
अहमदाबाद। परम मंगलकारी महापुण्य के उदय से हमें मनुष्य जन्म की प्राप्ति हुई है। हरेक मनुष्य को पांच इंद्रियां है। इन पांच इंद्रियों को अन्य लोग अलग तरीके से देखते है लेकिन शास्त्रकार महर्षि इन पांच को ज्ञान का महान साधन मानते हैं। मानलो किसी चीज भी चीज का रस जानना हो तो पदार्थ को जीभ पर रखने से ही वस्तु का ख्याल आता है। सुगंधी चीज को जानने के लिए नाक के पास उस पदार्थ को लाना पड़ेगा। किसी दृश्य को देखने के लिए भी उस चीज को आंख के पास लाना होगा। कहीं से कुछ आवाज आ रही है तो वह क्या चीज है इसे जानने के लिए शब्द को कान तक लाना पड़ेगा। इस प्रकार से ये पांच इंद्रियां हमारे ज्ञान का साधन बनी है।
अहमदाबाद में बिराजि प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है ज्ञान रूपी रूम में पांच खिड़कियां है। आप खिड़की को बंद रखोंगे तो प्रकाश नहीं आएगा और आप यदि खिड़की को खुल्ली रखोंगे तो एक तकलीफ जरूर होगी प्रकाश तो आएगा मगर प्रकाश के साथ हवा के रजकण आएगें कचरा आएगा अशुद्धि भी जाएगी। एक तरफ खिड़की खुल्ली रखे बगैर भी नहीं चलता। कहते है ये कचरा यानि मोह है अच्छी चीज देखी तुरंत लेने का दिन करता है। सद आया विवेक छोड़कर खाने की इच्छा होती है। सुगंध आई पागल बन जाते हो। अच्छा दृश्य देखने में आया मन वहां से हटने के लिए तैयार नहीं। चीज की ओर कान में पड़े मन तल्लीन बना अन्य चीज की ओर ध्यान नहीं देता ये पांच ज्ञान देने वाली इंद्रियां थी परंतु अब ये पांच इंद्रियां गुलाम बन गई है।
पूज्यश्री फरमाते है रूम में कचरा आया हताश होने की जरूरत नहीं। समझदार व्यक्ति कचरे को तुरंत साफ कर देता है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है पांच इंद्रियां से हमें ज्ञान मिलाना है संसार में परिभ्रमण नहीं करना है। प्रतिक्षण सावधान रहना है। पदार्थ आपके सामने आया आप उसे देखकर ये सुगंधी है ये खट्टा है। मीठा है वो अच्छा है कड़वा है वो खराब है। कठिन स्पर्श खराब है, कोमल स्पर्श वो अच्छा है। ज्ञानेन्द्रिय को इंद्रियां मलीन बनाती है। इसीलिए प्रतिक्षण इंद्रिय जब विषय को ग्रहण करती है तब ध्यान रखना है।
अंग्रेजी में कहावत है, ब्यूट्री इस टू सी, नॉट टू टच सौन्दर्य सिर्फ देखने के लिए ही है उसे छूने के लिए मिथ्या प्रयत्न मत करो। दो मित्र बगीचे का आनंद मिलाने गए। एक पेड़ पर नये नये ताजे फूल आए थे। बहुत ही सुंदर लग रहे थे। एक मित्र ने उस फूल को देखकर कहा, फूल कितना अच्छा है तभी दूसरे मित्र ने उस फूल को डाली से चूंट लिया। पूज्यश्री फरमात ेहै सृष्टी को अपने तरीके से विकसने दो अनादिकाल का मोह हमें तकलीफ देता है। ज्ञानेन्द्रिय मोहेन्द्रिय बन जाती है।
हमारे जीवन में ज्ञानेन्द्रिय मुक्त बनने का साधन है परंतु मूर्ख आदमी जिससे मुक्ति मिलती है उससे बंधन पाता है तथा समझदार आदमी जिससे बंधन है उससे वह मुक्ति को पाता है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है, इन्द्रिय कैसी भी हो हमें उन पर विजय मिलाना है। सेठ अपने नौकर को अपनी आज्ञा में रखता है रस, इसी तरह पांच इंद्रियां को अपनी आज्ञा में रखो। से परमात्मा बनकर इंद्रिय के स्वामी बनों। परमात्मा इंद्रिय के स्वामी बनें हम तो परमात्मा के सेवक हैं। बस, इंद्रिय के स्वामी बनकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।