न्यूज डेस्क (समवेत शिखर)। शक्ति की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्रि शनिवार से आरंभ हो गया है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की आराधना और घटस्थापना की जाएगी। शनिवार 17 अक्तूबर के दिन तीन महत्वपूर्ण शुभ मुहूर्त में आप कलश की स्थापना कर सकते हैं। इस बार शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सर्वार्थसिद्धि और तीन राजयोग बन रहा है। इस शुभ योग में नवरात्रि का शुभारंभ बहुत ही शुभ रहने वाला होगा। बार नवरात्रि 2020 में नवमी तिथि 24 अक्तूबर और 25 अक्तूबर दो दिन रहेगी।
घट स्थापना के शुभ मुहूर्त
पहला शुभ मुहूर्त- 17 अक्तूबर की सुबह 06:27 बजे से 10:13 बजे तक वृश्चिक स्थिर लग्न मुहूर्त है। आप इस शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना कर देवी दुर्गा की उपासना शुरू कर सकते हैं। इससे आपको माता रानी सुख, समृद्धि और वैभव का आशीर्वाद प्रदान करेंगी।
दूसरा शुभ मुहूर्त- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दिन का अभिजित मुहूर्त किसी भी शुभ कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना गया है। 17 अक्तूबर को अभिजित मुहूर्त सुबह 11:36 से दोपहर 12:24 तक है। ऐसे में इस मुहूर्त में घट स्थापना करके सौभाग्य और संपन्नता का फल प्राप्त कर सकते हैं।
तीसरा शुभ मुहूर्त- अगर आप किसी कारणवश ऊपर के दो मुहूर्तों में घट स्थापना नहीं कर पा रहे हैं तो दोपहर 2:26 से शाम 4:17 तत के कुंभ लग्न में कलश स्थापना कर सकते हैं।
चौघड़िया शुभ मुहूर्त
शुभ- सुबह 8:00 से 9:30 तक
चर- दोपहर 12:30 से 2:00 तक
लाभ- दोपहर 2:00 से 3:30 तक
अमृत- दोपहर 3:30 से शाम 5:00 तक
देवी का आगमन और खरीदारी का शुभ मुहूर्त
शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्लपक्ष प्रतिपदा का आरम्भ शनिवार को चित्रा नक्षत्र तथा चंद्रमा के तुला राशि के गोचर काल के समय में हो रहा है। शनिवार के दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा होने से माँ दुर्गा का वाहन अश्व होगा और प्रस्थान भैंसे की सवारी पर होगी। 17 अक्तूबर को नवरात्रि पर रवियोग, त्रिपुष्कर और सर्वार्थसिद्धि जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं। ऐसे में शुभ कार्य का आरंभ करना और खरीदारी करना शुभ रहेगा।
घटस्थापना विधि
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर सुबह शुभ मुहूर्त को ध्यान में रखते हुए घर के उत्तर-पूर्व दिशा में कलश स्थापना के लिए उपयुक्त होती है। इसके लिए घर के उत्तर-पूर्वी हिस्से में अच्छे से साफ-सफाई करनी चाहिए। घटस्थापना वाले स्थान को गंगा जल से स्वच्छ करें और जमीन पर साफ मिट्टी बिछाएं, फिर उस साफ मिट्टी पर जौ बिछाएं। इसके बाद फिर से उसके ऊपर साफ मिट्टी की परत बिछाएं और उस मिट्टी के ऊपर जल छिड़कना चाहिए। फिर उसके ऊपर कलश स्थापना करनी चाहिए।