अहमदाबाद। कोई भी व्यक्ति अपने कार्यों से महान बनता है। अपने विचारों से, आचार से, चिंतन से व्यक्ति बहुत बड़ी क्रांति ला सकता है। ऐसे महान सत्वशाली, शक्तिशाली, क्रांतिकारी पुरूष व्यक्तियों को सब सदैव याद करते है। ऐसे ही ेक सत्वशाली महापुरूष की पुण्यतिथि का मंगलमय अवसर आया।
जैसे नाइक ब्रेंड अपने स्पोटर्स आइटम के लिए प्रसिद्ध है, रेसन्ड्स अपने कपड़े की क्लालिटी के लिए प्रसिद्ध है, रिलायन्स अपने डिर्पाटमेन्टल स्टोर्स तथा फोन के नये नये प्लान के लिए प्रसिद्ध वैसे ही लब्धि समुदाय अपने गुणानुराग के लिए विख्यात है अहमदाबाद श्री प्रेरणा तीर्थ संघ में चातुर्मास बिराजमान प्रखर प्रवचनकार, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी म.सा. की शुभ निश्रा में युग प्रधान आचार्य सम पू. पंन्यास चन्द्रशेखर वि.म.सा. की दसवीं पुण्यतिथि के पावन प्रसंग पर अद्भुत गुणानुवाद सभा का आयोजन हुआ। आसपास के संघों में से भी पूज्य गुरू भगवंतों को विनंति की और समस्त गुरू भगवंत गुणानुवाद करने उपस्थित हुए। पूज्यश्री ने फरमाया कि प्रशस्त राग के बिना जीना दुष्कर हो जाता है। शास्त्रों में दो प्रकार के राग बताये गए है-प्रशस्त और प्रशस्त। व्यक्ति के प्रति जो राग होता है वह अप्रशस्त राग कहलाता है और किसी एक गुण के प्रति राग हो तो वह प्रशस्त राग कहलाता है। प्रशस्त राग से गुणानुराग प्रगट होता है।
यदि केले का कोई भाग सड़ा हुआ तो उसका ये अर्थ नहीं है कि पूरा केला फैंक दे लेकिन केवल सड़े हुए भाग को निकालकर बाकी उपयोग में लिया जा सकता है। ठीक वैसे ही प्रत्येक व्यक्ति में गुण और दोष दोनों होते हैं। अपने को जो पसंद आये वो अपनाना जो ना आये उसे छोड़ देना। पूज्यश्री तो अत्यंत गुणानुरागी होने के कारण लगभग चार घंटे तक पू.पंन्यासजी म.सा. की गुणानुवाद सभा में अपनी निर्मल निश्रा प्रदान की। पू. पून्यासजी म.सा. का संसारी नाम इन्द्रवदन भाई था और वे मुंबई निावासी थे। राधनपुर के श्रेष्ठी श्री जीवा भाई प्रतापशी उनके बड़े पिताजी थे और उनके पिताजी श्रेष्ठीवर्य श्री कांतिभाई मुंबई के शेयर मार्केट के किंग कहलाते थे। जब पू.पंन्यासजी महाराज ने दीक्षा ग्रहण की तब मुंबई के स्टॉक एक्सचेंज मार्केट बंध रहे और वहां के समाचार पत्रो में हेडलाईन थी मुंबई का शालिभद्र दीक्षा लेने जा रहा है। सिद्धांत महोदधि प.पू. प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. के पावन चरणों में अपना सर्वस्च समर्पित कर वे गुरूकृपा हि केवलम् की साधना-उपासना करने लगे। प.पू. लब्धिसूरीश्वरजी म.सा. ने पू.प्रेम सू.म.सा. को पत्र में लिखा था कि मुनि चंद्रशेखर विजय में एक अद्भुत शक्ति का स्त्रोत बह रहा है, आप उसे कुशल एवं कुशाग्र बनाकर अवश्य आगे बढ़ाना। महापुरूषों की दृटि ही अलग होती है।
पू.पंन्यासजी म.सा. एक क्रांतिकारी पुरूष थे तो करुणासागर भी थे, वे ओजस्वी प्रवचनकार थे तो सिद्ध हस्त लेखक भी थे। उन्होंने विश्व की सर्वप्रथम तपोवन यानि संस्कारों की फैक्ट्री की स्थापना की। पूज्य गुरूदेव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. जब तपोवन पधारे तो उनके ह्रदयोद्गार थे कि मैं ने आज एक साथ चार सौ शिखरबंधी मंदिरों के दर्शन एक साथ किये अर्थात् उनके समक्ष उपस्थित 400 बालकों को देखकर ऐसे उद्गार व्यक्त किये क्योंकि एक मंदिर की स्थापना के बाद जब दूसरे मंदिर की स्थापना करते है तो उसे आगे बढ़ाने के लिए सात क्षेत्रों को आगे बढ़ाना होगा और यह क्रांतिकारी कार्य पू.पं.चंद्रशेखर वि.म.सा. ने किया। पूज्यश्री नम्रता के स्वामि होने के कारण पू. पंन्यासजी म.सा. को वंदन करते। पूज्यश्री ने फरमाया की चालीस वर्ष की दीर्घ यात्रा चार घंटों में वर्णन कर पाना असंभव होगा। लेकिन सभी गुरू भक्तों को संकल्प करना है कि पू.पंन्यासजी म.सा. के संदेश को जन-जन तक फैलाना है। साथ ही पूज्यश्री ने निर्देश किया कि जो दूर के संबंध वाले होते है वे केवल गुणानुवाद करते है लेकिन जो निकट होते है वे तो गुणानुकरण करते है। अत: उपस्थित गुणभक्तों को अलग अलग आयोजन एवं अभियान बताते हुए सभी को पू.पंन्यासजी म.सा. के संदेशवाहक बनने की तथा तद्नुसार कार्य करने की मंगलमय प्रेरणा पूज्य गुरूदेव ने की। अंत में यही समझना है कि टीम वर्क में ही मजा है क्योंकि वह सफलता की ध्वजा है। शासन के समस्त गुरूभगवंत एक ही नाद गूंजित करे और एकता के संगठन में संगठित होकर अद्भत शासन प्रभावना करें।
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