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महाराष्ट्र में भारी बारिश का कहर न केवल दुखद, बल्कि बहुत चिंताजनक है। रायगढ़ जिले के महाड गांव में भूस्खलन से अनेक लोगों की मौत की आशंका है। हादसा इतना बड़ा था कि शुरुआती हालात से ही अंदाजा लग गया कि चट्टान खिसकने की इस घटना में मरने वालों की संख्या में और इजाफा हो सकता है। महाराष्ट्र के अनेक इलाकों में बारिश से बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं और सेना से मदद लेने की भी जरूरत पड़ रही है। भूस्खलन और मकान गिरने की घटनाओं की सूचना लगातार आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराष्ट्र के रायगढ़ में भूस्खलन के कारण जान गंवाने वालों के परिजनों के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष से 2-2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि की घोषणा की है। घायलों को 50 हजार रुपये दिए जाएंगे। हादसा इतना बड़ा है कि केंद्रीय गृह मंत्री ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की और राज्य को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया। स्वाभाविक  ही एनडीआरएफ की टीमें मुंबई से करीब 160 किलोमीटर दूर महाड पहुंच गई हैं और नुकसान रोकने की कोशिश जारी है। स्थानीय प्रशासन, राज्य सरकार और केंद्र सरकार को मिल-जुलकर कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे हादसों को पुनरावृत्ति न हो। बताते हैं कि यह बस्ती पहाड़ी पर बसी थी और पहाड़ी ही भूस्खलन का शिकार हुई है, जिससे  करीब 25-30 घर चपेट में आ गए। ऐसी जितनी भी बस्तियां देश में हैं, उनको एक बार परख लेना चाहिए। प्रशासन की अनदेखी की वजह से जगह-जगह पहाड़ों पर वैध-अवैध बस्तियां बसती चली जा रही हैं, इन्हें रोकने के लिए पर्याप्त कानून हैं, तो फिर हादसों का इंतजार क्यों? यह जो हादसा हुआ है, इसे केवल प्राकृतिक मानकर नहीं भुलाना चाहिए। ऐसी आपदाएं मानव निर्मित हैं। महाराष्ट्र में जगह-जगह जलभराव की जो सूचनाएं आ रही हैं, उनके पीछे भी कोताही ही है। जिन अधिकारियों पर बसावट की जिम्मेदारी है, वे सही ढंग से काम नहीं कर रहे हैं। ताजा हादसे के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर भी आंच आनी चाहिए, तभी देश में खतरनाक बस्तियों पर लगाम की गुंजाइश बनेगी। ठीक इसी तरह भारी बारिश की वजह से जर्जर मकानों का गिरना भी लापरवाही ही है। दोष भारी बारिश का कम और हमारा ज्यादा है। मुंबई जैसे महत्वपूर्ण महानगर में मकान गिर रहे हैं और लोग दब जा रहे हैं, तो हमें एक बार अपने गिरेबान में ईमानदारी से झांक लेना चाहिए। कोंकण में बारिश की वजह से करीब छह हजार से अधिक लोग फंसे रहे, तो क्यों? चिपलून के जिला कलक्टर के मुताबिक, वशिष्ठ नदी के किनारे अवैध निर्माण और कोलकेवाड़ी बांध से पानी छोड़े जाने से बाढ़ आ सकती है, मतलब खतरा न केवल बना हुआ है, बल्कि उसके बढऩे की आशंका है। वशिष्ठ नदी के जलस्तर में वृद्धि के कारण 70 हजार की आबादी वाला 80 प्रतिशत से अधिक कस्बा जलमग्न हो गया है। छोटी नदियों में भी आई बाढ़ संकेत है कि हमने उनकी राह में बाधाएं बिछा दी हैं। पहले जब तेज बारिश होती थी, तब छोटी नदियां बचाव का काम करती थीं, पर अब देश भर में इन नदियों का जो हाल किया जा रहा है, व्यापकता में निगाह फेरने की जरूरत है। आज अगर हमें बचने के लिए आपदा प्रबंधन दलों और यहां तक कि नौसेना की जरूरत पड़ रही है, तो हमें सोचना ही पड़ेगा कि क्या है स्थाई समाधान।