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केंद्रीय मंत्रिमंडल में बदलाव न केवल स्वाभाविक, बल्कि जरूरी सा हो गया था। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली इस दूसरी सरकार ने जहां अनेक महत्वपूर्ण फैसले लेकर दुनिया को चौंकाया, वहीं कुछ ऐसे मोर्चे भी रहे, जहां संतोषजनक परिणाम हाथ नहीं आए। अनेक दिग्गज मंत्रियों के इस्तीफे और कई नए नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल करने के पीछे के जो संकेत हैं, उनकी विवेचना जरूर होनी चाहिए। सरकार को यह यथोचित एहसास है कि उससे लोगों को कहीं ज्यादा उम्मीदें हैं। विशेष रूप से चिकित्सा के मोर्चे पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और राज्य मंत्री के स्तर पर बदलाव साफ इशारा है। कोरोना ने पूरी अर्थव्यवस्था को तबाह किया, साथ ही, चिकित्सा व्यवस्था भी लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। मंत्रिमंडल में बदलाव की कुल व्यंजना यही है कि सरकार अपना चेहरा बदलकर आगे बढऩा चाहती है। सहज ही कुछ बदलने लायक था, तभी तो बदला गया है। यह बदलाव जहां सरकार के पक्ष को मजबूत करेगा, वहीं लोगों के विश्वास को भी बढ़ाएगा। अमूमन देश में छोटे-छोटे बदलाव मंत्रिमंडल के स्तर पर होते थे, लेकिन यह बड़ा बदलाव बदली हुई मानसिकता को भी जाहिर करता है। शायद केंद्र सरकार प्रदर्शन के स्तर पर समझौते के लिए तैयार नहीं है।
ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री को मंत्रिमंडल में सब कुछ बदल देने लायक लगने लगा था। उन्होंने अच्छा काम करने वाले मंत्रियों को न केवल बनाए रखा है, बल्कि आगे भी बढ़ाया है। अनुराग ठाकुर और हरदीप सिंह पुरी समेत कई मंत्रियों को पदोन्नत किया गया है। उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक नए मंत्री बनाए गए हैं, तो कोई आश्चर्य नहीं। संगठन में अच्छा काम करने वाले भूपेंद्र यादव को भी कैबिनेट में शामिल किया गया है, तो यह भाजपा संगठन में काम करने वालों के लिए उत्साहजनक बात है। यह एक पहले से बेहतर मिली-जुली सरकार बनाने की कोशिश है। जनता दल यूनाइटेड, लोक जनशक्ति पार्टी और अपना दल को मंत्रिमंडल विस्तार में महत्व दिया गया है, यह गठबंधन और आगे की चुनावी राजनीति के लिहाज से भी जरूरी था। मंत्रिमंडल में महिलाओं की संख्या दोहरे अंकों में है। सभी प्रमुख मजहबों, जातियों और समुदायों के जगह मिली है। मंत्रिमंडल में शामिल नेताओं की औसत आयु भले ही 60 से कुछ ही नीचे हो, पर करीब 14 मंत्री पचास साल से कम उम्र के हैं, तो यह भी युवाओं के देश के लिए सकारात्मक बात है। अब शासन-प्रशासन के मोर्चे पर जहां सरकार से लोगों को बहुत बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद होगी, वहीं राजनीतिक स्तर पर भी सरकार को संतुलन बनाकर चलना होगा। आगामी विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी गठबंधन या पार्टी ही नहीं, सरकार की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगेगी। जहां एक ओर कुछ नए मंत्री बनाकर क्षेत्रीय संतुलन को दुरुस्त करने की कोशिश हुई है, वहीं जिन दिग्गजों को मंत्रिमंडल से अलग किया गया है, उन्हें भी व्यस्त रखने के उपाय करने पड़ेंगे। हर नेता को राज्यपाल नहीं बनाया जा सकता, पर सबको खुश रखने की कोशिश तो हो ही सकती है। नए मंत्रियों के सामने लगभग तीन साल हैं, उन्हें न केवल प्रधानमंत्री, बल्कि देश की नजरों में भी कारगर दिखना होगा। जरूरी है कि ज्यादा ईमानदारी से जमीनी हकीकत के मद्देनजर सरकार की नई टीम लोगों के सपनों और उनसे किए गए वादों को साकार करे।