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मुंबई। संस्कृत में सुभाषित पंक्ति हैं 'गुणा: सर्वत्र पूज्यन्तेÓ किसी भी स्थान पर आप जाओंगे लोग आपके गुणों को देखेंगे चाहे वह अनजान प्रदेश हो या चाहे परिचित प्रदेश हो। आपकी बोली कैसी है? आपका रहन सहन कैसा है? लोगों का ध्यान पहले इसी चीज पर जाता है फिर ही वे गुणों के मुताबिक सर्टीफिकेट देते है। कोई व्यक्ति यदि मीठा बोलता हो तो वह मधुर भाषी के नाम से प्रख्यात होता है। कोई व्यक्ति यदि बहुत ज्यादा बोलता हो तो वह वाचाल के नाम से जान जाता है।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयण सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है किसी को अपनी तरफ आकर्षित करना हो तो वह बोली पर आधार है। आप जिस तरह से एक दूसरे से बात करोंगे उस तरह से लोग आपकी जोर आकर्षित होंगे।
नमन-शमन की कपड़े की दुकान एक ही बाजार में थी। नमन, स्वभाव का मीठा। जो भी ग्राहक उसकी दुकान पर आता नमन उसे बड़े ही प्रेम से कपड़ों की वेराईटी खोल कर दिखाता था। कोई ग्राहक ऐसा भी आता जो सिर्फ कपड़े के टाके खुलवाकर जाता मगर कुछ खरीदकर नहीं जाता था फिर भी नमन ठंडे कलेजे से कहता, जो पड़े तो वापिस जरूर आना इस ओर शमन के यहां जो भी ग्राहक आता शमन पहली बार शांत चित्त से दिखाता परंतु जब वह ग्राहक टाके खुलवाकर कुछ लिए बिना जाता वह ग्राहक पर गुस्सा करता था उसकी इस प्रकार की बोली से लोग कम आते थे जबकि नमन के यहां भीड़ रहती थी। इसीलिए कहते है जैसे गुण होंगे वैसे आपकी प्रसिद्धि होगी। वैसे ही आपकी ओर का आकर्षण बढ़ेंगें।
प्रवचन की धारा को आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है कौआ भी श्याम है कोयल भी काली है परंतु जब कौआ अपने कंठ की कला मानवी को सुनाता है तो लोग उसे सुनना पसंद नहीं करते है जबकि कोयल जब अपने स्वरों को ललकारती तो लोग उसे ध्यान से सुनकर उसी में खो जाते है कारण कोयल में गुण है सूर का-स्वर का।
गद्धा किसी का स्वजन नहीं-घोड़ा भी किसी का रिश्तेदार नहीं फिर भी जब गद्धे पर बैठने के लिए बालक को कहते है तो वह फटाक से मना करता है बल्कि घोड़ा पर बैठने की बात आती है तो तुरंत कोई भी व्यक्ति इंकार नहीं करता क्योंकि घोड़ा में गुण है सवार करने से गौरव बढ़ता है।
कोई व्यक्ति यदि कांटे में हाथ डाले तो तुरंत उसे चुबता है जबकि गुलाब का स्पर्श उसे मुलायम होने से अच्छा लगता है क्योंकि गुलाब में गुण है सौंदर्य-सुकोमलता एवं सुवास इन त्रिवेणी का संगम आपको गुलाब में मिलेगा। पूज्यश्री फरमाते है जिस प्रकार गुलाब में सौंदर्य सुकोमलता एवं सुवास का त्रिवेणी संगम है इसी प्रकार मानवी में कम से कम हरेक में शील स्वभाव एवं सौभ्यता का सुभग संगम होना चाहिए।
एक बार ई.सं. 1893 में अमेरिका में सर्वधर्म परिषद सभा योजाई थी। जिसमें जैन धर्म के प्रतिनिधि के रूप में बरिस्टर वीरचंद राघवजी गांधी थे वैसे हिन्दु विवेकानंदजी का वक्तव्य का क्रम आया तब उन्होंने सहजता से प्रथम वाक्य बोला उसमें वचन की सुशीलता की सुवास टपकती थी। जो शब्द थे  'माय डियर ब्रदर्स एंड माय सिस्टर्सÓ इस प्रथम वाक्य से समस्त संसद इतने आकर्षिक बन गए कि मिनिटों तक हॉल तालीओं के आवाज से गूंजने लगी। इस जबरदस्त प्रतिभाव के सहारे से ही विवेकानंद जी की प्रसिद्धि बढ़ी एवं उन्होंने अपने जीवन में सफलता पाई। इन सब के पीछे का मूल कारण वचन की सुवास ही है।
समस्त जग में एवं लोगों के बीच में अपना स्थान यदि पाना है तो वचन में मीठास जरूर लाना। चेहरा कितना भी सुन्दर होगा, भले ही आपने कीमती वस्त्र पर नहीं जाएगें बल्कि आपके मुख से निकला हुआ उस अमूल्य शब्द को पकड़ेंगे। उस शब्द का जबरदस्त प्रभाव ही लोगों को आपकी ओर खींच लाएगा।
कहते है किसी को आपकी बात में हां में हां मिलाने के लिए भी वचन की कला का उपयोग करना पड़ता है। बस जीवन में गुलाब की सुवास की तरह अपने जीवन में वचनों का सुवास फैलाकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।