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अहमदाबाद। विश्वर में कई प्रकार के प्राणी है, जीव है। किसी में बोलने की शक्ति है तो विचारने की सोचने की शक्ति नहीं होती, किसी में सोचने की शक्ति है तो बोलने की नहीं होती पर जिसके पास सोचने की और बोलने की शक्ति के साथ-साथ समझने की शक्ति हो वह केवल मनुष्य ही है। 
प्रभावक प्रवचनकार, गीतार्थ गच्छाधिपति संबोधित करते हुए फरमाया कि दुर्लभता से तथा महापुण्याई से मिलने मनुष्य भव को यूं ही व्यर्थ ना जाने दे। इस चातुर्मास दौरान केवल तप-जप की आराधना ही नहीं बल्कि जीवन परिवर्तन स्वरूप आत्मिक आराधना द्वारा आत्मोत्थान करना है। कषायों को अल्प करना वह इस आराधना का मुख्य लक्ष्य है। कषायों की वृद्धि वर्तन एवं वचन से होती है। घटना घटित हो जाती है लेकिन उस समय के वर्तन-वचन द्वारा जो प्रतिभाव होता है उसी से सुख-दु:ख का अनुभव होता है। इसीलिए शास्त्रकार भगवंत कहते है कि बोलने में अत्यंत विवेक होना चाहिए। सत्य बोलना लेकिन ऐसा भी नहीं कि जिससे कषायों में वृद्धि हो। स्तय बोलना अनिवार्य है लेकिन ऐसा सत्य नहीं बोलना जिससे किसी का मन दु:ख।
सत्य बोलकर दुष्परिणाम आये हो ऐसा प्रसंग भूतकाल में भी बना है। द्रौषदी ने दुर्योधन की कह दिया। अंधे का बेटा अंधा ही होता है। दुर्योधन को कहा गया वह वाक्य आधा स्तय है लेकिन इस स्तय से महाभारत का भयंकर युद्ध हुआ जिसमें अनेक लोगों ने अपने परिवार के भाई, पति, देवर, पिता आदि को खोया। एक वाक्य, कड़वे वचन का 
भयंकर परिणाम युद्ध आया। ऐसे तो कई युद्ध अपने भीतर में चलते रहते है जिसका परिणाम कषायों की वृद्धि है। अत: शास्त्रकार भगवंत फरमातेहै कि वचन बोलो तो ऐसा बोलो कि सामने वाले के दिल को छू जाये ऐसे नहीं की उनको मन दु:ख हो। कोई व्यक्ति बोलना शुरू करे तो बस उसे सुनते ही रहने का मन करता है तो कोई व्यक्ति बोले तो ऐसा होता है कि बस अब बोलना बंद कर तो अच्छा।
अत: शास्त्रकार भगवंत कहते है कि सबको शाता एवं समाधि की प्राप्ति हो ऐसे मधुर वचन बोलना। पूज्य गुरूदेव की निश्रा में विविध राज्यों से पधारे हुए श्री संघों ने आगामी चातुर्मास के लिए पूज्यश्री को भावभरी विनंति  की। नागपुर विदर्भ संघ, श्री गोशामहल जैन संघ हैदराबाद, श्री सोला रोड जैन संघ, श्री प्रेरणा तीर्थ जैन संघ, श्री आंबावाडी जैन संघ, श्री ठाकोर विलेज जैन संघ मुंबई, श्री दादर ज्ञान मंदिर (मुंबई), श्री ठाणे जैन संघ, श्री नडियाद जैन संघ, श्री बडाचौटा जैन संघ (सुरत), श्री लब्धि विक्रम राजयश तीर्थ (सुरत), श्री रमेश बाई मेहता ने शंखेश्वर चातुर्मास के लिए, श्री सिद्धार्थ भाई ने गिरनार तीर्थ में चातुर्मास की भावभरी विनंति की। समस्त संघों ने पूज्यश्री को सपरिवार चातुर्मासार्थे विनंति की। सबकी विनंति को तो एक साथ स्वीकार नहीं कर सकते अत: वर्तमान परिस्थिति तथा शासन में उठ प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए पूज्यश्री ने श्री आंबावाडी जैन संघ में आगामी चातुर्मास की जय बोलाई। अत्यंत सुंदर माहौल जहां विनंति की हारमाल चल रही थी और सब यह सुनने उत्सक थे कि किसकी विनंति को मान्य कर पूज्यश्री लाभ प्रदान करेंगे। गुरू भक्त श्री नरेंद्र भाई वाणी गोता भी इस अवसर पे योगानुयोग उपस्थित हुए। अपने गुरूभक्ति के भावों को व्यक्त करते हुए आते चातुर्मास प्रवेश में आने का वादा किया और संपूर्ण कार्यक्रम को अपने संगीत कौशल्य से सुंदर बनाने का वचन दिया। चातुर्मासिक पर्व में गुरू भगवंतों के आगमन की जितनी उत्सुकता होती है वैसी ही उत्सुकता पुण्य कर्म उपार्जन करने में होनी चाहिए, जितना आनंद गुरू भगवंतों के आगमन का होता है उतना कषायों की विदाई से होना चाहिए। ऐसा करने राग-द्वेष से रहित बन शीघ्रातिशीघ्र परमात्मा बनें।