
अहमदाबाद। आज अहमदाबाद में प्रेरणा तीर्थ (सेटेलाईट) में पूज्य गच्छाधिपति राजयश सूरीश्वरजी महाराजा आदि ठाणा तथा प्रवर्तिनी साध्वी पू. वाचंयमाश्रीजी (बेने म.सा.) आदि ठाणा का चातुर्मास प्रवेश बहुत ही उत्साह एवं उल्लापूर्वक हुआ। पूज्यश्री के पदार्पण से प्रेरणा तीर्थ के भाविक लोगों में कुछ अनेरा ही उत्साह एवं आनंद था नन्नी मुन्नी बालिकाओं ने स्वागत नृत्यु द्वारा अपने आनंद की अभिव्यक्ति की। तत्पश्चात् सुप्रसिद्ध संगीतकार शनि साह ने गुरू गुण गीत गाया। प्रेरणा तीर्थ के ट्रस्टी अजय भाई ने गुरू पदार्पण की खुशी के दो शब्द संघ के समक्ष व्यक्त किए। उन्होंने खास श्रीसंघ को संबोधित करते हुए कहा, जो उत्साह आपका हर क्रियाएं एवं कार्यक्रमों में रखना।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोतागणों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि कोई भाई नया बंगला बनाता है तो चार व्यक्ति से बात करता है। मेरा नया बंगला देखा कितना अच्छा है इसी तरह कोई बी.एम.डब्ल्यू की गाड़ी खरीदकर लाता है तो तुरंत दूसरों को दिखाता है। मेरी गाड़ी कितनी अच्छी है। इस तरह लोग खुद की चीज का खुद ही गर्व महसूस करते हैं। हमें सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ ऐसा जैन धर्म मिला है। उसका गौरव आपने कभी किसी व्यक्ति के आगे व्यक्त किया?
जैन धर्म पाने का गौरव यदि आपको है तो आपको समस्त विश्व में जैन धर्म की बात करनी चाहिए। आज के युग में समस्त विश्व आपके हाथ में है। पहले का समय ऐसा था कि किसी को संदेशा देना है तो टेलिग्राम भेजने में दो दिन लग जाते थे।
अब तो आप जैसा चाहो वैसा कर सकते हो दो मिनिट में समस्त विश्व में आपका संदेश भेजन सकते हो महान में महान हमारा यह जैन धर्म है। जैन धर्म से प्रभावित आत्माओं की कैसी ऊंची ऊंची भावना होती है उसका वर्णन करते हुए पूज्यश्री ने बताया कि युवान हीरा का धंधा कर रहा था। हीरा का काम सीखा। एक दिन हमारे पास आकर उसने कहा, साहेब! हीरे के धंधे में मैंने खूब कमाया। जिंदगी पूरी चल सके उतनी कमाई मैंने कर ली अब तो हीरा बाजार में जाने की भी इच्छा नहीं होती है। जितना चाहिए था उतना मैंने कमा लिया अब दौड़ किसलिए करना? उन्होंने विनंति करके मुझसे निष्परिग्रहीता का नियम मांगा।
पूज्यश्री फरमाते है मानलो, आपके पास इतनी संपत्ति नहीं है फिर भी कुछ उम्र के बाद जब निवृत्ति जीवन जीते हो तब तो धार्मिक संस्था में अपना समय निकालने की भावना रखनी ही चाहिए।
एक भाई परोपकारी था। उसे भावना हुई कि मैं किसी होस्पीटल में जाकर एक एक दर्दी को पूछुं कि उन्हें कुछ काम है अथवा कुछ जरूरत हो तो वे बताए? उस भाई ने लोगों को सिर्फ पूछना ही चालु नहीं किया बल्कि उनकी मांग भी पूरी करते थे। उनकी इस प्रकार की प्रवृत्ति को देखकर किसी ने उन्हें 500 रूपिये देकर कहा, ले तुं जो काम कर रहा है उसमें इसका उपयोग करना। तब उस भाई ने वे पांच सौ रूपिये लेने से ईंकार किया और उसे कहा, यदि तेरी भावना है तो तुं खुद अपने हाथों से ये कार्य कर। वे भाई ये बात मानकर उनके साथ गए लेकिन वहां का वातावरण देखकर 500 रूपिये के बदलते 5000 हजार रुपिया निकालकर सुकृत में दिया। इस प्रकार से परोपकार की भावना की वृद्धि हुई। पूज्यश्री के प्रवचन के बाद कामली तथा गुरू ओवारणा का चढ़ावा बोला गया जिसका लाभ निशा बेन स्नेहल भाई चोकसी निशीता बेन निशीथ भाई तथा मीना बेन सिद्धार्थ भाई परिवार ने लिया।
पूज्यश्री के चातुर्मास प्रवेश निमित्ते भरूच-अंकलेश्वर-वडोदरा-सिकंद्राबाद-मुंबई मुलुंड से भी भाविकों पधारे थे। पूज्यश्री की निश्रा में मोडासा तीर्थ की प्रतिष्टा हेतु मोडासा के ट्रस्टीगण प्रतिटा मुहुत्र्त की विनंतिकी और पूज्यश्री ने इस विनंति को स्वीकार करेक महा-सुद-छटठ का मंगलमय मुहुत्र्त प्रदान किया।
विक्रम संवत् 2022 के चातुर्मास के लिए भी पूज्यश्री को अनेक संघों ने विनंति की जैसे कि आंबावाडी(अहमदाबाद) गिरनार तीर्थ में सामूहिक चातुर्मास सूरत ( शंखेश्वर पाश्र्वनाथ तीर्थ) मुंबई विगेरे। बस, अंत में पूज्यश्री ने फरमाया आप सभी इसी तरह उत्साह एवं आनंद से सभी क्रियाओं में भाग लेकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।