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अक्षत। जिसका कभी कोई क्षति न हो, जो स्वयं में पूर्ण हो। अक्षत् का हमेशा पूजा पाठ या मांगलिक कार्यों में प्रयोग होता है। देवी-देवता को अर्पित करना हो, हवन में डालना हो, विवाह हो, मुंडन हो या फिर कोई और संस्कार। अक्षत् का प्रयोग इन जगहों पर होता है। अब आपके मन में यह प्रश्न होगा कि आखिर ऐसा क्यों? अक्षत् धान का परिष्कृत स्वरूप होता है। धान के अंदर चावल होता है। साबूत चावल या बिना टूटे हुए खड़े चावल के साफ दाने को अक्षत् के रुप में प्रयोग करते हैं। धान माता लक्ष्मी को  प्रिय है, धान से ही धन भी है। अक्षत् धन, आयु, शांति, सत्य और शीतलता का प्रतीक माना जाता है, इस वजह से ही मांगलिक कार्यों में उसका उपयोग होता है।
1. धन : धान को संपन्नता का प्रतीक मानते हैं। माता लक्ष्मी को प्रिय है।
2. आयु : अक्षत् को कभी खराब नहीं माना जाता है। वह दीर्घ काल तक शुद्ध होता है। वह दीर्घायु का प्रतीक है। जब माथे पर तिलक लगाने के साथ अक्षत् के दाने भी लगाते हैं, तो इसका अर्थ उस व्यक्ति के दीर्घायु जीवन की कामना से होता है।
3. शांति, सत्य और शीतलता : अक्षत् का रंग सफेद होता है। सफेद रंग शांति, सत्य और शीतलता का प्रतीक होता है। ये देवत्व गुण हैं। इसका जहां भी प्रयोग होता है, वहां शांति, सत्य और शीतलता बढ़ती है।
संपन्नता का प्रतीक है अक्षत : आपने देखा होगा कि विवाह में वधु जब अपने घर से विदा होती है तो उस समय अपने दोनों हाथों से अक्षत् पीछे की ओर फेंकती है। इसका अ?र्थ है कि वह ससुराल जा रही है, लेकिन उसके मायके में संपन्नता बनी रहे। वहीं जब वो अपने ससुराल आती है, तो एक लोटे या कलश में अक्षत् भरकर प्रवेश द्वार पर रखा जाता है। उसे वह अपने पैर से अंदर की तरफ गिराती है। इसका अर्थ होता है कि वह स्वयं लक्ष्मी स्वरूप में प्रवेश कर रही है और अपने साथ समृद्धि तथा संपन्नता लेकर आ रही है।

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पीले अक्षत्

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवी-देवताओं को मांगलिक कार्यों में निमंत्रित करने के लिए पीले अक्षत् का प्रयोग किया जाता है। गीली हल्दी से अक्षत् को पीला किया जाता है। पूजा में पीले अक्षतों का प्रयोग करने से देवी-देवता जल्द प्रसन्न होते हैं।