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अहमदाबाद। आज प्रात: शुभ घड़ी में गच्छाधिपति महाग्रंथ विमोचन प्रसंगे शोभायात्रा महेन्द्रभाई पोपटलाल महेता के गृहांगण से प्रारंभ होते हुए ओपेरा हाउस मणिभुवन आई। गच्छाधिपति लब्धि विक्रम गुरू कृपा प्राप्त प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा, तपागच्छाधिपति प.पू.आ.देव. मनोहर कीर्ति सूरि महाराजा के शिष्य पू.आ.देव उदय कीर्ति सागर सूरि महाराजा तथा भुवनभानु समुदाय के पू.आ.देव. हेमचंद्र सूरि महाराजा तथा युवान प्रतिबोधक प.पू.आ.देव वीतराग यश सूरीश्वरजी महाराजा आदि अनेक साधु-साध्वी की शुभ निश्रा में मणि भुवन में उर्जा का आविर्भाव महाग्रंथ का विमोचन हुआ।
इस ग्रंथ एवं शोभा यात्रा के लाभार्थी प.पू.आ. देव लब्धि सूरि महाराजा के लाडीले परम भक्त महेंद्रभाई पोपटलाल महेता ने लाभ लिया। आज के इस कार्यक्रम की शुरूआत सुप्रसिद्ध संगीतकार सनी शाह ने संगीत पूर्वक गुरूवंदना की।
अहमदाबाद में बिराजि प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है एक एक गुरु भगवंत को इतिहास जानती है कि वे शासन समर्पण की गौरव गाथा है, तप एवं त्याग की महान शक्ति के धारक है, सहनशीलता एवं वीतरागीता की शक्ति का प्रकटीकरण करते हैं। जैन इतिहास एवं गुरु भगवंतों की एक-एक बात जानकर ह्रदय आनंद से भर जाता है। ये महापुरूष ही समस्त विश्व को अपरिग्रह-अनेकांत एवं अध्यात्म के मूल्यों को समझाते है।पूज्यश्री फरमाते है वर्तमान विश्व में जैनों की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। कहते है, परिवार के अंदर जो व्यक्ति ज्यादा समझदार होता है उसी के ऊपर जिम्मेदारी डाली जाती है। समझदार व्यक्ति ही परिवार की जिम्मेदारी लेता है इसी तरह आचार्य पद गच्छाधिपति पद धारण करने से कुछ नहीं होता, पद के मुताबिक योग्य पुरूषार्थ करने से ही कार्य होते है। साधु-साधु भगवंत के योग्य कार्य करते है इसी तरह श्रावकों को भी अपने योग्य कार्य करने चाहिए। हेमचंद्राचार्यजी को कुमारपाल मिले तो शासन के अनेक कार्य हुए तो इस ओर आर्य सुहस्ति महाराजा को संप्रति राजा मिले तो शासन के अनेक कार्य कर सके। हमें सिर्फ गच्छ-समुदाय एवं संप्रदाय तक ही सीमित नहीं रहना है जैनं जयति शासनम् का नाद गुंजाने के लिए इन सब से ऊपर उठकर हरेक को साथ लेकर चलना होगा। छोटे छोटे मतभेदों में नुकसान संभावित है। लब्धि सूरि महाराजा हमेशा कहा करते से धर्मचक्र चलाने के लिए एक ही सूत्र जरूरी है वह है जैनं जयति शासनम्। पूज्यश्री फरमाते है दानवीर जगडूशाह को याद करो। गुरूभगवंत के एक ईशारा काफी था। गुरूभवगंत ने कहा था दुष्काल पड़ेगा। लोग भूख से मरेंगे सिर्फ गुरूभगवंत की बात को अमल में लेकर उन्होंने अनाज का संग्रह करके रखा तो दुष्काल में लोगों को मरने से बचा सके।कहते है एक बार पानी की टैंकर को किसी ने पूछा, आज इस टैंकर में पानी किसके लिए भरकर ले जा रहे हो तब टैंकर ने जवाब दिया मैं यह पानी अपने लिए नहीं बल्कि दुनिया को सप्लाई करने हेतु पानी भरा है कहने का तात्पर्य है आपके पास जो है उसे ओरों को भी दिया करो। कर्ण दानेश्वरी की बात आती है वह मरण शय्या में पड़ा है। लोगों के मुख से दान की बात सुनकर एक गरीब कर्ण के पास आया। कर्ण के पास देने के लिए कुछ नहीं है। इस गरीब आदमी ने कर्ण से कहा, मेरी लड़की की शादी करनी है। आपके पास इस आशा से आया कुछ मिलेगा। अचानक कर्ण को कुछ याद आया। गरीब से कहां, जाओ पत्थर का एक टुकड्डा ले आओ वह आदमी टुकड्डा ले आया। उस पत्थर से अपने दांत में रहे हुए सोने को निकालकर दिया उसे खाली नहीं भेजा। बस, अपने जीवन में भी इन महापुरूषों से यही सिखना है जो कुछ अपने पास है उनमें से ओरों को देखकर अपने जीवन को सार्थक करो।आज इस प्रसंग पर पधारे हुए पू.आ.देव कल्याम बोधि सूरिजी एवं पू.आ..देव उदय की कीर्ति सागर सूरि महाराजा ने भी सभा को उद्बोधन करते हुए फरमाया, सेवा-भक्ति एवं पुण्य से ही हमें ऐसे आचार्य भगवंत मिलते है। पुण्य के बगैर, योग्यता के बगैर उर्जा का आविर्भाव प्राप्त नहीं होता है गुरू की भक्ति एवं गुरू की सेवा से ही आचार्यों में उर्जा का आविर्भाव प्रकट होता है। कहते है उर्चा नि:स्वार्थ भाव से आती है। पूज्यश्री राजा-महाराजा के नाम से जाने जाते थे वह भी एक कृपा का घोत है। पूज्यश्री शासन के कोई भी अगत्य कार्य हो वे आमंत्रण की राह नहीं देखते थे। बिना किसी आमंत्रण के भी पू.हेमचंद्राचार्य जी की गुणानुवाद में पधारे उनकी यह उदारता है तथा इतने बड़े गच्छाधिपति पद पर प्रतिष्ठित होते हुए भी स्वाभिमान रखे बगैर अपने अन्यकार्य को गौण करके पधारे से पूज्यश्री की महानता एवं नि:स्पृहता है पूज्यश्री की सरलता एवं सादगी से ही जिन शासन  की यह यश पताका फैली है।  पूज्यश्री ने लब्धि सूरि एवं विक्रम सूरि की कृपा से ही यह उर्जा पाकर जिन शासन के अनेक कार्यों में सफलता पाए है। सभा को उद्बोधन करते हुए अंत में फरमाया प्रभु न बनो वहां तक प्रभु के बनकर रहो गुरू के चरण में रहना है तो बालक बनकर रहो ट्रस्टी बनकर आओंगे तो सिर्फ कुर्सी ही मिलेगी। बालक बनकर आप आओंगे तो गुरू की गोद मिलेगी। बस, बालक बनकर गुरू की गोद पाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।