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गौरवशाली अतीत, समृद्ध जल व प्राकृतिक संपदा और प्रचुर श्रम शक्ति के बावजूद उत्तर प्रदेश यदि प्रगति की दौड़ में पिछड़ गया है तो राजनीतिक विद्रूपताओं के अलावा एक बड़ा कारण अनियंत्रित आबादी भी है। देश में भौगोलिक क्षेत्रफल के लिहाज से चौथे नंबर वाले प्रदेश में सबसे बड़ी आबादी रहती है। यह जनसंख्या दुनिया के कई मुल्कों के बराबर बैठती है। ऐसे में यदि योगी सरकार ने जनसंख्या नीति की घोषणा बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने की कोशिश में की है तो उसका स्वागत होना चाहिए। बल्कि ऐसी पहल पूरे देश में की जानी चाहिए। संभव है योगी सरकार के फैसले को आसन्न विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक नजरिये से देखा जाये। यह भी कि विपक्षी दल इस फैसले की सांप्रदायिक नजरिये से भी व्याख्या करें, लेकिन देश के समक्ष पैदा हालात के दृष्टिकोण से इसे देखा जाना चाहिए। जनसंख्या दिवस पर उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित जनसंख्या नीति 2021-30 का अनुकरण देशव्यापी होना चाहिए। निस्संदेह, जनसंख्या विस्फोट को रोकने में उत्तर प्रदेश सफल होता है तो संभव है कि राज्य के बेटों को नौकरी की तलाश में विभिन्न राज्यों में धक्के खाने की नौबत नहीं आयेगी। इस पर लगा बीमारू राज्य का दाग मिट सकेगा। कोरोना संकट में राज्य और देश ने देखा कि बढ़ती आबादी के सामने चिकित्सा के संसाधन बौने पड़ गये। लोग बेड, ऑक्सीजन व एंबुलेंस के लिये दर-दर की ठोकरें खाते रहे। सही मायनो में राज्य की दौड़ की राह में बढ़ती आबादी बड़ी बाधा साबित हुई है। दक्षिण भारत के कई राज्यों ने जनसंख्या नियमन और शिक्षा के प्रचार-प्रसार से प्रगति के नये लक्ष्य हासिल किये हैं। यह हकीकत है कि अकुशल राजनीतिक प्रबंधन और भ्रष्टाचार के अलावा विकास के लक्ष्य समय से हासिल न कर पाने की बड़ी वजह बेलगाम आबादी है। ऐसे में पारदर्शी ढंग से लागू योगी सरकार की नीति दूरगामी परिणाम दे सकती है। बशर्ते आसन्न चुनावों के चलते मुद्दा राजनीति का शिकार न हो।
निस्संदेह, जनसंख्या विस्फोट आज वैश्विक चुनौती है। खासकर विकासशील देशों में जहां रोजगार के अवसर व प्राकृतिक संसाधनों की कमी है। बेहतर जीवन परिस्थितियों के लिये जनसंख्या नियंत्रण और शैक्षिक स्तर ऊंचा करने की जरूरत है। विश्वव्यापी कोविड संकट ने इस समस्या को अधिक जटिल बनाया है क्योंकि रोजगार के अवसरों का भयावह रूप में संकुचन हुआ है। जिन देशों ने आबादी को समय रहते नियंत्रित किया, वहां आज खुशहाली की बयार नजर आती है।  उत्तर प्रदेश के मामले में प्रजनन दर का राष्ट्रीय औसत से अधिक होना, राज्य सरकार की चिंता बढ़ा रहा है। प्रजनन दर को नियंत्रित करके हम गरीबी के खिलाफ लड़ाई मजबूती से लड़ सकेंगे। निस्संदेह गरीबी का एक बड़ा कारण ज्यादा आबादी ही है। इसी से कुपोषण बढ़ता है और स्त्रियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि जनसंख्या वृद्धि पर अंकुश लगता है तो निश्चित रूप से शिशु मृत्यु दर में गिरावट आएगी और प्रजनन के दौरान होने वाली माताओं की मृत्यु दर को भी रोका जा सकेगा। यहां जनसंख्या नीति में उन प्रावधानों का स्वागत किया जाना चाहिए, जिसमें सरकारी कर्मचारियों को परिवार नियोजन अपनाने पर पदोन्नति, विशेष इंक्रीमेंट, मकानों में सब्सिडी, सस्ता होम लोन देने की घोषणा की गई है। 
दूसरी ओर आम आदमी को परिवार नियोजन अपनाने पर बिजली-पानी के बिलों में रियायत देने, अकेली संतान के बाद परिवार नियोजन करवाने और उसके लड़की होने पर वजीफा, मुफ्त शिक्षा तथा नौकरी में प्राथमिकता देने की बात कही गई है। वहीं एक बच्चे के बाद परिवार नियोजन अपनाने वाले गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवार को नकद राशि देने का प्रावधान भी है। वहीं नीति लागू होने के बाद तीसरी संतान होने पर इसमें दंड का भी प्रावधान किया गया है। सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों की नौकरी पर संकट आ सकता है तो पंचायत व नगर निकायों के जनप्रतिनिधियों का निर्वाचन रद्द भी हो सकता है। सरकारी सुविधाएं भी वापस ली जा सकती हैं। इसके बावजूद जनसंख्या नीति की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि हम आम लोगों को कितना जागरूक करके उनकी भागीदारी को कैसे बढ़ा सकते हैं। 
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