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अहमदाबाद। परम मंगलमयी चातुर्मास प्रवेश सर्वत्र हो चुके हैं। अब प्रभु की वाणी का प्रवेश ह्रदय में करवाना है। चातुर्मास यानी आराधना करने का विशेषोत्सव, चातुर्मास यानी पुण्य बंध करने का एक सुवर्ण अवसर। ऐसे सुवर्ण अवसर को व्यर्थ ना जाने दें।
परम शासन प्रभावक, गीतार्थ गच्छाधिपति जैनाचार्य प.पू.आ. देव राजयश सूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि अपने मन को निरंतर पोजिटिव एनर्जी से भर देना चाहिए मुझे मेरे जीवन की प्रत्येक क्षण को सफल बनाना है। बिल गेट्स जैसे धनाढ्य एवं सफल व्यक्ति स्वयं के जीवन की बात करते हुए कहते है कि प्रत्येक क्षण को सफल करना है। जीवन का विकास सुयोग्य तरीके से करना है। कोई भी कार्य करने के पूर्व यदि उनको दो-पांच मिनिट का समय मिल जाता तो वे अवश्य किताब पढ़कर ही कार्य का प्रारंभ करते। वैसे ही अपने पास तो चौदह पूर्वों का सार, सर्व विध्ननाशक ऐसे मंत्राधिराज महामंत्र नवकार है जिसके स्मराज मात्र से कष्ट एवं विध्नों का नाश हो जाता है। कई लोग ऐसे होते है जिन्हें जाप करने हेतु बैठना पड़ता है, ध्यान करना पड़ताहै, तो कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हें सहजता से ही जाप करने की आदत पड़ गई हो उसे अजपा जाप कहा जाता है। जब किसी चीज की धून लग जाती है, उसकी महत्ता समझ आ जाती है तो वह कार्य सहजता से ही हो जाता है। 
प्रत्येक श्रमण-श्रमणी भगवंत चाहे, श्वेताम्बर हो या दिगम्बर, स्थानकवासी हो यै तेरापंथी सभी प्रवचन के प्रारंभ में नवकार से ही उसका क्या करेगा संसार? समस्त संसार को चेलेंज करने की शक्ति यदि किसी में हो तो वह नवकार है। कितने ही पुण्यशाली आत्माओं ने तथा श्रमण-श्रमणी भगवंतों ने करोड़ों नवकार के जाप किये है। ऐसे नमस्कार महामंत्र के पवित्र शब्द तीन लोकों में मिल पाना अत्यंत कठिन है। अत: इस सुवर्ण अवसर का अवश्य सदुपयोग कर आत्मा को धन्य पुण्य बनाना। कितने ही कर्मों के क्षय करने के पश्चात् नवकार का न प्राप्त हुआ है जब यह वास्तविकता को हम पूरी तरह से समझते है तो उसका सदुपयोग प्रत्येक क्षण कर सकते है। अपने हाथ में आया हुए ऐसे चिंतामणि सम नवकार मंत्र का बन सके तो ज्यादा से ज्यादा जाप करे। चातुर्मास का यह अनुपम अवसर जिनवाणी श्रवण का अद्भुत असर है।
पूज्य गुरूदेव श्रोताओं को उद्बोधित करते हुए फरमाते है कि जब धर्म करना न पड़े अर्थात् सहजता से ही हो जाये तो समझना कि नवकार की कृपा प्राप्त हो गई। धर्म करना पड़े तो उसका अर्थ यह है कि समझ की खामी है धर्म करना है तो उसका अर्थ यह है कि धर्म आपका स्वभाव बन चुका है। पूज्यश्री श्रोताओं को प्रोत्साहित करने हुए फरमाते है कि यदि अपने अंदर से संकल्प पैदा होता है तो अपने मन का लश्कर गुलाम बनकर अवश्य कार्य करेगा। मन तो सब कुछ करने को तैयार ही होता है इस उसे केवल अपने आदेश की प्रतीक्षा होती है। कोई भी अवसर निरर्थक न हो जाये उसके लिये सतत जागृत रहना पड़ता है। जागृति लाने के लिये जिनवाणी श्रवण करना अत्यंत अनिवार्य होता है। शास्त्रकार भगवंत कहते है कि संसार के अंत सुखों को भोगने के पश्चात् भी तृप्ति नहीं होती-संतोष नहीं होता। संसार तो जलती ज्वाला समान है जिसमें क्रोध-मान-माया लोभ-जन्म-जरा-मृत्यु यह सब निरंतर अपने पीछे पड़े हुये है तो इन सभी का प्रतीकार करने हेतु इन टक्कर करना है। आराधना का अवसर पर मिला है तो उसे व्यर्थ न जाये दे।
आज का पवित्र दिन यानि शासन प्रभाविका, प्रकृष्ट पुण्य निधि प.पू.सा. वर्या वाचंयमा श्री जी.म.सा. (पू.बेन म.सा.) का प्रवर्तिनी पद प्राप्ति दिन है। आज पूज्य गुरूदेव की मंगलमयी निश्रा में दिव्य भास्कर के भूतपूर्व तंत्री श्री महेन्द्रभाई द्वारा भोमियाजी की महिमा को प्रदर्शित करते हुए पुस्तक का प्रकाशन करवाया जिसका उद्घाटन गुजरात राज्य के डेप्यूटी सीएम श्री नितिन भाई पटेल तथा जीटो संस्था के चेयरमेन श्री गणपतराजजी चौधरी ने किया। समस्त कार्यक्रम बहुत ही भव्य रहा। पूज्यश्री का सबको एक ही संदेश है कि जीवन में प्राप्त होते प्रत्येक अवसर को अवश्य सफल बनाकर आत्मा से परमात्मा बनें।