हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, साल में चार बार नवरात्रि का आगमन होता है। नवरात्रि में देवी के नौ रुपों की पूजा की जाती है। ठीक इसी तरह गुप्त नवरात्री में मां दुर्गा के दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्री के दौरान भक्त त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, मां बंगलामुखी, मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, माता भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, माता मातंगी और कमला देवी की पूजा की जाती है। इस पूजा से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 11 जुलाई से हो रही है। जागरण अध्यात्म में आपको इसके महत्व और पूजा विधि के बारे में बता रहे हैं। सबसे पहले हम पूजा का संकल्प लेते हैं। गुप्त नवरात्रि की शुरुआत हम कलश स्थापना से करते हैं। कलश स्थापना के उपरांत मां दुर्गा की श्री रूप (तस्वीर) लाल रंग के पाटे पर सजाते हैं। प्रतिदिन सुबह-सुबह मां दुर्गा की पूजा करते हैं। अष्टमी या नवमी को हम नौ कन्याओं को खाना खिलाकर नवरात्रि के व्रत का उद्यापन करते हैं।
गुप्त नवरात्रि पूजा सामग्री : पूजा के लिए हमें कई सारे सामग्री की जरूरत पड़ती है। सात तरह के अनाज, पवित्र नदी की रेत, पान, हल्दी, सिक्का, सुपारी, चंदन, रोली, रक्षा, जौ, कलश, गंगाजल, मौली, अक्षत, पुष्प आदि समाग्री की जरूरत पड़ती है।
गुप्त नवरात्रि का महत्व : प्रत्यक्ष नवरात्रि में देवी के नौ रूप और गुप्त नवरात्र में 10 महाविद्या की पूजा की जाती है। इस नवरात्रि में विशेषकर शक्ति साधना, तांत्रिक क्रियाएं, मंत्रों को साधने जैसे कार्य किये जाते हैं। इस नवरात्र में देवी भगवती के भक्त कड़े नियम के साथ पूजा-अर्चना करते हैं। मंत्रों, तांत्रिक क्रियाएं और शक्ति साधना की मदद से लोग दुर्लभ शक्तियां अर्जित करना चाहते हैं।
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