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योगिनी एकादशी सभी एकादशी व्रत में महत्वपूर्ण है, ये आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ती है। इस वर्ष योगिनी एकादशी का व्रत 04 जुलाई, दिन रविवार को रखा जाएगा। इसके बाद शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार मास को लिए योग निद्रा में लीन हो जाते हैं, जिसे चतुर्मास कहते हैं। चतुर्मास में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। सभी एकादशी व्रत की तरह योगिनी एकादशी का व्रत भी भगवान विष्णु को समर्पित है परंतु इस व्रत का कुछ विशेष विधान हैं, आइए जानते हैं उसके बारे में...
योगिनी एकादशी के व्रत का विधान : योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के व्रत और पूजन का विधान है। इस दिन भक्त अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य अनुसार फलाहार या निर्जल व्रत भी रखते हैं।
विधान के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत दशमी की तिथि से ही प्रारंभ हो जाता है तथा द्वादशी तिथि पर व्रत का पारण किया जाता है। एकादशी के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, बल्कि एक दिन पूर्व दशमी तिथि पर सूर्यास्त के बाद अन्न ग्रहण न करें। योगिनी एकादशी पर सात्विक भोजन और भोग ही लगाना चाहिए। इस दिन जो लोग व्रत नहीं भी रख रहे हों, उन्हें चावल नहीं खाना चाहिए।   एकादशी के व्रत के दिन झूठ बोलने से परहेज करें तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दिन घर के किसी भी सदस्य को मांस, मदिरा आदि तामसिक भोजन से बचना चाहिए। एकादशी के व्रत के दिन बाल कटवाना तथा झाड़ू लगाना शुभ नहीं माना जाता है। 
योगिनी एकादशी व्रत के पारण पर ब्राह्मण को भोजन कराना या सीधा दान करने का प्रवधान है। योगिनी एकादशी व्रत का महत्व बताते हुए स्वयं भगवान कृष्ण ने इस व्रत को 88 हजार ब्राहम्णों को भोजन कराने के समतुल्त माना है।   
पौराणिक कथा के अनुसार, योगिनी एकादशी का व्रत रखने से कुष्ठ रोग से भी मुक्ति मिलती है तथा व्यक्ति को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।