श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म करने के बाद भोजन कराए जाने की परंपरा है। 6 अक्टूबर 2021 को सर्वपितृ अमावस्या है। आओ जानते हैं कि इस दिन किन लोगों को कराना चाहिए भोजन।
गाय : गाय में सभी देवी और देवता निवास करते हैं। अग्निग्रास के बाद गाय को भोजन दिया जाता है। कौए को पितरों का रूप ही माना जाता है। कहते हैं पितर कौए के रूप में आकर भी भोजन ग्रहण कर लेते हैं। कुत्ते को यम का दूत कहते हैं। इसे भी पितरों का रूप माना जाता है।चींटी को भी आटा में शक्कर मिलाकर डालें और इसके साथ ही घर में पितरों के लिए जो भोजन बना है उसे भी अर्पित करें।
मछली : मछली को भी आटा की गोली बनाकर डालें और इसके साथ ही घर में पितरों के लिए जो भोजन बना है उसे भी अर्पित करें।
गरीबों को भोजन कराना सबसे बड़ा पुण्य है। श्राद्ध का भोजन ब्राह्मण भोज के अलावा किसी भूखे या गरीब को भी खिलाना चाहिए। सबसे पहले द्वार आया गरीब या मंदिर के समक्ष बैठे गरीब को यह भोजन खिलाना चाहिए।
ब्राह्मण : इस दिन 16 ब्राह्मण को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण का निर्वसनी होना जरूरी है।घर के जमाई को भोजन खिलाना भी जरूरी है।
कहते हैं कि एक भानेज 100 ब्राह्मणों के बराबर होता है।लड़की का लड़का या लड़की आपकी नाती होती है।
इसके अलावा देवता, पितर, पीपल और अग्नि के लिए अलग से भोजन निकाला जाता है। देवताओं और पितरों के भोग को अग्नि को समर्पित किया जाता है और पीपल के भोग को उस वृक्ष के नीचे रखा जाता है। उपरोक्त सभी से पहले अग्निदेव को अग्निग्रास देते हैं।
जब भी रोटी बनाएं तो पहली रोटी अग्नि की, दूसरी रोटी गाय की और तीसरी रोटी कुत्ते की होती है। पहली रोटी मूल रूप से बहुत ही छोटी बनती है। अंगूठे के प्रथम पोर के आकार की। इस रोटी को अग्नि में होम कर दिया जाता है। अग्नि में होम करते वक्त इसके साथ अन्य जो भी बनाया है उसे भी होम कर दिया जाता है।
पांच तरह के यज्ञों में से एक है देवयज्ञ जिसे अग्निहोत्र कर्म भी कहते हैं, यही देवबलि भी है।
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