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अहमदाबाद। संसार यानि आधि-व्याधि-उपाधि का खजाना। प्रतिपल, प्रतिक्षण आधि-व्याधि-उपाधि से पीडि़त ये संसार से बचने के लिए समाधि ही एक तरीका है। शास्त्रकार भगवंतों ने समाधि का अर्थ समाधान बताया है और इसका दूसरा अर्थ है ध्यान में एकाग्र बनना।
मौलिक चिंतक, गीतार्थ गच्छाधिपति  प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी भाविकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि प्रतिदिन जिनके साथ हम रहते हैं उनके साथ समाधान करके रहना की समाधि है। क्योंकि समाधान से समाधि की प्राप्ति हो सकती है। परिवार के प्रत्येक सभ्य में मतभेद हो सकते है लेकिन वह मनभेद में परिवर्तित ना हो इसलिए उसके पूर्व ही समाधान कर लेना समझदारी है। किसी चिंतक ने खूब लिखा है न्याया एक घर में प्रकाश देता है जबकि समाधान दोनों घर को प्रकाशित करता है अर्थात् जब व्यक्ति न्याय की मांग करता है तब किसी एक को अवश्य स्वयं की गलती है या गलत है ऐसा मानना अनिवार्य हो जाता है जबकि समाधान की मांग करने वाले को दु:खी नहीं होना पड़ता। दोनों ही पक्ष को समाधान से संतोष होता है।
पूज्य गुरूदेव ने समाधान को नदी से तुलना करते हुए समझाया कि नदी अपने प्रवाह के साथ बहती रहती है तब चीज में बहुत से पत्थर, कंकर, चट्टानें भी आती है किंतु नदी किसी के लिए रूकती नहीं वह तो बाजू में से अपना रास्ता बनाकर आगे बढ़ती ही जाती है ठीक इसी तरह जीवन के इस प्रवाह में आधि-व्याधि-उपाधि रूपी अवरोधक तत्व बीच में आते है लेकिन समाधान रूपी रास्ता बनाकर आगे बढ़ते जाना है। जीवन में आ रही प्रत्येक समस्या अपना समाधान साथ लेकर ही आती है। प्रत्येक समस्या का एक ही समाधान परमात्मा ने बताया है मेरे कर्मों के कारण ही मुझे यह सब भोगना है। शास्त्रकार भगवंतों ने अपने को कर्मग्रंथ आदि शास्त्र दिये है जिनके सहारे हम अपने जीवन में आती हुई प्रत्येक समस्या का समाधान सरलता से पा सकते है।
याद करो सती अंजना को और दमयंती को जिन्हें किसी भी कारण के बिना बन में अकेला छोड़ दिया गया। इन में इतना सत्व था, श्रद्धा थी कि परमात्मा के शरण को स्वीकार करने से इस समस्या का समाधान अवश्य निकल जायेगा। द्रोपदी का भरी राज सभा में चीरहरण हो रहा था तब संपूर्ण राज सभा में बैठे महारथीयों में से किसी की ताकात नहीं थी कि इस अपकृत्य को रोक सके। द्रौपदी ने आंखें बंध करके पूर्ण श्रद्धा से अपने इष्ट देव तथा मंत्र का स्मरण किया, उनके शरण का स्वीकार किया और उनकी इस समस्या का समाधान उन्हें प्राप्त हो गया। परमात्मा तो अनंत शक्ति के स्वामि है,करुणा वत्सल है, परार्थ व्यसनी है ऐसे परमात्मा के शरण स्वीकार करने से परम शाता समाधि की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में दो प्रकार के वीर्य बताये गए है आभोग वीर्य, अनाभोग वीर्य आभोग वीर्य यानि जो प्रवृत्ति करते समय आपको पता हो कि आप क्या कर रहे है। अर्थात् कोन्शीयस्ली क्रिया करना। अनाभोग वीर्य यानि जो प्रवृत्ति करते समय अपना ध्यान न रहे। अर्थात् अवचेतना माईन्ड चेतना माईन्ड से ज्यादा पावरफूल होता है। ठीक वैसे ही अदृश्य शक्ति अधिक शक्तिशाली होती है। 
एक सूर्य के पास अनेक सोलाए इलेक्ट्रिकल साधन चलाने का सामथ्र्य है तो बारह-बारह सूर्यों से मिलकर जैसे परमात्मा के महान भामंडल को अद्भुत प्रकाश एवं शक्ति से युक्त दर्शाते है। ऐसे परमात्मा कितने शक्तियों के स्वामि होंगे? पूज्यश्री ने उपस्थित श्रोताओं को बताया कि आधि-व्याधि-उपाधि से दूर होना हो तो समाधि की राह पे चलें आप स्वयं सहजता से इनसे मुक्त हो जायेंगे। समाधान से समाधि की तरफ पहुंचा जा सकता है और आगे बढ़ते-बढ़ते परमात्मा पद तक पहुंच सकते है। आखिर में यदि कोई समस्या का समाधान ना प्राप्त हो तो परमात्मा को शरणागत हो जाता।