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पितरों की मुक्ति के लिए श्रद्धा पूर्वक किया गया कर्म ही श्राद्ध है। हिंदू धर्म में मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पितर पक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है।  लेकिन इसके साथ एक भ्रांत धारणा बनी हुई है कि श्राद्ध या तर्पण का कर्म लड़के या पुरूष ही कर सकते हैं, महिलाएं नहीं। जबकि ऐसा नहीं है गरूण पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा रामायण आदि शास्त्रों के प्रसंगों से ज्ञात होता है कि सनातन धर्म में महिलाओं को भी श्राद्ध करने का अधिकार है। लेकिन कुछ नियमों और परिस्थितियों के अनुरूप। आइए जानते हैं उन नियमों और परिस्थितियों के बारे में...
सनातन धर्म की परंपरा के अनुरूप पिण्डदान, श्राद्ध कर्म या तर्पण आदि विशेष रूप से लड़के या परिवार के पुरूष सदस्य ही करते हैं। लेकिन विशेष परिस्थितियों में परिवार की महिलाओं या पुत्रियों और पुत्रवधुओं को भी श्राद्ध करने का अधिकार प्रदान किया गया है। गरूण पुराण में उल्लेख है कि जिस मृत व्यक्ति का कोई पुत्र, भाई या भतीजा आदि पुरूष रिश्तेदार न हो या वो श्राद्ध कर्म करने की स्थिति में न हो तो ऐसी परिस्थिती में घर की महिलाओं को श्राद्ध करने का अधिकार है। रामायण में सीता जी द्वारा अपने श्वसुर दशरथ जी का गया में श्राद्ध करने का उल्लेख है।
महिलाओं के श्राद्ध करने का नियम : महिलाओं द्वारा श्राद्ध करने के कुछ विशेष नियम हैं। शास्त्रों के अनुसार विशेष परिस्थितियों में भी विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध करने का अधिकार है। महिलाओं को श्राद्घ करते समय सफेद या पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए। महिलाओं को श्राद्ध कर्म में काले तिल और कुश के प्रयोग को वर्जित माना गया है। उन्हें जल से तर्पण कार्य करना चाहिए। तर्पण करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन और दान यथाशक्ति जरूर प्रदान करना चाहिए।