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अहमदाबाद। कोई भी बात या घटना जब ह्रदय को छू जाती है तो वह सहजता से याद रह जाती है। शास्त्रों की बात जब ह्रदय को छू जाती है तो स्थिरता उत्पन्न होती है। अनादि काल से चली आई भवयात्रा का स्टॉप इस बार जिनशासन में आया है। इस स्टॉप पे आई हुई गाड़ी को आगे कहां और कैसे ले जाना है उसका मार्गदर्शन गीतार्थ गुरू भगवंत के पास लेना।
आगम सूत्रों के रहस्य को सरल भाषा में समझाते हुए गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीवरजी म.सा. ने उपस्थित श्रोताओं को संबोधित करते हुए फरमाया कि अनादिकाल से चल रही इस संसार यात्रा को जिनशासन के स्टॉप पे मोक्षयात्रा बनाना है। कई लोग ऐसे होते है जिन्हें यह पता ही नहीं होता कि जीवन को किस तरह मोड़ देना है, किस राह पे आगे बढ़ाना है। ऐसे समय में किसी के मार्गदर्शन की आवश्यकता होतीहै। जो केवल गीतार्थ गुरू भगवंत ही दे सकते है। धर्म की प्राप्ति हो तो ही निर्वाण पद की प्राप्ति संभव है। यदि सरलता हो तो ही धर्म तुम्हारे में आता है। अर्थात् सरल बनने से मोक्षमार्ग सरल बन जाता है। कई लोगों का ऐसा मानना है कि आज के युग में सरल रहने जैसा नहीं है। पूज्य गुरूदेव फरमाते है कि सरल और भोलेपन में बहुत अंतर है। इन दोनों के अंतर को दृष्टांत के माध्यम से समझते है- एक गांव में अत्यंत श्रीमंत श्रावक रहते थे। एक बार वे अपने किसी काम से बहुत बड़ी गाड़ी में बैठकर कहीं जा रहे थे। तब चोरों की नजर उस श्रेष्ठी की तरफ गई और उन्होंने उसे लुटने की योजना बना ली। जब वह श्रेष्ठीवर्य अपने गांव लौटे रहे थे तब बीच में ही उनकी गाड़ी को रोककर उन्हें धमकाने लगे और कहा कि 5000 सोना मोहर दोगे तब ही यहां से निकलने देंगे। श्रेष्ठीवर्य ने अपने पुत्र को चिट्ठी लिखकर भेजी और पुत्र ने पिता को बचाने के लिए चोरों को 5000 सिक्के दे दिये। जैसे ही ये सिक्के चोरों को मिलने उन्होंने परीक्षा करने के लिए श्रेष्ठीवर्य को कहा। यह श्रेष्ठीवर्य एक उत्कृट श्रावक भी थे जो संपूर्ण जीवन सत्य के पक्ष में रहे और सत्य का पालन-पोषण किया। श्रेष्ठीवर्य ने सोचा कि इन चोरों में भी कुछ नहीं लगाया और इन्हें पैसों की जरूरत होगी इसलिए ऐसा कार्य कर रहे है। मैं ने मेरे संपूर्णजीवन में सत्य का पालन-पोषण किया और यदि आज सत्य बोलकर मृत्यु आ जाये तो भी वह बलिदान ही कहलायेगा। बस ऐसा सोचकर श्रेष्ठीवर्य ने चोरों को सत्य बात बताने का निश्चय कर लिया।ये ऐसे श्रावक थे  जो जीवन को चाहते थे लेकिन मृत्यु से डरते नहीं थे। बस उनके अंदर रही हुई सरलता-सज्जनता से स्वयं का व्रत पालन करते हुए, जीवन की परवाह किये बिना चोरों को कह दिया कि यह सिक्के नकली है। उनकी सरलता-सज्जनता और सत्य बोलने की निष्ठा से चोरों ने उनकोहाथ जोड़कर कहा कि पैसे मिले या नहीं लेकिन आप जैसे सच्चे व्यक् िके दर्शन तो हुए। अत: शास्त्रकार भगवंत कहते है कि सरलता-सज्जनता-सत्य से निर्वाण पद की प्राप्ति हो सकती है। सरलता भी ऐसी हो जिससे किसी को नुकसान ना हो। अब भोलापन किसे कहते है और उससे क्या तकलीफ हो सकती है वो इस दृष्टांत से समझते है एक भाई के वहां एक लड़का एकदम भोला जिसका थोड़ा दिमाग कम था वह काम पे था। भाई के दुकान पे कोई मेहमान आये तो उस लड़के को चाय लाने को कहा था। वह लड़का हाथ में चाय ला रहा था और बीज में ही गिर गई तो उस भाई में समझाया कि अब सै मैं कुछ भी मंगवाऊं तो ड्राई में ही लाना। थोड़ी देर बाद भाई ने शॉपस मंगवाये तो उनको ड्राइ में रखकर लाया। अत: सरलता और भोलेपन में बहुत फर्क होता है। जिनके जीवन में सत्य-सरलता और सज्जनता की निष्ठा हो उन्हें कदम-कदम पे चमत्कारों का अनुभव होता है। शास्त्रों में सरलता से सर्जन हुए अनेक चमत्कारों की हारमाला है। सरल शब्द मिलने से काम नहीं होता आत्मा में उसकी परिणति आनी चाहिए। सरलता से महान आनंद की अनुभूति होती है और अव्याबाध सुख की प्राप्ति होती है। बस सरल बनकर जीवन में धर्म की स्थापना करके अंत में निर्वाण पद को प्राप्त करें।