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अहमदाबाद। कुछ शब्द ऐसे होते है ंजो सुनकर ही मन को आनंद की अनुभूति होती है, कुछ शब्द ऐसे होते है जो सुनकर मन को दु:ख होता है, कुछ ऐसे होते है जो सुनकर समझने में ही देर लगती है। ऐसे ही कुछ आनंददायक शब्दों का संकलन महोपाध्याय  श्री विनयविजयजी महाराज ने शांत सुधारस के महान ग्रंथ में किया है।
श्री लब्धि-विक्रम गुरूकृपा प्राप्त, प्रखर प्रवचनकार, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति पू.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी भाविकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि शांत सुधारस की बातें आत्मा को महान आनंद देती है। जगत के तमाम जीवों का ज्ञान मिलाकर प्रत्येक जीवन के साथ मैत्री का संबंध करुणा का संबंध जोडऩा है। इस विश्व के प्रत्येक जीव को जीने की प्रबल इच्छा होती ही है। ऐसा कोई भी जीव नहीं होगा जो बिना किसी कारण मरना चाहेगा। हताश-निराश होकर, आवेश में आकर वर्तमान में अनेक आत्माएं आत्महत्या करने का निर्णय ले लेते है। वर्तमान कालीन परिस्थिति यह है कि मनुष्य भव का तथा प्रभु की परम कृपा से मिले महामूल्य जीवन का मूल्य नहीं समझते और बस यूं ही उसे खत्म करने पे तुले है। आत्महत्या करने के विविध प्रकार के कारण है सहनशक्ति का अभाव, धैर्य का अभाव समझ का अभाव, विवेक का अभाव, आवेश, आवेग आदि।
पूज्यश्री फरमाते है कि आवेश और आवेग व्यक्ति को सत्य असत्य के रूप में समझाता है और असत्य को सत्य के रूप में समझाता है। अर्थात् विपरीत बुद्धि सुझाता है। जिसके कारण व्यक्ति अक्सर गलत निर्णय ले लेता है शास्त्रकार भगवंत कहते है परमात्मा का इतना उपकार है हमें आवेश आदि विपरीत परिस्थितियों में से बाहर निकलने, उन्हें निष्फल बनाने हमें अनेक आलंबन दिये है। त्रैलोक्य वैज्ञानिक परमात्मा ने फरमाया है कि याद रखना पृथ्वी-जल-जल-अग्नि-पवन-वनस्पति में भी जी है। यह बात आज से करोड़ों वर्ष पूर्व सर्वज्ञ, त्रैलोक्य ज्ञानी परमात्मा ने बताया दी है। इस प्रकार के जीवों के सूक्ष्य भेद जैन धर्म और जैन शास्त्रों के अलावा कहीं जानने या पढऩे नहीं मिलेगा। जैन शास्त्रों की सूक्ष्मता तथा कैवल्य लक्ष्मी के स्वामी परमात्मा द्वारा कथित वचन शत-प्रतिशत सत्य भासित हो रही है। कितने ही वर्षों पूर्व बताई गई इन बातों के साथ-साथ यह भी कहा गया था कि इन छ: काय जीवों के बिना जीवन का प्रवाह आगे बढ़ा पाना कठिन होगा अत: इनका उपयोग पूर्वक-विवेकपूर्वक इस्तमाल करें।
पूज्यश्री इस बात को सरल भाषा में समझाते हुए कहते है कि उदाहरण स्वरूप यदि कोई नया मकान बनाना हो तो उसके पूर्व पृथ्वीकाय के सर्वजीवों को हाथ जोड़कर, नमस्कार करके उनसे श्रमायाचना करना। क्योंकि परमात्मा के शासन में बताया गया है कि पृथ्वी में भी जीव है। अत: भावपूर्वक उन समस्त पृथ्वीकाय के जीवों को हाथ जोड़कर, नम्रभाव से नमस्कार कर उन्हें कहना कि हे। भूमि देवता स्वार्थ की पूर्ति के लिए आपका उपयोग करने जा रहे है, आपको तकलीफ देने जा रहे है। आपको इस प्रकार की तकलीफ देनी पड़ रही है उसके लिए अंत: करण से आपसे क्षमायापना करता हूं। कृपया क्षमा कीजिये। कोई भी चीज का निर्दयता से, जरुरत से ज्यादा उपयोग करने से दुष्परिणाम ही आता है। जैसे पानी प्रचुर माप में मिलने से उसका आवश्यकता से अधिक इस्तमाल कियाजाता है परिणाम स्वरूप प्रकृति में प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। यह छ: जीवनिकाय का उपयोग से तथा विवेक से इस्तमाल करना अनिवार्य है क्योंकि इनके बिना जीना कठिन है। पूर्वाचार्य श्री सिद्धसेनदिवाकर सू.म.सा. तो फरमाते है कि जिनको षट्जीवनिकाय जीवों के अस्तित्व में श्रद्धा हो उन्हें ही सम्यक्त्वी कहा जाता है। पूज्यश्री कहते है कि प्रत्येक व्यक्ति को यह समझने की तथा संकल्प करने की आवश्यकता है कि अपने सुख चैन-आराम के लिए कोई भी जीव को दु:खी नहीं करना है। सबके साथ मैत्री का संबंध जोड़ दो आपको कभी किसी जीव को तकलीफ पहुंचाने का विचार भी स्पर्श नहीं करेगा। केवल सबको शांति-शाता-समाधि देने की परम मंगलमयी शुभ भावना में रमण करते रहना।