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केके पाठक

हमारे देश में लोकतंत्र प्रणाली लागू है, जिसके माध्यम से वो भारतीय नागरिक अपने जनप्रतिनिधि चुनते हैं, किंत बड़े दुख की बात है कि- हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल इस लोकतंत्र पर विश्वास नहीं कर रहे, और वे अपना तानाशाही पूर्ण रवैया अपनाते हुए अपने ही देश में घिनौना खेल खेल रहे हैं, वह अपना वोट बैंक साधने के लिए जातिवाद धर्मवाद और पंथवाद को बढ़ावा देते हुए आपसी द्वेष भावनाएं हमारे ही देश के लोगों में पैदा कर रहे हैं। ताकि उनका वोट बैंक सध सके, लोकतंत्र एक बहुत अच्छी और सरल प्रणाली है, हमारे देश के लोकतंत्र प्रणाली सारे विश्व में प्रसिद्ध है। जिसके माध्यम से लोग अपने जनप्रतिनिधियों को चुनते हैं, बिना किसी भेदभाव के जनप्रतिनिधियों का कार्य जनप्रतिनिधियों का आचरण और जनप्रतिनिधियों की राजनीतिक पार्टी को देखते हुए। हमारे देश के अधिकांश मतदाता अपना मत देते हैं यह पूर्णता सत्य है, किंतु बीच-बीच में कुछ असामाजिक तत्व जातिगत दंगा फसाद धर्मगत दंगा फसाद की रूपरेखा बनाकर इसे अंजाम देते रहते हैं। ताकि राजनीतिक पार्टियां बदनाम हो और उनके वोट बटे ? जिसके कारण दूसरे अन्य राजनीतिक दलों को बहुमत मिले शासन मिले, राजनीतिक दलों का अपने ही देश के साथ और अपने ही देश के लोगों के साथ ऐसा घिनौना खिलवाड़ एक बहुत बड़ा राजनैतिक अपराध है। जो हमारे देश की राजनीति को बर्बाद कर रहा है।  

धीरे-धीरे दीमक की तरह हमारे देश के लोकतंत्र को बर्बाद कर रहा है, ऐसे लोग जातिवाद को धर्मवाद को और पंथवाद को बढ़ावा देने के लिए खुलकर सामने नही आते हैं। और लोगों को बरगलाते हैं, जबकि लोकतंत्र में बोटर की हैसियत सिर्फ एक भारतीय नागरिक है, ऐसे लोग समाज के लिए जहरीले किस्म के व्यक्ति हैं- जो समाज में जहर बो रहे हैं- समाज को आपस में बांट रहे हैं- धर्म के नाम पर जाति के नाम पर और पंथवाद के नाम पर इनकी यह घिनौनी हरकत तभी असफल होगी जब प्रत्येक भारतीय नागरिक अपने आप को सबसे पहले भारत का नागरिक समझेगा जागरूक होगा और इनकी चाल को समझेगा।

इसके बाद कुछ और! भारत के नागरिक होने के नाते, उसके जो मूलभूत कर्तव्य हैं, उन्हें वह पूरा करेगा। हमारा देश और उसकी संस्कृति अनेकता में एकता सर्वप्रथम है हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं - जातिवाद, धर्मवाद और पंथवाद को छोड़कर भारत के प्रत्येक व्यक्ति एक नागरिक की हैसियत से समर्पित रहेगा - जियो और जीने दो की राह पर चलेगा। सब के दर्द को पहचानेगा- वही वास्तव में भारत का सच्चा नागरिक है। जब तक हमारे देश के लोगों में यह जागृति नहीं आएगी। तब तक हमारा देश यूं ही जाति धर्म और पंथ के नाम पर जलता रहेगा ? हमारे देश में यूं ही जाति धर्म और पंथ के आधार पर ईर्ष्या और द्वेष की भावनाएं खेलती रहेंगी और हमारे देश के कुछ असामाजिक तत्व यह खिलवाड़ हमारे देश के साथ करते रहेंगे। हर एक व्यक्ति अपने आप को एक दूसरे से बड़ा समझेगा और अपने अधिकारों का दुरुपयोग करेगा। जिसका असर हमारे देश पर पड़ेगा और हमारे देश की साख विश्व में विश्व पटल में खराब होगी। 

हमारे देश में हमेशा देश के अंदर युद्ध जैसी स्थिति बनी रहेगी, हमारे देश का सीधा सा लोकतंत्र है- यदि आप काम अच्छा करते हो तो आप आम जनता पर भरोसा रखो- आपको वोट अवश्य मिलेंगे आपकी जीत अवश्य होगी। आपका शासन अवश्य आएगा। आपका काम ईमानदारी और समर्पण पूर्वक होना चाहिए। आज की जनता- पब्लिक सब समझती है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वह जातिगत, धर्मगत  और पंथगत भेद भाव से ऊपर उठकर भारतीय नागरिक की हैसियत से लोगों को देखें- और उनका भला करें उनकी समस्याओं का हल करें- गरीबी और अमीरी की खाई को पाटने की भरपूर कोशिश की जाए- देश के प्रत्येक गरीब को रोटी कपड़ा और मकान मिले देश के प्रत्येक गरीब को शिक्षा मिले, देश के प्रत्येक गरीब को रोजी- रोटी और काम मिले ताकि उसका घर परिवार सुखी और खुशी पूर्वक अपने जीवन की आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कर सके।और जीवकोपार्जन हेतु आवश्यक जरूरतों की सामग्री को पा सके।

वह इतना सक्षम हो और धीरे-धीरे वह गरीबी रेखा को पार करते जाए। ताकि हमारे देश से गरीबी नाम का कलंक हमेशा हमेशा के लिए मिट जाये, हमारे देश ने स्वतंत्रता के बाद से गरीबों के लिए बहुत से काम करना बान्की है।जिसमे से कुछ तो हमने किए हैं जो बाकी बचे हैं- उन्हें भी हमें तत्काल अल्प समय में करने की कोशिश करना है। ताकि हमारे देश की गरीबी का ग्राफ नीचे गिरे और हम एक विकासशील देश सेविकसित देश की ओर बढ़ने अपनी भारतीय संस्कृति और परंपरा को जीवित रखते हुए।

यदि हमने अपनी भारतीय संस्कृति और परंपरा खो दी तो समझ लो- हमारी बर्बादी सुनिश्चित है। क्योंकि कहा गया है कि जिस देश की संस्कृति खत्म हो जाती है। वह देश भी बहुत जल्द खत्म हो जाता है। इसीलिए हमें सावधान रहने की आवश्यकता है। और अपनी संस्कृति पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखना है। विरासत में भी हमें आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति के नियम कानून कायदे देकर जाना है। जय हिंद जय भारत। 

(ये लेखक के उनके निजी विचार हैं)