अहमदाबाद। एक भाई गुरू भगवंत को बाजते-गाजते अपने व गृहांगण में पदार्पण के लिए ले आए। बहुत घूम-फिरके उनके घर पहुंचे तो गुरू भगवंत ने पूछा-कि इतना घूमाकर क्यों आए? तो भाई ने कहा कि बैंड वाले को इतने पैसे दिये तो वसूल करना था। इसी तरह अनंत पुण्याई से प्राप्त हुई इस मनुष्यभव को बराबर वसूल करना है। जीवन तो कब समाप्त हो जाएगा पता नहीं अत: निरंतर आराधना करते रहना।
श्रीलब्धि-विक्रम गुरूकृपा प्राप्त, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ. देवराज्यशरसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि आराधना दो प्रकार से होती है तप-त्याग आदि, स्वभाव को सुधारना अर्थात् कषायों को मंद करना। किसी व्यक्ति ने कहा मेरा गुस्सा इतना है कि पूछो मत। लगभग मेरे जैसे गुस्सा किसी का नहीं है। वह गर्व कर रहा था। पूज्य गुरूदेव कहते है कि परमात्मा का शासन मिला है तो अपने प्रयत्न करना। स्कूल कभी बंध नहीं हो सकती, फैक्टरी कभी बंध नहीं हो सकती फिर भी वैश्विक महामारी कोरोना के कारण सब बंध रहा। लॉकडाउन के दरम्यान ऐसा लग रहा था जैसे जीववन प्रवाह स्थगित हो गया हो। ठीक इसी तरह जब गुस्सा आये तब समझना कि हे। त्रिशलानंदन आपका लॉकडाउन हो गया। पूज्यश्री फरमाते है कितने ही लोग ध्यान करते है, विपश्यना के क्लास भरते है, रवि शंकरजी के आर्ट ऑफ लिविंग के क्लास करते हैं, लेकिन इन सभी से अधिक प्रवचन सुनकर स्वभाव सुधारना, गुस्सा कम करना तथा परिवर्तन लाना अनिवार्य है। बाह्रय तप की क्रियायें, प्रतिदिन सौ-दो सौ गाथा मासक्षण आदि सबके बस की बात नहीं है लेकिन अपने स्वभाव को सुधारना, आंतरिक शत्रु रूपी कषायों को दूर करने का प्रयत्न सभी कर सकते है। कितना प्रचंड वैराग्य था बाहुबलीजी का कि इतना बड़ा राज्य, सुख-संपत्ति-समृद्धि का त्याग कर दीक्षा ग्रहण की और बारह-बारह महिनों तक काउसग्ग ध्यान में लीनरहे। बाहुबलीजी का कायोत्सर्ग यानि एक स्तंभ की तरह स्थिर खड़े रहे, कितने ही पक्षियों ने उनके दाढ़ी में अपना घौंसला बना लिया तो कितनी ही लतायें ने मिलकर उनके संपूर्ण शरीर को ढ़क दिया किंतु वे कायोत्सव में स्थिर रहे। बाह्रय स्थिरता अबज-गजब की थी पर उन्होने उल्टे रास्ते से सीधी मंजिल पहुंचने का प्रयत्न किया जो निरर्थक रहा। अपने से छोटे भाईयों को वंदन ना करना पड़े इस हेतु से वे कायोत्सर्ग में लीन होकर केवलज्ञान की प्राप्ति कना चाहते थे। बाहुबलीजी की कुछ भवितत्वयता अच्छी थी कि प्रभु का ध्यान उनकी तरफ गया और अपने ज्ञान से जाना कि अभियान के कारम उनका केवल ज्ञान अटक रहा है। अत: बाह्रमी और सुंदरी उनकी दोनों बहनों को समझाने भेजा उन्होंने अपने भाई को समझाया कि केवल ज्ञान क रोकने वाला अभियान कब तक करोंगे? बस योग्य आत्मा को इशारा ही काफी होता है। आगे क्या हुआ वो सबके समक्ष है। इस दृष्टांत से यह बात तो सिद्ध होती है किध्यान से भी अधिक आत्म शुद्धि की महत्ता है।
पूज्यश्री फरमाते है कि किसी भी तरह कषायों को दूर करने की अनुप्रेक्षा करनी चाहिए। क्रोध, मान, माया, लोभ रूपी कषायों से समाधि अटक जाती है। क्रोध से प्रीति का नाश होता है और मान से विनय का नाश होता है। ऐसे भयंकर कषायों से निरंतर बचने के लिए निरंतर प्रयत्न तथा पुरूषार्थ करना चाहिए। अभियान तो किसी भी चीज का करने जैसा नहीं, किसी को अपने ज्ञान का अभियान होता है, किसी को अपनी शारीरिक शक्ति का अभियान होता है, किसी को अपनी कला-कौशल्य का अभिमान होता है लेकिन शास्त्रकार भगवंत फरमाते है कि जि चीज का अभियान करते है वह अपने से कोसों दूर हो जाती है। जितने नम्र होते है उतना।ही नव्य ज्ञान आदि प्राप्त कर सकते है। किसी भी व्यक्ति को यदि जीवन परिवर्तन करना हो, सुधरना हो, समाधि प्राप्त करनी हो तो पहले अपनी गलती का एहसास होना, फिर उसे स्वीकार करके सुधारने से अपने स्वभाव को अच्छा बना सकते हो। प्रत्येक आगम का, शास्त्रों का एक ही सार है कषायों से मुक्त होना और वीतरागीता प्रगट करना है।
Head Office
SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH