आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है. इस एकादशी से अगले चार माह तक श्रीहरि विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं. इसलिए अगले चार माह तक शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं. इसी समय से चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है. इस एकादशी से तपस्वियों का भ्रमण भी बंद हो जाता है. इन दिनों में केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है. इस बार देवशयनी एकादशी 21 जुलाई को है. अब 20 जुलाई से 13 नवंबर तक शुभ कार्य बंद रहेंगे.
हरि और देव का अर्थ तेज तत्व से भी है. इस समय में सूर्य चन्द्रमा और प्रकृति का तेज कम होता जाता है. इसीलिए कहा जाता है कि, देव शयन हो गया है. तेज तत्व या शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं होते हैं. इसके अलावा कार्यों में बाधा आने की सम्भावना भी होती है. इसलिए इस समय से अगले चार माह तक शुभ कार्य करने की मनाही होती है.
देवशयनी एकादशी के साथ ही चर्तुमास शुरू हो रहा है. इस अवधि में शुभ कार्य वर्जित मान गए हैं. इन चार महीनों में भगवान विष्णु सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को दे देते हैं और खुद योग निद्रा में चले जाते हैं. चार महीने बाद देवोत्थान एकादशी 13 नवंबर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष को भगवान विष्णु शयन निद्रा से उठते हैं और तभी से शुभ कार्य प्रारंभ होते हैं.देवशयनी एकादशी पर कैसे करें पूजा?
रात्रि को विशेष विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें. उन्हें पीली वस्तुएं, विशेषकर पीला वस्त्र अर्पित करें. इसके बाद उनके मंत्रों का जप करें, आरती उतारें. आरती के बाद निम्न मंत्र से भगवान विष्णु की प्रार्थना करें. प्रार्थना के बाद भगवान से करुणा करने के लिए कहें.
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