पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से चतुर्मास का प्रारंभ होता है। इसी एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू पंरपरा के मान्यतानुसार देवशयनी एकादशी से अगले चार माह के लिए प्रभु विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस चार महीने की अवधि को चातुर्मास कहते हैं। इस चार महीनों में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। इस चातुर्मास के कुछ नियम है। जिनका संयमित तरीके से पालन करके हम पुण्य के भागीदार बन सकते है। आइये आज हम विस्तार से चातुर्मास की नियमों के बारे में जानेंगे।
चातुर्मास के नियम : एकादशी के दिन श्री हरि के योगनिद्रा में चले जाते हैं जिसके बाद व्यक्ति को पूरे चातुर्मास यानि कार्तिक पूर्णिमा तक भूमि पर सोना चाहिए। इससे व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती है। चातुर्मास के दौरान हमें सभी बुराईयों का त्याग कर देना चाहिए। इसमें परनिंदा करना और सुनना दोनों पाप की श्रेणी में आता है।
इस चातुर्मास में व्यक्ति को शांत होकर भोजन करना चाहिए। वार्तालाप से अन्न अशुद्ध हो जाता है। जो व्यक्ति शांत तरीके से भोजन करते हैं उनके जीवन से दुख नष्ट हो जाते हैं।
चातुर्मास में व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन, शुद्ध पत्तल पर भोजन, उपवास, दान, ध्यान, स्नान, जप शांत स्वभाव का विशेष लाभ मिलता है।
चातुर्मास में नींबू, मिर्च, उड़द और चने का त्याग कर देना चाहिए। इस समय जो भी व्यक्ति केवल दूध पीकर अथवा फल खाकर जीवन यापन करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं। उपर्युक्त सभी नियमों का पालन करके व्यक्ति अपने जीवन को खुशहाल बना सकता हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार व्यक्ति को चातुर्मास के समय संन्यासियों की तरह जीवन जीना चाहिए। इससे हमारे अंदर सात्विकता उत्पन्न होती हैं जिससे हम प्रभु के और समीप जा पाते हैं।
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