अहमदाबाद। कोई व्यक्ति यदि कपड़ों के ब्रान्ड के मार्केटिंग सेक्टर में हो तो वह उसके कंपनी के ब्रान्डेड कपड़ों की मार्केटिंग करेगा, कोई यदि नई होटल या रेस्टोरन्ट में जाके आये और कहां का भोजन आदि पसंद आ जाये तो उसकी जानकारी अपने समस्त परिचित वर्ग को देते है, वैसे ही गुणानुराग की मार्केटिंग श्री लब्धि समुदाय ने ली है। आज 60-60 वर्ष बाद भी जब गुणानुराग सिखाने वाले जैनरत्न व्याख्यान वाचस्पति प.पू.दादा गुरूदेव लब्धि सूरीश्वरजी म.सा.विद्यमान भले नहीं है लेकिन उनका यह संदेश, उनके श्रमण-श्रमणी भगवंत आज भी फैलाने का सुंदर कार्य कर रहे है। श्रावण सुद पंचमी, 13/08/2021 का शुभ दिन एक नई उमंग एवं उत्साह लेकर आया। बाइसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ प्रभु का जन्म कल्याणक दिन तथा पू.दादा गुरूदेव की 60 पुण्यतिथि का पावन दिन। लब्धि समुदाया के वर्तमान गच्छाधिपति प्रखर प्रवचनकार प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. के शुभ निर्देश एवं प्रेरणा से अहमदाबाद राजनगर के 60 संघों में भव्य गुणानुवाद सभा तथा जिनालयों में सुंदर अंगर रचना, भारत के विविध राज्यों में शहरों में लब्धि गुणानुवाद सभा तथा अंग रचना का अनुपम आयोजन किया गया। केवल भारत सीमित ना रहकर यह लब्धि दिन विदेश में भी जनता न्युजर्सी, अमेरिका, जापान आदि राज्यों में भी भव्य अंग रचना तथा गुणानुवाद सभा का सुंदर आयोजन लब्धि गुरूभक्तों ने किया। क्या जबरदस्त व्यक्तित्व के स्वामी होंगे दादा गुरूदेव कि साठ-साठ वर्षों के पश्चात् भी उतनी ही धूमधाम से उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है मानो प्रतिवर्ष जाहोजलाली बढऩे ही जाती हो ऐसा प्रतीत
हो रहा है। गुणानुवाद सभा में विराट संख्या में भाविकगण उपस्थित हुए तो साथ ही साथ आचार्य भगवंत, पदस्थ भगवंत, मुनि भगवंत तथा श्रमणी भगवंत भी बिराजमान हुए। सभी ने अपने-अपने भावों को, भक्ति को शब्दों द्वारा, कविताओं द्वारा सभा के समक्ष व्यक्त किए। इसी श्रृंखला में पूज्य गुरूदेव ने गुणानुराग का सही अर्थ समझाया। गुणानुराग यानि किसी के भी गुणों का कीर्तन करना, स्तवना करना, अनुमोदन करना। गुणानुरागी बन पाना थोड़ा सा कठिन अवश्य है किंतु अशक्य नहीं है। क्योंकि व्यक्ति अपने शरीर की चिंता का त्याग कर समता और सहशक्ति को प्रगटा सकता है लेकिन गुणानुराग प्रगटाने के लिए अभियान का चूरा करना कठिन होता है। ऐसा कठिन कार्य में पू.दादा गुरूदेव सरलता से सफल बनें तथा गुणानुराग का महान गुण जैसे उनका सहज स्वभाव बन गया। अत: सार किसी कवि ने भी कहा है-
गुणी च गुणानुरागी च सरलो विरलो जगत
जो आत्मा गुणी हो, गुणानुरागी हो वह सरल एवं विरल माने जाते हैं। पूज्यश्री फरमाते है कि यदि गुणी तता गुणानुरागी की सिद्धि हमें प्राप्त हो जाये तो कभी दु:खी नहीं होते। पूज्य दादा गुरूदेव ने अपने अंतिम समय में अपने शिष्यों को इकट्ठा कर सही हितशिक्षा प्रदान की थी जीवन में कभी भी किसी की निंदा नहीं करना और यदि कभी मन हो जाये तो मुझे याद कर लेना। तुम्हें निंदा करने की भावना ही नहीं होगी। इस वाक्य से पू.दादा गुरूदेव का अद्भुत आत्मविश्वास झलकता है। सत्य भी है, क्योंकि पू.दादा गुरूदेव वादि होने पर भी एक महान गुणानुरागी व्यक्तिव के स्वामि थे। उन्हीं के संदेश को आगे बढ़ाते पूज्य गुरूदेव ने फरमाया कि यदि गुणानुरागी ना बल सको तो कुछ नहीं लेकिन किसी की निंदा करने की ना सोचें।
दुनिया में कोई दुर्जन या दोषी ना हो ऐसा नहीं बन सकता। अत: किसी की भी बातों में आकर कभी भी निंदा को चखने की इच्छा मत करना। निंदा ऐसा महापाप है जो हमें नरक के द्वार तक ले जाता है तथा मिथ्यात्व की भी प्राप्ति करवा सकता है। ऐसे महापाप से बचना है और गुणानुराग का महान लब्धि संदेश समस्त विश्व में फैलाना है। पूज्य गुरूदेव ने उपस्थित भाविकों को कहा कि यदि आपको लब्धि गुणानुवाद सभा में आनंद आया हो, अच्छा लगा हो तो अपनी डायरी में प्रतिदिन एक व्यक्ति का सद्गुण लिखना। गुणानुरागी बन ऐसे महापुरूषों के गुणान से गुणों की प्राप्ति हो यही अभिलाषा, यही शुभ भावना।
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