अहमदाबाद। वर्तमान युग में पर्यटन का शौक बहुत बढ़ गया है। कुछ सुनाई दे या दिखाई दे तो सीधा उसे देखने वहां पहुंच जाते हैं। अमेरिका में बने स्टेच्यु ऑफ लिबर्टी को देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। कारण एक ही कि उस इमारत की कुछ विशेषता होगी कुछ ऐसा जो विश्व में और कहीं नहीं हो।
मौलिक चिंतक, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राज्यशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि कितने ही पर्व मनाते है लेकिन पर्युषण पर्व जैसा महान एवं विशिष्ट पर्व कोई नहीं है। इस पर्व की विशेषता यह है कि क्षमा का सौंदर्य जीवन में प्रगटाता है। जैन कुल में जन्म लेने वाले प्रत्येक आत्मा में यह सौंदर्य होता है। इस महापर्व में इतनी ताकत है कि यदि इस पर्व की बराबर आराधना करें तो भूतकाल में जिनके भी साथ संबंध खराब हुए, जिनके कारण मन दु:ख हुआ हो या वैमनस्य खड़ी हुई हो वह सब ---- हो जाते हैं। क्षमता करना और मांगना दोनों ही बहुत बड़ी बात है। ऐसे भी सुनने को मिलता है कि टू एर इस ह्यूमन बट टू फारगीव इस गॉड अर्थात् भूल करे वो इंसान होता है, लेकिन क्षमा करने वाले तो भगवान होते हैं। अभी तक तो अपने आत्मा में ऐसे ही भाव थे कि जैसे को तैसा करना, या फिर ईंट का जवाब पत्थर से देना। ये सब वैर के परिणाम है जिससे भयंकर नुकसान होता है। वैर की भावना तो जितनी जल्दी शांत हो जाये उसी में आत्मा का हित छुपा है।
पूज्यश्री फरमाते है कि परमात्मा के वचन सुनकर यही समझना है कि वैर और झगडऩे की परंपरा तो अनादि काल के संस्कार है। उनको दूर कर आत्मा को अपने स्वाभाविक दशा में यानी के शांत निर्मल एवं विशुद्ध बनाना है। क्रोध करने से या वैर की परंपरा को आगे बढ़ाने से क्या कोई प्रकार का फायदा हुआ है? किसी को भी पूछ लेना जवाब नहीं ही होगा। इसकी जगह पे प्रेम से शांति से बात करने पर बात मान्य भी होती है और सामने वाला व्यक्ति आपके पास दौड़ता हुआ आयेगा। कभी कोई कहते है कि किसी के हित के लिए गुस्सा किया लेकिन किसी को सुधारने के लिये स्वयं का स्वभाव बिगाडना वो कोई समझदारी नहीं है। क्योंकि सर्वप्रथम आत्महित के बारे में सोचना अनिवार्य है। किसी का स्वभाव चाहे कैसा भी हो अपने को अपना स्वभाव नहीं छोडऩा। परमात्मा वीर के जीवन का आलंबन लो। सकी ना होने पर भी उस भयानक मार्ग द्वारा दृष्टिविष सर्प को प्रतिबोध करने पहुंचे। सर्प ने तो अपने स्वभावनुसार प्रभु को पैर पे डंख मारा लेकिन अनंत करुणा के सागर और क्षमा के भंडार प्रभु ने उसे प्रेम भरे शब्दों में कहा-बुज्झ-बुज्झ चंडोशिया बस ऐसे कर्ण प्रिय शब्दों के श्रवण से ही सर्प प्रतिबोधित हुआ उसका भव सुधर गया। क्रोध से जो कार्य अटकता है वह क्षमा और प्रेम से वेग से आगे बढ़ता है। इस घटना का आलंबन लेकर सर्वप्रथम जीव मात्र के प्रति अरुचि भावना का त्याग करो। संस्कार तो कितने ही प्रकार के मिलते है अच्छे संस्कारों द्वारा सम्यक्त्व का प्रकाश मिलता है। पूज्यश्री फरमाते है कि सम्यक्त्व का प्रकाश यानि क्षमा, नम्रता, सरलता और संतोष का प्रकाश। प्रभु को सर्प ने डंख मारा तो आज भी उसका दु:ख होता है और उस सर्प के प्रति मन में रोष उत्पन्न होता है लेकिन प्रभु आज्ञा का भगं करने से, प्रभु के वचनों का पालन नहीं करने से हम भी प्रभु दिव्य शरीर को, उपदेशक शरीर को डंक मार रहे है। उसका दु:ख हमें कितना है? यदि आप प्रभु वीर के सच्चे अनुयायी हो तो इस पर्युषण महापर्व को क्षमा पर्व और मैत्री पर्व के रुप में मनाये।
ऐसे लोकोत्तर विशिष्ट पर्व की आराधना करने का सुवर्ण अवसर मिला है तो उसे यूं ही व्यर्थ ना जाने दें। अनेक पर्व मनाते है लेकिन आत्मिक आनंद, आत्मा विशुद्धि का पर्व तो यह पर्वाधिराज ही है। बस ऐसे पर्वाधिराज की विशिष्ट आराधना द्वारा आत्म विशुद्धि परमात्मा बने यही मंगल कामना।
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