अहमदाबाद। चौदह राजलोक में सर्वोत्कृष्ट-सर्वोच्च-सर्वोत्तम लोकोत्तर धर्म यानि जैन धर्म में चार प्रकार की भावनायें बताई गई है मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ। इन भावनाओं को कब, किसके प्रति भानी चाहिए उसका मार्गदर्शन पूर्वाचार्य श्री उमास्वातिजी महाराज तत्वार्थाधिगम सूत्र में बताया गया है।
मैत्री-प्रमोद-कारुणय-माध्यस्थानि सत्त्वगुणाधिक क्लिश्यमाना विनयेषु
अर्थात् मैत्री भावना सर्वजीवों के प्रति, प्रमोद भावना गुणीजनों के लिए, करुणा भावना क्लेशी आत्माओं के प्रति, अविनीत आत्माओं के प्रात: मध्यस्थ भावना रखनी चाहिए।
श्री लब्धि विक्रम गुरूकृपा प्राप्त, प्रखर प्रवचनकार सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने उपस्थित धर्मानुरागी भाविकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि कोई भी जीव के प्रति दुर्भाव तो नहीं ही होना चाहिए बल्कि करुणा भावना का स्त्रोत बहना चाहिए। चिंतन की धारा को कुछ आगे बढ़ाते हुए पूज्यश्री फरमाते है करुणा भावना ही एक ऐसी भावना है। जो जीव मात्र के प्रति फिर चाहे वह पशु-पक्षी हो या कीड़ी-मकोड़ी हो सके प्रति उत्पन्न होती है। इसे एक प्रकार को प्रेम का विस्तृत स्वरुप कहा जा सकता है।
पूज्यश्री श्रोताओं को समझाते है कि अभाव दुर्भाव और तिरस्कार से कभी भी किसी व्यक्ति को बदला नहीं जा सकता लेकिन करुणा से भलभले कठोर ह्रदयी व्यक्ति को पिघाला जा सकता है। क्योंकि करुणा भावना यानि अन्य की वेदना में स्वयं को पीड़ा हो रही हो ऐसी संवेदना होती है। ऐसी ही संवेदना के स्वामि अमेरिका के प्रेसीडेन्ट अब्राहम लिंकन एक बार कहीं जा रहे थे तो रास्ते में एक कुत्ते को कीचड़ से भरे खड्डे में फंसा हुआ देखा। वह बिचारा कुत्ता स्वयं को बचाने के लिए जितना बहार निकलने का प्रयास कर रहा था उतना ही उसमें फंसता जा रहा था। सतत प्रयत्न करने के बावजूद उसे निष्कलता ही प्राप्त हो रही थी और साथ ही वेदना भी बढ़ रही थी। वेदना बढ़ती जा रही थी तो उस लाचार कुत्ते की चीस भी भयंकर वेदना युक्त थी। यह देखकर अब्राहम लिंकन का दिल द्रवित हो उठा। वे स्वयं किसी फंक्शन में मुख्य अतिथि के स्वरूप में जा रहे थे फिर भी वह सब सोचे बिना करुणामय लिंकनजी ने उस अबोल लाचार कुत्ते को कीचड़े से बहार निकाला। इस प्रक्रिया के दौरान उनके कपड़ों पर कीचड़ के छांटे उछले और कपड़े गंधे हो गए। उन्हीं कपड़ों में वे फंक्शन में पधारे। किसी व्यक्ति ने उनको पूछ लिया कि कुत्ते को बचाया वो ठीक है। लेकिन कम से कम कपड़े तो बदल लेने चाहिए ना? उन्होंने कहा कपड़े भले कैसे भी हो लेकिन मुझे उस मासूम कुत्ते को बचाने का अनहद आनंद है।
ऐसे पशुओं के प्रति भी करुणा का स्त्रोत बहाने वाले श्री लिंकनजी वाक्य में वंदनीय है। वे यदि अपने गाड़ी के ़ड़्राईवर को कहते तो भी काम हो जाता लेकिन स्वयं में उपन्न हुई संवेदना, करुणा भावना ने उन्हें यह करने पे मजबूर बनाया। पूज्यश्री तो कहते है कि प्रेम ही करुणा है, करुणा ही प्रेम है। ऐसी परम पवित्र करुणा भावना द्वारा आत्मा को भाक्ति बनायें यही शुभ भावना।
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