अहमदाबाद। विश्व में अनेक प्रकार के लोग होते है। किसी को आनंद में रहना अच्छा लगता है तो किसी को दु:खी होने के कारण ढूंढने में रस होता है, किसी को गुण देखने में मास्टरी होती ह,ै तो किसी को दोष ढूंढने में ही रस होता है। संसार विविध प्रकार के लोगों से युक्त है। इस संदर्भ में पूज्य गुरूदेव ने एक दृष्टांत फरमाया।
अकबर के राज्य में एक व्यापारी था जिसको गरम कपड़े, कम्बल आदि का व्यापार था। किसी कारणसर वहां ठंडी नहीं पड़ी तो उनका नुकसान हो गया। अत: वे रोते-रोते अकबर के पास पहुंच अकबर से सारा वृतांत निवेदन करने के पश्चात् बिरबल को बुलाया गया और कहा कि कुछ भी करके इनकी समस्या का समाधान करो। बिरबल ने कहा, राजा गर्मी में गरम कपड़ों का व्यापार कैसे संभावित होगा? तब अकबर ने कहा जो किसी से ना हो वह कार्य कर बताये वहीं बिरबल है। फिर बिरबल ने एक तरकीब सोच ली और कहा, राजन आप ऐसा कायदा ही बना दो कि राज्य में जितने भी सरकारी कर्मचारी हो तथा जितने भी लोग सरकारी जगहों पे जाये उन्हें कंधों पर यह कम्बल रखकर ही प्रवेश करना। इससे इनका व्यापार भी एकदम अच्छा चलेगा और माल भी बिक जायेगा।
जैसे ही फायदा अमल में आया व्यापारियों की पचास रुपये में बिकने वाला कम्बल ढ़ाई सौ रुपये में बिकने लगी। ये समाचार जब अकबर को मिले तब उन्होंने बिरबल से कहा कि अब तो यह व्यापारी सुखी हो गए तो उनको बुलाओ। व्यापारी आये रोते-रोते। यह देखकर राजा आश्चर्यचकित हुए।
और रोने का कारण पूछा तो व्यापारियों ने कहा कि राजन् हमें नहीं पता था कि इन कम्बलों का भाव ढ़ाई सौ रुपए होंगे तो पहले जो पचास में बेची उसका नुकसान हुआ ना इसलिए हम रो रहे है। बिरबल ने कहा राजन् इनको दु:खी रहने का शौक है इसलिए कितना भी मुनाफा हो ये रोते ही रहेंगे।
नव्य आयोजन प्रेरक, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू. आ. देव राजयश सूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि जिनको रोना हो उनको उसी प्रकार के निमित्त मिलते है, जिनको हंसना हो उनके हंसने के निमित्त मिलते है, जिनको पाप करना हो उनको पाप करने के निमित्त मिलते है, जिनको आराधना करनी हो उनको आराधना करने के निमित्त मिलते है। इसीलिए कहा गया है कि जहां चाह है वहां राह है। इस सृष्टि का सबसे संवेदनशील धर्म जैन धर्म है। विश्व के दु:ख की संवेदना जैन संघ के प्रत्येक सभ्य में फैल जाती है। ऐसा महान संवेदनशील जैन धर्म की आराधना का सुवर्ण अवसर यानि पर्वाधिराज पर्युषण नजदीक आ रहे है। पूज्यश्री फरमाते है कि यदि तन्मयता से तल्लीनता से आराधना की जाय तो उसके बाइब्रेशन्स चारों तरफ फैल जायेंगे। सब कहते है कि वैश्विक महामारी कोरोना की तीसरी लहर आयेगी और तबाही मचा देगी लेकिन उन सभी को कह देना कि तन्मयता-तल्लीनता से की गई आराधना इस तीसरी लहर को भी हरा देगी। जैन धर्म कीअनेक विशेषताएं है। उनमें से एक यह है कि केवल जैन धर्म के संत महापुरूष ऐसे श्रवण-श्रमणी भगवंतों को नियम से व्यसन का त्याग होता है। परिवार सम इस विश्व को यदि निव्र्यसनी बनाना हो तो वह केवल जैन साधू ही कर सकते है। इस धर्म में गौशाला-अर्जुनमाली जैसे पापियों को भी तारने की शक्ति है, उनकी गति सुधर सकती है तो हमारी भी अवश्य सुधरेगी। पर्वाधिराज पर्युषण की खूब भावपूर्वक आराधना कर आत्म शुद्धि करना है। शरीर जब बुखार से ग्रस्त हो जाता है तो ब्लड टेस्ट द्वारा पता करवाते हैं कि क्या रोग है? इसी तरह पर्युषण पर्व भी एक बड़ी पैथोलॉजी लेब है जहां मन के विचारों का परीक्षण होता है। अत: अपने स्वभाव का पृथककरण को कर मन में से किसी के प्रति दुर्भा तिरस्कार तथा असद्भाव को दूर कर दें। यही विवमैत्री की भावना द्वारा सवि जीव करूं शासन रसी की भावना को सफल बनाकर आत्मा से परमात्मा बनें।
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