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अहमदाबाद। आज पूज्यश्री प्रहलाद श्री संघ की विनंति को मान देकर प्रहलाद नगर पधारे। वहां श्री सीमंधर स्वामी मूलनायक है। कहते है श्री वीर विजयजी ने अपनी स्तवना में बहुत ही सुन्दर भावों को व्यस्त किया है कि 
मारू न हतुं तेने मारूं करी मान्युं,
मारूं हतुं तेने ना रे पिछाव्युं
जो चीज आपकी नहीं है उसे आप अपना मान बैठते तथा जो चीज आपकी है उसे आप नहीं पहचानते हो। दूसरी भाषा में कहे तो चलेगा जो चीज आपकी नहीं है उसे आप पचा नहीं सकते। आपका अधिकार सिर्फ खुद की चीज पर ही होता है अन्य ही चीज पर आप किसी भी प्रकार से अधिकार नहीं जमा सकते हो।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव  राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोतागणों को संबोधित करते हुए फरमाते है जन्म के बाद कोई भी बच्चो अपनी मां के पीछे ही लगा रहता है जन्म से उस बालक में तीन ज्ञान नहीं है। फिर भी वह बच्चा मां जहां जाती है उसी के पीछे घूमता फिरता है कुछ समय के बाद उसे कोई मित्र मिला अब वह मां का साथ छोड़कर मित्र के पीछे घूमता फिरता है। कुछ बड़ा हुआ समझ आई तो अब वह पत्नी के पीछे लग गया। जो चीज उसकी नहीं उसे अपनी मानने लगा है। समझ के मुताबिक एक एक चीज पकड़ता है और दूसरी छोड़ता है। जिसे अपना मान बैठा है वे सभी चीज पराई ही है इसी तरह कोई भी मां अपने बच्चे को कुछभी देती है तो वह बच्चा अपनी मां के हाथ से तुरंत उस चीज को ले लेता है मानलो, किसी ने उसके पास वह चीज मांगी तो वह उस चीज को दे तो देता है लेकिन तुरंत ही अपनी चीज का उससे मांग लेता है।
हम जाजदाद-संपत्ति-पुत्र-पत्नी-मां-बाप विगेरे को अपना मान बैठे है। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है जिसे आप मेरा मानकर बैठे हो वे सभी चीज पराई है आकी नहीं है। आपका अपना तो सिर्फ ज्ञान-दर्शन एवं चारित्र ही है। इन तीन रत्नों की प्राप्ति से ही मोक्ष होगा।
पूज्यश्री फरमाते है सम्यग् दर्शन-सम्यग् ज्ञान एवं सम्यग् चारित्र की प्राप्ति के लिए हरेक मान को प्रयत्नशील बनना है। जिस श्रावक ने अपने जीवन दौरान पौषध किया हो उन श्रावकों को पता होगा कि प्रतिदिन सोने के पूर्व संधारा पोरिसी आपकी भाषा में नाईट प्रेयर करने के बाद ही सोया जाता है। इस संधारा पोरिसी का एक पद हमारी आत्मा को वारंवार जागृत करता है एगो डहं नत्थि में कोई। इस दुनिया में कोई मेरा नहीं है। यह शरीर-पुत्र-पत्नी विगेरे सब अपना नहीं है जो शरीर हमें इस भव में मिला है वह हर जन्म में साथ नहीं आएगा इसी तरह पुत्र जिसे मेरा मेरा करते हो, जिसके लिए रात-दिन धन इकट्ठा करने में लगे हो वह भी उसकी पत्नी आते ही तुम्हें छोड़कर अलग फ्लाट में शांति का जीवन जीने चले जाएगे। पत्नी के पीछे पागल बनकर रात-दिन, घूमते फिरते हो वह पत्नी भी मृत्यु के समय आपके साथ नहीं आएगी। आपको परलोक में अकेले ही जाना पड़ेगा। शास्त्रकार महर्षि फरमाते है अब आप जागृत बन जाओ। जो चीज मेरी नहीं उसके पीचे मत फिरो।कहते है अनाथी मुनि के आंख में भयंकर पीड़ा हो रही है। डॉक्टर को बुलवाया है। वैद्य भी आए मगर उनकी पीड़ा को दूर न कर सके। अनाथी जैसे जैसे दवा लेते है पीड़ा भयंकर बढ़ती ही जाती है। आजु बाजु में पत्नीयां खड़ी है मगर वे भी उसकी पीड़ा को दूर करने में समर्थ नहीं है। जिन्होंने कर्म बाधा है उस कर्म का फल उस व्यक्ति को ही भुगतना पड़ेगा। आखिर में जागृत हुए और अनाथी मुनि बनें।
सनत् चक्रवर्ती की सेवा में 60,000 देवो सेवा में थे मगर मृत्यु के समय एक भी काम नहीं आए। पूज्यश्री आप सभी को भी पूर्व से ही सावधान बनाने को कह रहे है। आप सभी के पास अभी भी मौका है आप सभी चेत जाओ। अकेले आए अकेले जाना है। कोई मेरा नहीं जिसे मेरा माना है वे सभी यही रह जाएगा।आज प्रात: पालिताणी में साध्वीजी समुदाय के वडील, आज्ञानुवर्तिनी पू.सा. जितेन्द्रश्री जी  का प्रात: 5.10 बजे कालधर्म हुआ। उनकी पालकी यात्रा कस्तूरधाम से 3.30 बजे निकली।