मनोज चतुर्वेदी
टोक्यो ओलंपिक में स्टार शटलर पीवी सिंधू के कांस्य पदक जीतने और पुरुष और महिला हॉकी टीमों के सेमी फाइनल में स्थान बना लेने से देश में खुशी का माहौल है। यह सही है कि ओलंपिक खेलों में भारतीय प्रदर्शन नाज करने वाला कभी नहीं रहा है। पर 2016 के रियो ओलंपिक में खराब प्रदर्शन के बाद सुधरे खेल माहौल से लगा था कि इस बार हम अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर कम से कम दो अंकों में पदक के साथ लौटेंगे। पर युवा निशानेबाज देश की उम्मीदों का बोझ झेलने में नाकामयाब हो गए और इससे देशवासियों में पहले दिन वेटलिफ्टर मीराबाई चानू के रजत पदक से बनी खुशी का माहौल मायूसी में बदल गया।
सौरभ चौधरी, मनु भाकर, दिव्यांश पवार और इलावेनिल जैसे युवा निशानेबाजों से देशवासियों ने पदक की उम्मीदें लगाई थीं, पर वे उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके। जबकि जिस महिला हॉकी टीम से क्वार्टर फाइनल तक पहुंचने की उम्मीद नहीं थी, उसने तीन बार के चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराते हुए सेमी फाइनल में स्थान बनाकर सबको हतप्रभ कर दिया है। हमारी महिला हॉकी टीम पुरुष टीम की तरह विश्व की मजबूत टीमों में शुमार नहीं होती। पर शुरुआती तीन मैच हारने के बाद उसने जो जादुई प्रदर्शन किया है, उसे कौन भुला सकता है!
महिला टीम से पहले पुरुष हॉकी टीम ने ग्रेट ब्रिटेन को हराकर सेमी फाइनल में स्थान बनाकर साबित कर दिया कि वह अब बिग लीग वाली टीम हो गई है। जिस देश में दशकों तक ओलंपिक का मतलब हॉकी में स्वर्ण जीतना रहा हो, वह 49 साल बाद सेमी फाइनल में पहुंचा है, और यदि वह पदक जीतता है, तो 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद हॉकी में यह पहला पदक होगा। हम भारतीय लंबे समय तक हॉकी के बूते ही जश्न मनाते रहे हैं, क्योंकि अन्य खेलों में न तो भाग लेने वाले खिलाडिय़ों में पदक जीतने का भरोसा होता था, न देशवासी ही उनसे पदक की उम्मीद करते थे।
बीच-बीच में मिल्खा सिंह, पीटी ऊषा और अंजू बॉबी जॉर्ज जैसे खिलाड़ी जरूर पदक के करीब पहुंचकर वाहवाही लूटते रहे। दूसरी खेल स्पर्धाओं में पदक जीतने की शुरुआत 1996 के अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस के पदक जीतने से हुई। तब से हमने ओलंपिक से खाली हाथ लौटना बंद कर दिया। पीवी सिंधू ने पिछले रियो ओलंपिक में रजत पदक जीता था और इस बार उनसे स्वर्ण की उम्मीद की जा रही थी। पर वह सेमी फाइनल में चीन- ताइपे की ताई जू यिंग के खिलाफ पिछली हारों के खौफ से उबर नहीं सकीं और हार गईं। इसके बावजूद कांस्य पदक जीतकर वह लगातर दो ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गईं।
सिंधू अब बैकहैंड की कमजोरी को मजबूती में बदलने के साथ नेट पर खेल में पारंगत हो गई हैं। वह तो अभी उम्र के उस दौर में हैं कि पेरिस में होने वाले अगले ओलंपिक में भी स्वर्ण पदक के लिए संघर्ष कर सकती हैं। हॉकी के अलावा निशानेबाजी इकलौती स्पर्धा है, जिसमें भारत ने लगातर तीन ओलंपिक खेलों-एथेंस, बीजिंग और लंदन में पदक हासिल किए थे। पर रियो ओलंपिक से खाली हाथ लौटने के बाद भारतीय निशानेबाजी की कमान यंग ब्रिगेड के हाथों में आ गई और इन युवाओं ने विश्व कपों में स्वर्ण पदकों पर निशाने लगाकर टोक्यो में अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीद बंधा दी थी। पर निशानेबाजों के फ्लॉप शो के बाद अब यदि विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया की अगुआई में पहलवान कुछ पदक जीत सकें, तो देशवासियों की खुशी में और इजाफा हो सकता है।
इसमें दो राय नहीं कि ओलंपिक खेलों में भाग लेते समय अलग ही दबाव होता है, क्योंकि दुनिया के सभी शीर्ष खिलाड़ी यहां मुकाबला करते नजर आते हैं। इस दबाव से निपटने के लिए अनुभव के साथ संयम रखना भी जरूरी है। यह मानसिक मजबूती से ही आ सकता है। सिर्फ इस ओलंपिक में ही नहीं, पिछले कुछ ओलंपिक खेलों में भी हमारे खिलाड़ी मानसिक मजबूती के मामले में कमजोर नजर आए। इसलिए भविष्य में इस पक्ष पर भी विशेष काम करने की जरूरत है। साथ ही, कोच और खिलाडिय़ों के बीच टकराव को भी समय रहते निपटा लेना होगा।
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