अहमदाबाद। मानव के जीवन में यदि किसी चीज से परिवर्तन आता हो तो वह है जिनवाणी। जिनवाणी के श्रवण से कितने लोगों के जीवन में परिवर्तन आया है। जो लोग आज तक नास्तिक थे उनके जीवन में जिनवाणी ने आस्तिक बनाया। उनको प्रभु एवं गुरू से कनेक्शन जोड़ा। कितने लोगों ने जिनवाणी के श्रवण से अपने जीवन से व्यसन कुटेव मांसभक्षण-शिकार-परस्त्री सेवन विगेरे को छोड़ा।
कहते है चातुर्मास में खास तौर से यदि कोई आराध्य कत्र्तव्य हो तो वह है जिनवाणी श्रवण। कितने लोगों का मानना है जिनवाणी का श्रवण नहीं करेंगे तो चलेगा किंतु रोज पूजा पाठ तो करनी ही चाहिए। पूजा से ज्यादा जिनवाणी का महत्व एवं फल ज्यादा है। प्रभु पूजा विगेरे धर्माराधना जिनवाणी से श्रवण से ही होता है। चातुर्मास के अलावा शेष काल में गुरूभगवंतो का योग कभी मिलता है कभी न भी मिले परंतु चातुर्मास में खास तौर से गुरूभगवंत हमें मिल ही जाते है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोतागणों को संबोधित करते हुए फरमाते है अन्य कार्यक्रमों को गौण करके पहले जिनवाणी को मुख्य करके प्रतिदिन गुरू भगवंत के मुख से सुनना ही चाहिए। जिनवाणी के श्रवण से आत्मा से सुंदर भावों का प्रकटीकरण होता है। कितने समझदार व्यक्ति जिनवाणी के श्रवण के पश्चात् अपने संसार के रूटींग में होने वाले राग द्वेष विगेरे को कम करके जीवन में सुधार लाते है। पूज्यश्री फरमाते है एक घंटा प्रवचन सुना हो तो कम से कम 15 मिनिट तक उस पर चिंतन करना ही चाहिए। दिन को आप अपने व्यवसाय कामकाज में व्यस्त होने से आपको चिंतन करके का समय नहीं मिलना है तथा ये व्यवसाय भी एक विचित्र चीज है कि आपके मनोभाव को बदल देती है। कहते है जब हम पूरे दिन के कार्य से निवृत्त होकर रात को अपने बिछोना पर होते है तभी हमें चिंतन करने का समय मिलता है। हमें चिंतन में जो महात्मा के मुख से सुना है उस पर विचारना करना है अब तक मेरी भूल कहा हो रही है तथा अब जीवन में क्या चैंज लाने जैसा है। जिनवाणी के श्रवण से रोहिणीया चोर के जीवन में भी कैसा परिवर्तन आया।
रोहिणीया चोर के पिता मरण शय्या पर पड़ा है अपने बेटे को बुलाकर कहता है भगवान महावीर के वचन भूल से भी नहीं सुनना। रोहिणीया चोर ने अपने वचन पिता की बात स्वीकारी और पिता स्वर्गवासी हुए। एक बार चोरी करते हुए जंगल के मार्ग से वह जा रहा था अचानक भगवान महावीर के शब्द उसे सुनाई दिए। रोहिणीया चोर ने पिता की बात को याद करके कान में ऊंगली डाल दी। भवितव्यता से वह अपने रस्ते से आगे बढ़ रहा था अचानक पैर में कांटा चूबा। कांटे को निकालने के लिएजैसे ही चोर ने उंगुली निकाली उसके कान में भगवान महावीर के तीन शब्द गए देवों की आंखे कभी पलक नहीं मारती, देवों जमीन से चार अंगुल अंतरिक्ष होते है, उनके गले की पुष्पमाला कभी करमाती नहीं। ये तीन वाक्य रोहिणीया चोर के दिल दिमाग में इस तरह फीट हो गए कि जब उस पर आफत आई तब वे वाक्य ही उसे बचा सका। फिर तो रोहिणीया चोर को परमात्मा के ऊपर ऐसी श्रद्धा हुई कि उसने जीवन का परिवर्तन महात्मा बनकर किया।
पूज्यश्री फरमाते है आपको भी चातुर्मास में गुरू का योग मिला है अन्य कार्यक्रमों को गौण करके जिनवाणी श्रवण करके शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।
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