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बद्री नारायण
भारत में 34 वर्षों बाद 2020 में नई शिक्षा नीति आई है। इसके पहले 1986 में नई शिक्षा नीति आई थी। विद्वानों, शिक्षाविदों, छात्रों, शिक्षकों, राजनेताओं के अनेक संवादों के बाद यह शिक्षा नीति आकार ले सकी है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक एवं उनकी टीम को नई शिक्षा नीति-2020 को आकार देने एवं व्यवहार में लाने के लिए तैयार करने का श्रेय तो जाता ही है। यह भारतीय शिक्षा के इतिहास में सचमुच एक ऐतिहासिक क्षण है।
नई शिक्षा नीति -2020 का मसौदा अगर पढ़ें, तो साफ जाहिर होता है कि यह कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा की तरह नहीं बना है। इसमें एक दीर्घकालिक परिवर्तन का दृष्टिकोण, एवं सुसंगत योजना का अनोखा तालमेल है। नई शिक्षा नीति का यह मसौदा जो स्वीकृत हुआ है, वह अभी इसका विजन डॉक्यूमेंट है। इसको व्यवहार में लाने की विस्तृत योजना इसी के आधार पर मानव संसाधन मंत्रालय बनाएगा। इसके इसी दृष्टिपत्र एवं योजना की मूल आधार भूमि अगर समझना चाहें, तो हमें इसकी 'भाषा संबंधीÓ नीति को देखना होगा।
नई शिक्षा नीति-2020 में पांचवीं कक्षा तक आवश्यक रूप से मातृभाषा एवं स्थानीय भाषा में शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। कोई चाहे तो आठवीं कक्षा तक या उसके बाद भी अपनी मातृभाषा एवं स्थानीय भाषा में शिक्षा ग्रहण कर सकता है। नई शिक्षा नीति-2020 में बहुत सावधानी से उत्तर एवं दक्षिण के बीच प्राय: खड़ा हो जाने वाले हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषाओं के मध्य के विवाद को समाप्त करने की कोशिश की है। इसीलिए मातृभाषा के साथ-साथ स्थानीय भाषा शब्द का प्रयोग किया गया है। यह भाषा संबंधी किसी भी संकीर्णता से इस नई शिक्षा नीति को बचाता है।
मातृभाषा या स्थानीय भाषा में स्कूली शिक्षा समाज निर्माण की प्रक्रिया में आधारभूत परिवर्तन आ सकता है। हम जैसे ही स्कूल में जाते हैं। एक सुनियोजित ढंग से आत्म भाषा और स्थानीय भाषा से अचानक हमारा कटाव शुरू हो जाता है। इसके कारण एक तो हमारे जीवन की भाषा एवं शिक्षा की भाषा में तनाव पैदा हो जाता है। इसमें हमारा मौलिक आत्म खोने लगता है। शिक्षा के द्वारा एक ऐसा 'आत्मÓ जिसे 'शिक्षित व्यक्तित्वÓ भी कह सकते हैं, विकसित होता है जो या तो आधा-अधूरा होता है, या एक दूसरे को कमजोर कर रहा होता है।
इस प्रक्रिया के कारण हमारा अपने ही समाज एवं उसकी शक्ति पर आत्मविश्वास तो कम होता ही है, हम धीरे-धीरे अपने सामाजिक संस्रोतों, एवं सांस्कृतिक समृद्धि से कट जाते हैं। हमारी जीवन संस्कृति की भाषा कोई और होती है और शिक्षा की भाषा कोई और हो जाती है। इससे हमारी आत्मा से विखंडन पैदा होता है और हम अपने साथ कई विरूद्धों को साथ में लेकर चलने वाले नागरिक में तब्दील होते जाते हैं। हर मातृभाषा एवं स्थानीय भाषा अपने साथ एक विशेष जीवन मूल्य, जीवन अनुभव, ज्ञान संस्रोत लिए रहती है। हम जब अपनी भाषा खोते हैं, तो भाषा के साथ इन सबको खोते हैं। नई शिक्षा नीति-2020 जिसका मूल दर्शन मूल्य, सामाजिक संवेदना, नागरिक भाव एवं दक्ष इन्सान बनाने का प्रतीत होता है, की लक्ष्य प्राप्ति में मातृभाषाएं एवं स्थानीय भाषाएं आधार तत्व का काम करेंगी। यह जानना रोचक है कि जिस आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न हमने देखना प्रारंभ किया है, उसका मूल तत्व है अपने समाज, अपनी संस्कृति, अपने ज्ञान एवं अपनी दक्षता के मूल्य को समझकर उन पर आत्मविश्वास विकसित करना। यह आत्मविश्वास अपनी भाषा से सतत जुड़ाव से मिलती रह सकती है। दूसरा, जो नागरिक, ज्ञानी, शोधज्ञ, उद्यमी अपनी 'आत्म भाषाÓ से जुड़ा होगा, वही अपने समाज में प्रचलित लोक ज्ञान एवं लोक उद्यमों को जानेगा, बुझेगा और उनकी खूबियां दूसरों को समझा पाएगा।
आत्मनिर्भर भारत का भौतिक पक्ष है- लोक दक्षता, देशज ज्ञान, स्थानीय उत्पादों को महत्व देने पर टीका हुआ है। इस पक्ष को भी मातृभाषाओं एवं आत्म भाषाओं से जुड़ा नागरिक ही मजबूत कर सकता है। ऐसा ही नागरिक उन्हें जानकर, उनकी प्रक्रियाओं को अंकित कर उन्हें भारत में बढ़ते बाजार से जोड़ पाएगा। सबसे बड़ी बात है कि जो उन देशज कौशल को जीयेगा, उनका मूल्य समझेगा, वही दूसरों को भी उन्हें महत्व देने के लिए तैयार कर सकता है।
इस प्रकार नई शिक्षा नीति-2020 के मातृभाषा एवं स्थानीय भाषा पर जोर देने की पहल से वह मानुष तैयार होगा, जिसका अपने सामाजिक संस्रोतों, स्थानीय ज्ञानों, देशज दक्षताओं पर विश्वास होगा। उसका यही विश्वास उसे ऐसे माननीय संस्रोत में बदलेगा, जिससे वह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लिए नींव के पत्थर का काम करेगा। आत्मनिर्भर भारत का मतलब मात्र बाजार एवं उत्पादों से ही नहीं है। इसके दो आधार भूतत्व हैं- एक तो आत्मविश्वास दूसरा, अपने समाज एवं जीवन संस्कृति से गहरा संवाद।
नई शिक्षा नीति-2020 स्कूली शिक्षा को मातृभाषा एवं स्थानीय भाषाओं से जोड़कर भविष्य के भारतीय मानुष में उपरोक्त दो तत्वों के विकास में सहायक है। यही दो तत्व हम सबके भीतर उस मानस की रचना करेंगे, जिससे भारत एक आत्मनिर्भर भारत बनने की दिशा में कदम बढ़ा सकता है। इस प्रकार कई बार मुझे लगता है कि नई शिक्षा नीति के द्वारा भविष्य के आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की आधारशिला धीरे-धीरे तैयार होती जाएगी।