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अहमदाबाद। सबकी समझ शक्ति एक जैसी नहीं होती। किसी की कुछ समझ आये तो किसी को कुछ और। महापुरुषों की बातें-उनके सिद्धांत हर किसी को समझ नहीं आते। वह बाते तो केवल पुण्यशाली आत्माओं को ही समझ में आते हंै। इसमें एक बात और भी है कि यदि इंजनीयर को क्रिकेटर के टेक्नीक्स पूछेंगे तो उनकी पता नहीं होगा लेकिन यदि व्यक्ति समझना चाहे तो प्रयत्न अवश्य कर सकता है। 
दीर्घ दृष्टा, आगम सूत्रों के ज्ञाता, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीस्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि व्यक्ति में भले समझने की शक्ति अल्प हो किंतु पुरूषार्थ एवं निष्ठा हो तो अवश्य उस दिशा में आगे बढ़ सकते है। परमात्मा के त्रिपदी से गणधर भगवंतों ने अपनी समझ एवं सूझ-बूझ से ठ्ठादशांगी की रचना कर दी। इसीलिए कहते है कि महापुरूषों की बातें केवल पुणयशाली ही समझ पाते है। समवसरण में बैठे हुए कितने ही पुण्यात्माओं ने प्रभु वीर को जब भी प्रश्न पूछा कि इस जगत में दुर्लभ से दुर्लभ कौन सी चीज है? तब उपस्थित पुण्यात्माओं के आश्चर्य का कोई पार नहीं रहता क्योंकि उत्तर यही होता है कि शायद तुम्हें सोना-हीरा-रत्न-चिंतामणि रत्न- कामधेनु गाय-कामघट-कल्पवृक्ष आदि भी शायद सुलभता से प्राप्त हो जायेगा। लेकिन मनुष्य भव अत्यंत दुर्लभता से प्राप्त होता है। प्रत्येक चीज की दुर्लभता का कोई एक मुख्य कारण होता है। पूज्यश्री फरमाते है कि मनुष्य भव इसलिये दुर्लभ है क्योंकि मोक्ष की साधना करने के लिए विविध प्रकार के योग तथा मार्ग इसी भव से अपनाये जा सकते है। ये शरीर हड्डीयों-रुप-रंग आदि दुर्लभ नहीं है क्योंकि यह सब तो समय आने पर आग में जलाकर राख बना दिया जाता है। जिसकी परवाह किसी को नहीं होती। कितना भी निकट या प्रिय व्यक्ति ही क्यूं ना हो मृत्यु के बाद उसके शव को कोई नहीं रखते। तो फिर इस मनुष्य भव में दुर्लभ क्या है? दुर्लभ ही प्रतिक्षण को सार्थक करना। अर्थात् प्रमाद का त्याग कर प्रतिपल-प्रतिक्षण बस मोक्ष साधना में आगे बढऩा। बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता। जैसे बाण में से निकला हुआ तीर लौटकर नहीं आता पानी एक बार बह जाने के बाद कहीं नहीं रुकता वैसा ही कुछ समय के साथ ही है। बीता हुआ समय नहीं लौटता तो दूसरी तरफ समय को कोई रोक भी नहीं सकता। समय को सार्थक करना हो तो सर्वप्रथम उसका मूल्य समझना अनिवार्य है। शास्त्रकार भगवंत कहते है एक-एक मिनिट मोक्ष की साथना में व्यतीत करना। अत: प्रभु वीर ने भी फरमाया है कि समयं गोयं मा मनाए अर्थात् है। गौतम तू एक क्षण का भी प्रमाद न कर। इसका अर्थ यह नहीं है प्रभु ने यह बात केवल अपने गणधर श्री गौतम स्वामी को कही है बल्कि उनके नाम से समस्त आराधकों को, मोक्षाभिलाषी साधकों को कही है। प्रमाद यानि सामान्य से आलम और थोड़ा विस्तृत रूप से सोचें तो समयानुसार उचित कार्य न करना वह भी प्रमाद ही कहलाता है। यदि इस कलिकाल में परमात्मा की आज्ञानुसार संयम जीवन स्वीकार करना कठिन लगता तो, शक्ति ना हो तो चिंता ना करें क्योंकि प्रभु ने दूसरे अनेक प्रकार के योग बताये है जो मोक्ष की तरफ ले जाये।
जैसे शत्रुंजय की यात्रा जीवन को सार्थक करने की मुख्य क्रिया है वैसे नव लाख नवकार मंत्र का जाप भी मानव जीन को सार्थक करने की सफल बनाने की मंगल क्रिया है। पूज्य श्री फरमाते कि आजकल किसी को भी आराधना करने को कहते है तो कोई न कोई बहाना निकाल देते है। अत: पूज्यश्री कहते है कि संसार को बढ़ाने वाली प्रत्येक प्रवृत्ति निरर्थक ही है और यदि मनुष्य भव को सफल बनाना हो तो निरर्थक प्रवृत्ति नहीं करना, निरर्थक बात नहीं करना, निरर्थक समय नहीं बिताना। निरर्थक चीजों का त्याग करने से ही सार्थक चीजों की प्राप्ति होगी। बस मिले हुए इस मनुष्य भव को अधिक से अधिक सफल बनाये और परम पद की प्राप्ति हो यही शुभ भावना।