, पाण्डवों को काल गणना का ज्ञान है, अवधि पूरी किए बिना अर्जुन सामने नहीं आएगा। मैंने भी काल गणना की है कि पाण्डवों के अज्ञातवास की अवधि पूरी हो चुकी है। कर्ण, द्रोण और भीष्म की पराजय : दुर्योधन को क्षत-विक्षित देखकर कर्ण, द्रोण, भीष्म आदि सभी कौरव वीर उसकी ओर दौड़ पड़े। कर्ण को आता देखकर अर्जुन ने कर्ण पर इतने बाणों चलाए कि उसके रथ, घोड़े और सारथी सभी घायल हो गए, अंतत: कर्ण को भी मैदान छोड़कर जाना पड़ा। कर्ण के युद्ध भूमि से जाते ही भीष्म और द्रोण एक साथ अर्जुन से युद्ध करने लगे। एक-एक करके सभी कौरव योद्धा मैदान छोड़ कर जाने पर मजबूर हुए। कौरवों को इस प्रकार युद्ध भूमि से जाता देख अर्जुन और राजकुमार उत्तर ने विजयशंख बजा दिया।
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