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अहमदाबाद। जीवन में नये रंग तथा आनंद बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरह से उत्सव-महोत्सव और पर्व मनाये जाते हंै। प्रत्येक पर्व का एक अलग महत्व तथा तरीका होता है। आत्म शुद्धि-स्वभाव विशुद्धि तथा ह्रदय परिवर्तन करने वाला कोई पर्व हो तो वह है पर्युषण पर्व। 
प्रभावक प्रवचनकार, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व का स्वागत कुछ अनूठा होना चाहिए। यह एक ऐसा पर्व है जिसमें संपत्ति का व्यय नहीं परंतु अपने अशुभ भावों को दूर कर शुभ भावों द्वारा आत्मा को शुद्ध-विशुद्ध बनाना है। शास्त्रकार भगवंतों ने संपूण4 वर्ष ही नहीं संपूर्ण जीवन आराधनामय बनाने का शुभ निर्देश दिया है लेकिन वह शक्य ना हो तो कम से कम चातुर्मास के चार महीने तो धर्माराधना करनी ही चाहिए। चार महीने भी यदि ना हो सके तो पचास दिन, उतना भी ना हो सके तो कम से कम आठ दिन के पर्युषण महापर्व दरम्यान यथाशक्ति उचित धर्माराधना करनी ही चाहिए। पर्व के आगमन के पर्व उसके स्वागत की तैयारियों में कोई पुण्यात्मा मासक्षमण करते है, सिद्धि तप करते है तो कितने ही ग्यारह उपवास सोलह उपवास, अट्ठाई आदि भव्य तपश्चर्या करते है।
समस्त जैनों में पर्युषण महापर्व के पूर्व जागृतता आ गई है। अब पर्व का सत्कार प्रारंभ कर देना चाहिए। कोई भी नया कार्य प्रारंभ करने के पूर्व जैसे प्लानिंग अनिवार्य है वैसे ही आराधना करने के लिए भी प्लानिंग शुरू कर देना चाहिए। पूज्यश्री फरमाते है कि किसी को भी विवाह करना हो, कोई फंक्शन करना हो तो कैसे करते है? यथाशक्ति और अपने स्टान्डर्ड के हिसाब से करते है। ठीक वैसे ही अपनी शक्ति तथा अनुकूलतानुसार पर्युषण की भी आराधना करने का प्रयत्न करना चाहिए। मासक्षमण और सिद्धि तप के तपस्वीयों ने अपनी आराधना प्रारंभ कर दी अब ग्यारह, सोलह, आठ उपवास आदि आराधना करने वाले पुण्यात्माओं को जागृत हो जाना है, सावधान हो जाना है। पहले के काल में ऐसे था कि जैनों के आचार-विचार से ही पता चल जाता है कि ये जैन है और इनका आठ दिन का महपार्व श्री पर्युषण महापर्व आया है।
पूज्यश्री फरमाते है कि पर्युषण की आराधना दो प्रकार से होती है:- आराधना में आगे बढऩा, विराधना से अटकना इन दोनों में से विराधना से अटकना अनिवार्य है। एक घर में ेक भाई को हर छोटी बात में गुस्सा आता है। उसके घरवाले उससे अब गये थे। उनके लिए अपना गुस्सा काबू में रख पाना अत्यंत कठिन था लेकिन उनके अंदर धर्म की शुभ भावना होने के कारण उन्होंने नवकी किया कि पर्युषणके प्रारंभ से लेकर पारणे के दिन तक मौन रखते थे। वे समझते थे कि आराधना के दिनों में क्लेश करने से कर्म बंध ही होता है। पर्व तो कर्म निर्जरा का निमित्त लेकर आता है।
परमात्मा का शासन एक बहुत बड़े मॉल जैसा है। जिसमें अनेक प्रकार के आराधना बताये गए है। जिसमें चौसठ प्रहरी पौषध की आराधना बताई गई है। यदि यह चौसठ प्रहरी पौषध की उत्कृष्ट आराधना यदि ना हो तो देसावगासिक का पच्चक्खाण भी हो सकता है। यहि यह भी नहीं हो सके तो सामयिक, प्रतिक्रमण की आराधना द्वारा भी आत्म शुद्धि की आराधना कर सकते है। जैन धर्म एक क्लेक्सीबल धर्म है। सब तरह के आराधकों को समाने की महान विशालता एवं उदारता को धारण करता हुआ यह महान लोकोत्तर धर्म है।
पर्युषण पर्व मेंहो सके उतनी धर्म की आराधना करना। शास्त्रकार भगवंत कहते है कि इक्कीस बार श्री कल्पसूत्र का श्रवण करने से सुलभ बोधि की प्राप्ति होती है तथा शीघ्र मोक्षगामी बनते है। पर्युषण महापर्व की आराधना के लिए मानसिक तैयारी प्रारंभ कर दीजिये जैसे-जैसे अमंदर से रस आयेगा वैसे वैसे अंतरात्मा आनंद में भर जायेगा। इस अंतरात्मा को आनंद रस से भरपूर कर शीघ्रतिशीघ्र आत्स विशुद्धि कर परम पद की प्राप्ति हो यही मंगल कामना।