केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना न कराने के अपने फैसले पर नए सिरे से विचार करे क्योंकि तमाम नीतियों का सही तरह निर्धारण तभी हो पाएगा जब यह पता चलेगा कि हमारे समाज में विभिन्न जातियों की क्या स्थिति है?
केंद्र सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना कराने से इन्कार किए जाने पर विभिन्न राजनीतिक दलों की आपत्ति सामने आने पर हैरानी नहीं। आपत्ति जताने और जाति आधारित जनगणना को जरूरी बताने वालों में केंद्र सरकार में साझीदार दल जनता दल-यू भी है। आने वाले दिनों में कई अन्य राजनीतिक दल भी जाति आधारित जनगणना के पक्ष में आवाज बुलंद कर सकते हैं, क्योंकि यह एक पुरानी मांग है। भले ही केंद्र सरकार यह तर्क पेश कर रही हो कि पहले भी जाति आधारित जनगणना न होने के कारण आगे भी ऐसा न किया जाना ठीक होगा, लेकिन यह कोई ठोस आधार नहीं। आखिर जब अनुसूचित जातियों और जनजातियों की जनगणना हो सकती है तो शेष वर्गों की क्यों नहीं? यह धारणा सही नहीं कि जाति आधारित जनगणना होने से सामाजिक तानाबाना प्रभावित होगा। जब अनुसूचित जातियों और जनजातियों की जनगणना से सामाजिक समरसता प्रभावित नहीं होती तो फिर इस नतीजे पर पहुंचने का क्या मतलब कि अन्य जातीय समुदायों की जनगणना से ऐसा हो जाएगा? जाति भारतीय समाज की एक सच्चाई है, जिसकी कोई अनदेखी नहीं कर सकता-सरकारें भी नहीं। हमारे समाज और राजनीति में जाति से ही तमाम चीजें तय होती हैं। क्या केंद्र सरकार इससे परिचित नहीं कि सभी राजनीतिक दल किस तरह जातीय समीकरण देखकर अपनी चुनावी रणनीति बनाते हैं? सबसे बड़ी बात तो यह है कि आरक्षण की समस्त नीति ही जाति पर आधारित है।
आखिर यह कहां की समझदारी है कि अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण का निर्धारण उस आंकड़े के आधार पर किया जाए, जो अंग्रेजों के जमाने में की गई जाति आधारित जनगणना से हासिल हुआ था? जातियों के दशकों पुराने आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की नीति तय करना एक तरह से अंधेरे में तीर चलाना है। क्या यह आवश्यक नहीं कि आरक्षण का निर्धारण ताजा आंकड़ों के आधार पर किया जाए? ऐसा करने से आरक्षण की नीति को और अधिक तार्किक बनाने में मदद मिलेगी। जाति आधारित जनगणना न केवल विभिन्न जातीय समूहों के संख्याबल को रेखांकित करेगी, बल्कि यह भी बताएगी कि उनकी आर्थिक स्थिति कैसी है? चूंकि जाति आधारित जनगणना भारतीय समाज की वास्तविक तस्वीर सामने रखने का काम करेगी इसलिए यह काम किया ही जाना चाहिए।
उचित यह होगा कि केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना न कराने के अपने फैसले पर नए सिरे से विचार करे, क्योंकि तमाम नीतियों का सही तरह निर्धारण तभी हो पाएगा, जब यह पता चलेगा कि हमारे समाज में विभिन्न जातियों की क्या स्थिति है? भारतीय समाज में विभिन्न पंथों की तरह तमाम जातियां समाहित हैं, इस सच से इन्कार करने का कोई मतलब नहीं।
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