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मुंबई। इस दुनिया का हर कोई मानव, यही कामना करता है कि उसके मन में जो भी इच्छा प्रकट होती है वह इच्छा पूरी हो। इस सिलसिले में हमारी भी कैटेगरी इसी में आती है। इतिहास में हम कई तरह के राजा के चरित्र पढ़ चुके है। कितने लोगों ने राजा बनने की कामना की तो पूरी भी हुई। कितनों ने भावना की, मगर इच्छा पूरी नहीं हुई। कहते है कितने तो भौतिक पदार्थ की इच्छा करते है मगर जितनी जरूरत है उतना उन्हें नहीं मिलता है। हरेक मानवी जिस चीज की इच्छा करता है उसे सम्पूर्ण तरीके से नहीं मिला पाता है। सफलता तो कम लोगों को ही मिलती है मगर ज्यादातर लोग निष्फल  ही जाते है। लोगों का मानना है भौतिक सामग्री से सुख की प्राप्ति है इसीलिए लोग इसके पीछे दौड़ते हैं।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, चंपापुरी तीर्थ प्रतिष्ठाचार्य प.पू. राजयण सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है सुभूम चक्रवर्ती ने छह खंड की प्राप्ति करने के बाद जानकारी मिलाई कि उसके भूतपूर्व चक्रवर्ती ने कितने खंड की जीत मिलाई? तो जानकारी मिली कि छह खंड। फिर से इसके भी पूर्व जो चक्रवर्ती हुए उन्होंने कितने खंड को जीता? सभी का उत्तर एक सरीखा छह खंड ही जवाब मिला तब सुभूम चक्रवर्ती के मन में एक लोभ की चिनगारी प्रकट हुई कि अब तो मुझे छह खंड से ज्यादा जीतना है चक्रवर्ती के पास चर्मरत्न था जिसके ऊपर बैठकर वे लवणसमुद्र के लिए निकले। इस ओर चक्रवर्ती की सेवा में चर्मरत्न को उठाने वाले चौदह हजार देव थे। एक के मन में विचार आया कि यदि मैं कुछ क्षणों के लिए चर्मरत्न सेहाथ छूड़ाकर आराम करूं तो क्या फरक पड़ेगा? उसी समय एक ही साथ अन्य देरों को भी यही विचार आया परिणाम सभी ने चर्मरत्न को छोड़ दिया तो चक्रवर्ती समुद्र में गिर पड़े अंजाम बूरा आया। 
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है चक्रवर्ती के पास छह खंड का राज्य ता फिर भी ज्यादा मिलाने की इच्छा हुई परिणाम तो बूरा ही आया। कितने श्रावकों। जिस चीज की इच्छा करते है वह चीज नहीं मिलने से वें दु:खी होते है इसीलिए पूज्यश्री फरमाते है अपने घरों में दुकान में ओफिस में एक तख्ती लगा हो जिस पर लिखों कि जितनी ज्यादा इच्छा उतना ही ज्यादा दु:ख। एक इच्छा पूरी हुई कि तुरंत दूसरी इच्छा जागृत हो जाता है. जिस तरह एक मुर्गी अनेक इंडो को पैदा करती है इसी तरह एक इच्छा में से अनेक का सर्जन होता रहता है.
मानवी जो इच्छा करता है उसकी हर इच्छा पूरी नहीं होती है इसलिए पूज्यश्री एक ---- बताते है आपके पास जो है उसी में आनंद मानो।
दो मित्र थे। एक मित्र हमेशा अपने मित्र को खाने घर ले जाता था। एक दिन उस मित्र को इच्छा हुई चार! एक बार तो तुं, मुझे तेरे घर खाने के लिए ले जा। जबरदस्ती अपनी इच्छा से वह अपने मित्र के साथ उसके घर आ गया। जैसे ही घर पर पांव रखा कि मित्र की पत्नी जोर से बोल उटी मफतलाल आ गया है। दोनों डाईनींग टेबल पर बैठे और पति ने अपनी पत्नी से कहा, प्रिये!  जरा चाय ले आना। पत्नी गुस्से में बोली। आपने सुना नहीं कितने दिनों से कहा है शक्कर नहीं है, शक्कर ले आना। आप शक्कर ले आए? पत्नी चाय का कप लाकर जोर से आवाज करते टेबल पर रखा। लो पीओ। मित्र तो इस दृश्य को देखते ही रह गया। अरे चार! तुं किस तरह इसके साथ रहता होगा? दोस्त! क्या करूं? जो है जैसा है उसी में आनंद मानना श्रेयस्कर है। 
पूज्यश्री फरमाते है जीवन में अनेक घटना अपने साथ घटेगी। सुखी बनना है तो जो मिले उसी में खुश रहो। इच्छा पर ब्रेक लगाओ। इच्छा का कभी अंत नहीं आएगा। जिस चीज की इच्छा करोंगे वह चीज मिल भी जाएगी फिर भी इच्छा का अंत नहीं आएगा। मानवी अपने जीवन में संतोष लाएगा तभी वह सुखी बन पाएगा। बस, मन पर काबू रखकर इच्छा ब्रेक लगाकर संतोषी जीवन जीकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।