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अहमदाबाद। परम मंगलकारी महामूल्य मनुष्य भव को पाकर मानव मौज शोक विषयों में आसक्त बनकर अपनी जीवन पसार कर रहा है। कहते हैं कि विषयों से कषाय उग्र बनते हैं। वैसे ही कषाय से विषयों का खिंचाव होता है। इन विषय एवं कषाय के खेल के कारण ही मानव संसार की ओर खींचा चला जाता है। उसका मोक्ष नहीं होता है। मानव अनेक भवों में जन्म-जरा-मरण करते हुए परिभ्रमण करता है इसका कारण ही कषाय एवं विषय है।
अहमदाबाद में बिराजि प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है जैन शास्त्र में इन कषायों पर सुन्दर चिन्तन किया गया है। अब तक हमें इन कषायों पर विश्वास रहता था कि मैं क्रोध करूंगा तो कोई मुझसे दब जाएगा। मैं किसी के ऊपर प्रहार करूंगा तो बात का अंत आ जाएगा। मैं यदि किसी का खराब करूंगा तो वो मेरा नाम कभी नहीं लेगा। यह एक भ्रम है। आप क्रोध करके किसी को दबाना चाहते है लेकिन कुछ समय के बाद क्रोध का आक्रमण जब तुम पर होगा तब तुम हताश हो जाते हो। हिंसा एवं प्रतिकार करने के लिए तैयार हो जाते हो। पूज्यश्री फरमाते है मानव में जब व्यग्रता आती है तब वह अपनी शक्ति के मुताबिक संग्राम रचता है युद्ध में कितने निर्दोष सैनिक अपने पेट का पोषण हेतु युद्ध में भाग लेते है। एक राजा के क्रोध के कारण ही उसकी इच्छा-महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए अपने जीवन का बलिदान देते है।
पू. उदयरत्न सूरि महाराजा ने क्रोध की सज्झाय में बताया आग उठे जे घर थकी ते पहेलु घर बाले जल नो जोग जो नवि मले तो पासेनुं परजाले। घर में जब आग लगती है जहां आग लगी वह घर तो जलता ही है परंतु जब उसआग को बूझाने पानी नहीं मिला तो वह पड़ोसी का घर भी जलाकर रहता है इसी तरह क्रोधी व्यक्ति क्रोध करके अपना तो नुकसान करती है है साथ ही साथ ही अन्य को भी नुकसान पहुंचाती है।
क्रोध बार बार मानव को क्यों आता है किस कारण क्रोध आता है इसका पृथककरण करके देखना होगा बाह्र दृष्टि से देखे तो हरेक के जीवन में क्रोध आने के अनेक निमित्त है। किसी चिंतक ने बताया, क्रोध इन तीन प्रसंगों में अवश्य आता है। जब व्यक्ति थका हुआ है हारा हुआ है एवं भूखा है तब क्रोध जल्दी आता है। सहन नहीं होता है तो उस वातावरण से दूर रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
एक बार छोटा बच्चा चलते हुए गिर गया। बच्चा गिरते ही रोने लगा। मां उसे चूप रखने के लिए उस लड़के के पास आई और कहां बेटा! जमीन ने तुझे लात मारके गिरा दिया। तुं भी एक काम कर उस जमीन को तुं भी लात मार दे। मां की बात सुनकर लड़का भी जमीन को दो चार लाते मारकर आता है और खुश होता है। ये तो लड़के के मानसिक संतोष के लिए हुआ। ये जो वृत्ति अपनाई गई थी वह वृत्ति अज्ञान की वृत्ति है, बदला लेने की वृत्ति हुई।
पूज्यश्री फरमाते है इस प्रकार की वृत्ति पर चौकस विजय मिलाना है। अत्यंत परिश्रम करने से भी शरीर थक जाता है जिसके कारण गुस्सा बहुत आता है। एक बात समझ लेना है इस सृष्टि में हरेक संजोग अपनी अनुकूलता के मुताबिक नहीं होते है। जीवन में शांति चाहिए-मन शांत रखना है तो आपमें सहनशीलता हो तभी तप करना। तप करने के बाद भूख के कारण-अत्यंत परिश्रम के कारण गुस्सा आ सकता है। ज्यादा परिश्रम किया हार जीत का प्रश्न आ सकता है, हार गए तो गुस्सा आता है। जीत किसी की शाश्वत नहीं वैसे ही हार भी किसी का शाश्वत नहीं है अे तो संसार के चक्र की तरह चलता है। अपनी हार हुई तो समझ लेना अपे ही कर्मो का यह फल है। कभी भी क्रोध के प्रवाह में आना नहीं। बस हर प्रसंगों में मन को शांत रखकर, सहनशील बनकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।