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अहमदाबाद। आज प्रात: पूज्यश्री लक्ष्मीबेन श्याम भाई के गृहांगण में पधारे। श्यामभाई जैन नहीं किन्तु अग्रवाल है फिर भी उन्हें जैनों के प्रति खूब लगाव है पूज्यश्री एवं बेन म.सा. के ऊपर उन्हें अटूट श्रद्धा है। उनकी आग्रह भरी विनंति से पूज्यश्री उनके घर पधारे तथा भज गोविंद भज गोविंद भज गोविंद यूढ़ मते। ये पंक्तियां बहुत ही सुन्दर है। इस पर पूज्यश्री गो का अर्थ इन्द्रिय बताकर सभा को संबोधन करते हुए फरमाया मन के ऊपर जिन्होंने अपना अधिकार जमाया वो गोविंद है। हमारी इन्द्रियां हमें जिस प्रकार से ऑर्डर करती है, हमें जिस तरफ ले जाती है उस तरफ हमें नहीं जाना है बल्कि हमारी कंस्ट्रक्शन के मुताबिक हमारी इन्द्रियां चले उसका ख्याल रखना है।
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ. देव  राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोतागणों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं इस धरती पर जो भी व्यक्ति जन्म लेता है उसे अभिनंदन देने हर कोई व्यक्ति उसके घर आता है लेकिन एक प्रश्न है आप कब तक जीओंगे? हमारा जीवन शाश्वत नहीं है मृत्यु एक दिन सभी को आएगी। प्रतिक्षण ख्याल रखना है हमारा एक एक दिन कम होता जा रहा है। किसी से वैर अथवा द्वेष नहीं रखना है। खुद के जीवन को निर्मल बनाना है पूज्यश्री फरमाते है घर का युवान व्यक्ति जब तक कमाई करता है तब तक ही वह सभी का प्यारा है। बूढ़ा  हुआ, कमाने की अब उसमें ताकात नहीं है युवानी में कमाई हुई सारी संपत्ति अपने पुत्र को दे दी। अब बूढ़ापे में दान करने की इच्छा हुई। अपनी ही दी हुई संपत्ति पुत्र के पास बूढ़ा पिता मांगता है लेकिन दु:ख की बात है कि पुत्र देने से ईन्कार कर देता है और उसे दु:खी होना पड़ता है। आपको वैराग्य की बेट्री चार्ज करनी हो, अपने वैराग्य को मजबूत करना हो तो न्यूझ पेपर से चार्ज होता है वैराग्य को दृढ़ बनाये ऐसे ऐसे समाचार आते है। एक युवक को शराब पीने की लत लग गई। उसके पास अब पैसे नहीं रहे। वह युवक अपनी मां से पैसा मांगता है। माता ने उसे पैसे नहीं दिए तो गुस्से में आकर उसने अपनी मां का गला कांट दिया। बात  यहां तक ही नहीं अटकी। वह नशे के कारण अपनी सुधबुध ही खो बैठा था तो उस युवक ने अपनी मां के शरीर के एक एक अंग के टुकडे कर डाले और उसको पका कर खा लिया। 
पूज्यश्री फरमाते है मानव के अंदर जब ऐसी खराब वृत्ति आ जाती है वह क्या कुछ नहीं करता है। परमात्मा से हमेशा प्रार्थना करो इस प्रकार की खराब वृत्ति मेरे में कभी न आए। हमेशा शुद्ध भावना में रमण करूं ऐसा मेरा जीवन हो। कहते है, शास्त्र के वांचन से तत्व ज्ञान की प्राप्ति होती है तो न्यूझ पेपर से वैराग्य की प्राप्ति होती हिै।
एक बार आत्मा जागृत हो गई तो तुम्हारी मुक्ति निश्चित है। जीवन है तो जीना पड़ेगा। जीने के लिए खाना पड़ेगा। खाने के लिए कमाई करनी ही पड़ेगी। आपका एक मन बार परमात्मा में लग जाएगा आपको किसी रात की चिंता हीं नहीं रहेगी। आराधना करने वालों को किसी बात की चिंता ही नहीं रहेती है। क्योंकि उसने परलोक की पूरी तैयारी कर ली है। पुराने वस्त्र को निकालने का दु:ख मूरख को ही होता है। नये वस्त्र पहनने वालों को पता है उसे मुक्ति मिलने ही वाली है।
शास्त्रकार महर्षि फरमाते है जिसे मन है उसे विचार आएगें ही। विचार करने वालों को किसी न किसी प्रकार की आशा होती ही है। गाडी स्पीड से चलती है अचानक ऐक्सीडेंट होने की संभावना लगते ही ब्रेक लगा लेते हो ताकि ऐक्सीडेंट न हो टीक इसी तरह आशा बढ़ेगी ही परंतु हमें अकस्मात् से बचने के लिए, निराशा होने से बचने के लिए हमें उस आशा पर ब्रेक लगाना होगा। तभी हमें उस आशा से शांति मिलेगी। बचपन खेलकूद में बिता लिया। युवानी आई धर्म करने का समय आया तो मेरेज कर लिया। कमाई करने का सीसन है धंधे में समय चला गया। मौज शौक भी कर लिया अब आया बूढ़ापा। बूढ़ापे में लड़का कुछ भी पूछता नहीं पूरे दिन चिंता चिंता करने में समय चला जाता है। जिंदगी पूरी चिंता में ही चली गई कभी परत्मा को याद नहीं मिला इस तरह तो हमारे जीवन भी पूचा हो जाएगा। मृत्यु का आएगी पता ही नहीं चलेगा।
पूज्यश्री फरमाते है अनादिकाल से हमारी जन्म मरण की यात्रा चल रही है। एक बार एक भाई प्रवचन में आए हमारे सामने आकर बैठे। हमने उनको उठाकर दूसरी ओर बिठाया, फिर से उनको ईशारा करके कहा आप ईधर बेठो चार पांच बार उठ बैठ करने के बाद वे कुछ गुस्से से बोले साहेब फाइनल कह दो ना कहां बैठुं हमने कहां फाइनल बैठना हो तो वह स्थान मोक्ष ही है। वरना दूसरे भव में भी मजदूरी ही करनी पड़ेगी।
बस, आपको भी इस जन्म मरण के चक्कर से छूटना हो तो संसार तथा संसारियों के प्रति वैराग्य भाव लाकर शीघ्र परमानंत को पाओ यही शुभेच्छा।