अहमदाबाद। विश्व में अनेक प्रकार के धर्म है लेकिन प्रकृति के साथ किसी धर्म का और ट्युनिंग बैठ गया हो तो वह जैन धर्म है। ऐसे सर्वज्ञ कथित जैन धर्म में पर्वाधिराज पर्युषण का मंगलकारी आगमन हो गया। पर्वाधिराज के आगमन से सबके मन में अनेक प्रकार के मनोरथ आकार ले रहे है। मासक्षमण-सिद्धि तप के तपस्वीयों का फस्र्ट क्लास में बूकिंग हो गया, सोलह उपवास के तपस्वीयों का सेंकट क्लास में बूकिंग हुआ, अट्ठाई-अट्ठम के तपस्वीयों का थर्ड क्लास में बूकिंग हुआ तो बाकी के लोग कहां जायेंगे? स्लीपर क्लास में खड़े रहने की नौबत आ गई।
श्री लब्धि विक्रम गुरूकृपा प्राप्त, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने विशाल संख्या में उपस्थित आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि यदि शास्त्रकार भगवंतों ने श्रमण-श्रमणी भगवंतों को चातुर्मास दरम्यान एक ही स्थान में रहने का निर्देश ना किया होता तो शायद पर्युषण पर्व भी इस तरह से नहीं मनाया जाता। धर्म की समस्त गतिविधियां गुरू भगवंतों पे ही आधारित है। कितने ही लोग पूछते है कि जैन धर्म के अनुयायी अल्प होते हुई भी इतना चमकता कैसे है? पूज्यश्री इसका सचोट उत्तर फरमाते है कि समस्त विश्व को प्रकाशित करने यदि एक सूर्य ही काफी है तो समस्त विश्व को हिंसामुक्त बनाने, अहिंसामय प्रकाश में ले जाने के लिए जैनधर्म ही काफी है। प्रत्येक जैन को विश्व के समस्त जीवों को शासन रसिक बनाना है। शासन रसिक बनाना यानि क्षमा की आराधना करना, शासन रसिक बनाना यानि नम्रता की आराधना कराना, शासन रसिक बनाना यानि सरलता की आराधना कराना शासन रसिक बनाना यानि अपरिग्रही की आराधना कराना।
पूज्यश्री फरमाते है कि प्रत्येक अनुयायी को यही सोचना है कि वे धर्म के ट्रस्टीशीप में है। जितना हो सके उतना कार्य करते जाये। आपके पास संपत्ति इसलिये आई है ताकि आप उसका संविभाग कर सको। शास्त्रकार भगवंत कहते है श्वास से जीवन चलता है तो विश्वास से जगत चलता है। इस बात को अवश्य याद रखें कि जैन धर्म का प्रत्येक अनुयायी अपने सत्य-सौजन्यता-क्षमा-नीति-न्याय आदि के ट्रेडमॉर्क को कभी ना भले। जहां भी जाये इसी प्रकार से व्यवहार करें ताकि सबको जैन धर्म पे विश्वास हो, जैनों पे विश्वास हो कि यदि यह वाक्य इनका है तो वे अवश्य अपना वचन पूर्ण करेंगे इस बात में कोई संदेह नहीं है। सत्य-क्षमा-नम्रता-सरलता-संतोष केवल अच्छा है इतना ही सबको पता है लेकिन इनसे तो चमत्कारों का सर्जन होता है। पर्युषण पर्व के समस्त कत्र्तव्यों को यदि किसी एक कत्र्तव्य में समाना हो तो वह होगा अपने रोम-रोम में जैनत्व को बसाना। पूज्यश्री कहते है कि यदि एक पुष्प अपनी सुवास से संपूर्ण वातावरण को सुगंधी बना सकता है, यदि एक अगरबत्ती संपूर्ण वातावरण को सुगंधी बना सकती है तो एक जैन भी अपने जैनत्व की सुवास को, जैनम् जयति शासनन् के नाद को अवश्य गूंजित कर सकता है।
पर्वाधिराज पर्युषण पर्व यानि क्या? पूज्य गुरूदेव फरमाते है कि चारों दिशा से मुक्त होकर आत्मा में बसना और पापों को रोम-रोम में से विसर्जित करना। शास्त्रकार भगवंत फरमाते है कि जो इस पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की तन-मन-धन से आराधना करते है वे उच्च कोटि का पुण्य बांधते है। इस महानपर्व को प्रतिक्रमण पर्व बनाना है, पौषध पर्व बनाना है, प्रायश्चित्त पर्व बनाना है, भक्ति पर्व बनाना पर्वाधिराज के प्रथम पांच कत्र्तव्य:- अमारि प्रवर्तन यानि अहिंसा का प्रवर्तन करना। कुमारपाल महाराजा ने अठारह देशों में अमारि प्रवर्तन कराया। जगत गुरू हीर सूरीश्वरजी म.सा. ने छ:-छ: महीनों तक कल्लखाने बंद करवाये। हिंसक ऐसे अकबर राजा को अहिंसक बनाया। दूसरा कत्र्तव्य है साधर्मिक भक्ति का जिसके द्वारा तीर्थंकर नाम कर्म निकाचित कर सकते है। तीसरा कत्र्तव्य है क्षमापना का. क्षति से हुए मेरे पापों का पैर पड़कर माफी मांगता हूं ना न कहीयेगा ऐसी आशा रखता हूं। परस्पर क्षमायाचना करना इस पर्व का मुख्य कत्र्तव्य है। चतुर्थ कत्र्तव्य है अट्ठम तप का जिसकी आराधना से असंख्यात वर्ष का नरकायुष्य क्षय होता है। पंचम कत्र्तव्य है चैव्यपरिपाटी का। जिनालय-जिन बिंब के दर्शन से आत्मा को निर्मल बनाकर आत्मा से परमात्मा बनना है।
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