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अहमदाबाद। जन्म और मरण के बीच का समय यानी जीवन, जिंदगी। पहला और अंतिम पड़ाव तो हर किसी के जीवन में निश्चित ही है किंतु बीच का जो समय है यानी जिंदगी है उसे कैसे जीते है वो अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। प्रतिदिन कितने ही जन्म और मरण अपने आसपास होते हैं लेकिन ध्यान तो केवल कुछ लोगों की तरफ ही केंद्रित होता है। ये कुछ लोग अपनी जिंदगी में छोटे-छोटे सिद्धांतों से आदर्श स्वरूप बन अपना निशा छोड़ जाते हैं।
ऐसे ही महान व्यक्तियों में से एक ते कविकुल किरीट प.पू.दादा गुरूदेव लब्धिसूरीश्वरजी म.सा. आज उनके कालधर्म के साठ-साठ वर्षों के बाद भी उनके गुणानुनाद सभाओं का भव्य आयोजन किया है। पूज्यश्री स्वयं अपने मुखारविंद से अपने दादा गुरुदेव के गुणों के गौरवशाली इतिास को श्रोताओं के समक्ष फरमाते हुए कहते है कि -
गुरूणाम् गुणवर्णनम् स्वाध्याय समप्रोक्तम्
अर्थात् गुरू भगवंतों के गुणों का वर्णन, गुणों का गान भी एक प्रकार का स्वाध्याय ही कहलाता है। पूज्यश्री तो कहते है कि जिस दिन शिष्य अपने गुरुदेव के गुणानुनाद ना करे उसका वह दिन व्यर्थ ही गया समझो।
पू.दादा गुरूदेव की कुछ तो ऐसी विशेषतायें होंगी ही कि आज उनके कालधर्म के इतने वर्षों के पश्चात् भी कोई भेदभाव
बिना सभी उनके गुणानुनाद करने तत्पर बने है। पू.दादा गुरूदेव का व्यक्त्तिव ही इतना आकर्षक, इतना मधुर है कि भलभला व्यक्ति उनके प्रति अनुरागवाला बन जाता है। यहां तक कि उन्हें मारने के इरादे से आये हुए लोग भी उनसे बात करने के पश्चात् उनके सत्संग से वे दादा गुरूदेव की बात को मान्य कर उस सिद्धांत को अपना लिया। क्या था वह सिद्धांत? पू.दादा गुरूदेव गुजरानवाला की ओर विहार करने निकले थे और बीज में मुलतान गांव आया। वहां मांसाहार का दृय देख पू.दादा गुरूदेव उन अबोल पशुओं की आवाज बनकर अपनी ओजस्वी वाणी से लोगों के दिल ह्रदय ही नहीं बल्कि जीवन परिवर्तित कर दिए। शाकाहार का ऐसा जबरदस्त सिद्धांत अपनाने वालों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि होते देख कुछ मांसाहार प्रिय लोग पू.दादा गुरूदेव को मारने के इरादे से उनके पास आ पहुंचे। पर यह तो महापुरूष महायोगी थे उनकी वामई में ही ऐसा जादू था कि वे लोग भी शाकाहार को अपनाने तत्पर बनें।
उनके ऐसा महान विभूति के काव्यों का मूल्यांकन करना भी गुणानुनाद कहलाता है। काव्यों की श्रृंखला में आज पूज्य गुरुदेव ने दादा गुरूदेव रचित एवं अत्यंत लोकप्रिय गायन/स्तवन की इन पंक्तियों से सभा में बैठे प्रत्येक भाविक को भाव विभोर बना दिया सिद्धाचलना वासी जिनने क्रोडो प्रणाम
इस स्तवन की रचना पू.दादा गुरूदेव ने आज से 77 वर्ष पूर्व जब अचानक से श्री शत्रुंजय तीर्थोधिपति आदिनाथ दादा के आदेश से गोडी पाश्र्वनाथ दादा की प्रतिष्ठा अवसर पर शाश्वत गिरिराज आना हुआ तब बनाया था। यह स्तवन केवल सुंदर शब्दों का संकलन नहीं है परंतु प्रत्येक शब्द में, पद में, अक्षर में पूज्य दादा गुरूदेव के ह्रदय में भरे भक्तिभाव एवं आनंद को प्रदर्शित करता है। जैसे एक बच्चा अपनी मां को मिलने तड़पता है, जैसे भ्रमर पुष्य के रस को चाहता है उससे कई अधिक तड़प और चाहत एक भक्त को अपने प्रभु के लिए होती है। ऐसे
भावों को दर्शाता हुआ यह सुंदर काव्य अत्यंत लोकप्रिय बना। आज तो लोग इसे गाते हैं लेकिन जब यह इसकी रचना हुई थी तब भी रेडिया पर यह गीत बजता था। ऐसे भावों से भरी दिल को छू जाने वाली अद्भुत रचना करने वाले पू-दादा गुरूदेव को भाव से नमन-वंदन कर भावांजलि अर्पण।