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अहमदाबाद। उत्तराध्ययन सूत्र में सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययन भगवती सूत्र के समान है। इस अध्ययन के एक एक प्रश्न का जवाब बहुत ही सुंदर रूप से परमात्मा महावीर ने दिया है। आज के अध्ययन का प्रश्न है मन की समाधारणा यानी मन को आगम में बताए हुए भावों के चिंतन में भली भांति संलग्न रखने से जीव को क्या प्राप्त होता है? पहले हम धारणा शब्द का अर्थ जान लेते है कि एक चीज का रटन करना वह एक प्रकार की धारणा है। अच्छी तरह से धारणा करना वह समाधारणा है। लोग कहते हैं बगुला ध्यान में खड़ा हुआ धारणा कर रहा है उसकी यह धारणा सम्यक् धारणा नहीं है क्योंकि वह मछली के इंतजार में खड़ा है। मछली आती है उसे पता भी न चले उस प्रकार से उसे पकड़कर उसे अपना खुराक बनाता है। इस प्रकार की अनेक धारणा चलती रहती है।
अहमदाबाद में बिराजि प्रखर प्रवचनकार संत मनीषी, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि मन तो अनेक समाधारणा करके अनेक प्रकार के कार्यों कर सकता है, अनेक प्रकार के आश्चर्यों भी कर सकता है तथा अनेक प्रकार की सिद्धि भी मिला सकता है। इस समाधारणा से जीव क्या प्राप्त करता है? इस समाधारणा से लौकिक सिद्धि मिलती है। कोई एक धनुर्धर अपराधी साबित हुआ। राजा ने बिना कुछ सोचे उसे फांसी की सजा देने की आज्ञा की। नगर के लोगों ने राजा से कहा, इतने होशियार धनुर्धर आपको पूरे देश में कहीं नहीं मिलेगा। आप इतनी  क्रूर शिक्षा उसे न दो। उसकी भूल होगी तो वह सुधार लेगा। राजन् आप किसी का जीवन ले सकते हो मगर किसी को जीवन वापिस दे नहीं सकते। लोगों के कहने से राजा कुछ शांत हुए और उस धनुर्धर को अपने पास बुलाकर कहा, जो शक्तिशाली तिरंदाज! आप अपने आठ वर्ष के लड़के को किसी पेड के नीचे खड़ा रखकर उसके सिर पर नीबू रखना है लड़के को किसी भी प्रकार की ईजा पहुंचाए बगैर बींधना है। धनुर्धर को अपनी इस कुशल कला पर विश्वास था मगर अपने पुत्र के स्नेह के कारण वे कुछ डर गए। तब लड़के ने अपने पिता को हिम्मत देकर कहां, पिताजी आप अपना कार्य करना में जरा भी नहीं हिलूंगा। आखिर में उस तिरंदाज ने धारणा से नींबू को बींधा और जीत मिलाई द्रोणाचार्य भक्ति कर रहे थे तब एकलव्य ने देखा, पहुंचे इसलिए वहां एक कुत्ता बैठा था। एकलव्य ने कुत्ते जरा सा भी खूब न निकला और वह स्थिर खड़ा रहा कहते है, मन की धारणा से जीव एकाग्रता को प्राप्त करता है। 
आनंदघनजी ने अपने काव्य में बताया, चार पांच सखियां अपने मस्तक पर सात सात घड़े उठाकर चल रही है। एक दूसरे को ताली देती जाती है और खिलखिलाहर हंसती रहती है मगर इस तरह से साधारणा कर रखी है कि घड़े स्थिरता से उसके मस्तक पर है। ऐसे ऐसे तो कई प्रकार के आश्चर्यकारी घटना इस समाधारणा से बनें है।
सौमिल ससुर ने गजसुकुमाल के मस्तक पर अंगारे से भरी हुई सगडी बांदी मगर वे अपने ध्यान से चलित नहीं हुए। हाथी कुंड में खड़ा है अचानक उसके पैरों में खाज आई। उसने अपना एक पैर ऊंचा किया तभी एक खरगोश अपनी जान बचाने उस खाली जगह पर आकर खड़ा हुआ। हाथी ने देखा यदि मैं अपना पैर नीचा रखूंगा खरगोश दबकर मर जाएगा उसे खरगोश की जान बचाने वे एकाग्रता से खड़े रहे। पूज्यश्री फरमाते है मन की समाधारणा करना कोई सामान्य बात कहीं। मन की समाधारणा से किसी भी व्यक्ति में सुन्दर एवं शुद्ध एकाग्रता आती है। इस एकाग्रता से मन शक्ति बढ़ती है। जब वह किसी भी प्रकार की क्रिया करता है। तब सभी इन्द्रियां उसमें संलग्न बन जाती है।
मन की समाधारणा से मोहनीय कर्म दूर होने के साथ ही ज्ञान के पर्याय प्राप्त होते हैं। जब जब ज्ञान के पर्यायों प्राप्त होते हैं तब तक आगम के रहस्य अपने आप से खुल जाते हैं। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है आप मन की समाधारणा से सुन्दर स्वाध्याय करो। कहते है पूर्व के काल में जब वाद होते थे तब ऐसी ऐसी स्पर्धा होती थी कि ओष्ठ व्यंजन का कोई भी अक्षर इस वाद के दौरान नहीं आना चाहिए यदि आ गया तो उसकी हार होती थी तब वाद करने वाले मन की समाधारणा से एकाग्रता पूर्वक वाद करके जीत मिलाते थे।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते हैं कि ज्ञान पर्यायों को प्राप्त करके सम्यग् दर्शन को विशुद्ध करता है और मिथ्या दर्शन की निर्जरा करता है। बस, आप भी मन को अपने हाथ में रखकर समाधारणा पूर्वक एकाग्रता मिलाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।