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अहमदाबाद। कल्याणकारी एवं आनंदकारी चातुर्मासिक पर्व नजदीक आ रहा है। कोई भी व्यक्ति बहार गांव जाये, गृह प्रवेश का कार्यक्रम है। विवाह हो तो उसकी पूर्व तैयारियां करते ही है। शास्त्रकार भगवंत कहते हैं कि चातुर्मासिक पर्व के लिए पूर्व तैयारी के रूप में धर्म भावना को दृढ़ बनाना है। जिनके मन में धर्म भावना प्रगटी हुई है उनके यह तप का कोर्स करना है।
श्री पाश्र्व-पद्यावती लब्ध प्रसाद, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि चातुर्मास धर्म भावना का चार्जर है जैसे मोबाईल की बेटरी कम होने लगती है तो उसे चार्ज करना अत्यंत आवश्यक होता है वैसे ही आठ महिनों में संसार की अनेक प्रवृत्तियों में रमण करते-करते धर्म भावना की बेटरी को चार्ज करने हेतु इस चातुर्मासिक पर्व का स्वागत करना है। आत्मा के स्पर्श से किए हुए धर्माराधना से प्रचंड विश्वास पैदा होता है। इसी संदर्भ में एक घटना याद आ जाती है। एक सेठ जी को झूठ नहीं बोलने का नियत था। उनके जीवन का यह सिद्धांत रहा प्राण जाये परंतु वचन न जाये उस गांव में ऐसा अकाल आ पड़ा था कि गांव के लोग अत्यंत आकुल व्याकुल हो गए थे। सभी लोगों ने मिलकर अनेक प्रयोग किये अपने-अपने इष्ट देवों को प्रार्थना कि लेकिन कुछ हुआ नहीं। अंत में सभी मिलकर उस सेठजी के पास जाकर प्रार्थना करने लगे कि अब आप ही हमें इस मुसीबत से बचा सकते है। कृपया करके कुछ कीजिये। तब सेठजी ने कहा कि मैं कोई संत या साधू नहीं हूं, नहीं कोई साधक या उपासक अत: इसमें मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा। गांव के लोगों ने कहा कि आप बाह्रय दृष्टि से संत या साधु भले ही ना हो लेकिन आप अंतर से तो साधू ही हो। लोगों के अंत्यत आग्रह से सेठजी बाहर गए और वरुण देवता को प्रार्थना कि यदि मैं ने अपने जीवन में कभी भी सत्य का साथ ना छोड़ा हो तो कृपया हमारी इस समस्या का समाधान कीजिये। बस थोड़ी ही देर में मेघराजा बरसे और अकाल से सुकाल हो गया।
पूज्यश्री फरमाते है कि आत्मिक बल से की गई साधना अवश्य सिद्धियां प्राप्त करवाती है। आत्मिक बल की साधना-उपासना से ही खिलता है। एक तरफ सामयिक-प्रतिक्रमण-क्रिया आदि की बाह्रय साधनाओं को सावधान करना है तो दूसरी तरफ परमात्मा के वचनों की परमात्मा की आज्ञाओं की साधना करना है। परमात्मा के वचनों की साधना यानि क्या? इसका जवाब देते हुए पूज्यश्री ने फरमाया कि स्वयं में पड़े हुए कषायों को दूर करना ौर अपने खराब स्वभाव को सुधारने से प्रभु के वचनों की साधना संभव हो सकती है। जैसे घर के एक भी कोने में पड़े हुए कचरे को नौकर के पास ध्यान रखकर साफ करवाते हो, घर को स्वच्छ और सुंदर बनाते है ठीक वैसे ही आत्मा से रहे हुए क्रोध-मान-माया-लोभ आदि कषाय रुपी कचरे को भी इतनी ही सावधानी से साफ करके अपने आत्मा को शुद्ध एवं विशुद्ध बनाना होगा। परमात्मा के वचनों के श्रवण के पश्चात् आत्म निरीक्षण करके स्वयं को सुधारना ही सही रुप से साधना कहलाती है।
शास्त्रकार भगवंत फरमात है कि करोड़ वर्ष तक यदि दुष्कर तप किया भी हो लेकिन एक मिनिट के गुस्से से सब कुछ निष्फल हो जाता है। देव-गुरू की कृपा से कषाय मंद होते है। कुछ वर्षों पूर्व पूज्य गुरूदेव की निश्रा में सिकंद्राबाद नगर में गुस्से को कैसे नियंत्रित किया जाये इस विषय पर निबंध स्पर्धा का आयोजन किया गया। एक भाई ने पूज्य गुरूदेव से कहा कि गुरूदेव। देव-गुरू की परम कृपा से मुझे आज तक जीवन में किसी पे गुस्सा नहीं आया। देव-गुरू की कृपा का अनुभव प्रत्यक्ष रूप से इस भाई को हुआ। उन्होंने एक बार अपने घर के नीचे रहते एक आदमी को जोर से इतना ही कहा-जरा ध्यान रखा करो उसके बाद उन्हें बिलकुल चैन ना पड़ा। गुरू भगवंत के पास आकर अपने इस कृत्य के लिए प्रायश्चित की मांग की। यही वास्तव में परमात्मा के वचनों की शुद्ध साधना है। अवसर आये तब उचित विचार करके जो करने योग्य है वह अवश्य कर लेना चाहिए। बकरी ईद के निमित्त में जिन निर्दोष-अबोल प्राणियों की बली अनेक पुण्यात्माओं ने आयंबिल तप की आराधना की है। उन सभी भाग्यशाली आत्माओं की अंतर से अनुमोदना।