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अहमदाबाद। वर्तमान में मनुष्य जीवन जीना ही जैसे भूल गए हो ऐसा प्रतीत होता है। जीवन तो ऐसा होना चाहिए, जिसमें शांति, संतोष और प्रगति इन तीनों का सामंजस्यपूर्ण संतुलन हो। परंतु आज की दिखती प्रगति वो शायद प्रगति तो होगी लेकिन वास्तविक शांति, और संतोष का पूर्ण अभाव है।
प्रशांत मूर्ति, अनन्य प्रभु भक्त, अपूर्व भक्ति रस में रमण करने वाले, सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ. देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. उपस्थित धर्मानुरागी आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया कि वर्तमान के भौतिकवाद युग में जी रहे मनु,्य भौतिक प्रगति द्वारा शांति प्राप्त करने का प्रयत्न करता है परंतु वह इस प्रयत्न में सफल नहीं हो रहा क्योंकि शांति तो भीतर से ही उत्पन्न होती है, प्रगति बाह्य प्रयास है। अत: दोनों का कोई मेल नहीं है। मनुष्य में सत्य, संतोष, प्रेम, सहयोग, सहकार, करुणा, उदारता जैसे गुण हो तो वह प्रतिकूल परिस्थिति में भी सहिष्णु बनकर उसका सामना कर पायेगा। भौतिक चीजों में सुख-शांति को ढूंढने के प्रयास से मनुष्य व्याकुल बनता जा रहा है। इस कारण से उसकी मन: स्थिति भी विकृत होती जा रही है और उसकी बुद्धि एवं विवेक भी अव्यवस्थित होती जा रही है।जब जो धून मन में सवार हो जाये उसमें चित्त अत्यंत वेग से, तीव्र गति से गतिमान होता है।
पूज्यश्री फरमाते है कि मन में क्या धून सवार करना वो अपने हाथ में है। किसी को धन कमाने की धून लगी है तो किसी को सुख की सामग्री इकट्ठा करने की धून लगी है, किसी को संशोधन की धून लगी है तो किसी को आराधना की धून लगी है। अहमदाबाद राजनगर के नगर शेठ श्रेष्ठीवर्य श्री भक्कम भाई को सुकृतों की धून लगी । अनेक प्रकार के सुकृत तथा अनुपम आराधना करके कुछ दिनों पूर्व परलोक प्रयाण किया। उनकी पुण्य स्मृति में उनके सुपुत्र श्री देवलभाई शेठ ने पूज्यश्री की मंगलमयी मिश्रा में नवकार महामंत्र का भव्य अनुष्ठान का आयोजन किया। अनुष्ठान के अंतर्गत पूज्यश्री ने उपस्थित भाविकों को नवकार महामंत्र का अनुपम प्रभाव तथा नवकार के स्मरण से जाप से प्राप्त होती सिद्धि के विषय में समझाया। भूतकाल में भी इस महामंत्र के स्मरण मात्र से सर्प फूलमाला में परिवर्तित हुई और श्रीमती श्राविका मृत्यु के मुख से फूलमाला में परिवर्तित हुई और श्रीमती श्राविका मृत्यु के मुख से बहार निकल आई। यह कोई कथा नहीं बल्कि सत्य घटना है। नवकार महामंत्र का प्रभाव अनूठा ही है। अत: पूज्यश्री ने उपस्थित सर्व श्रावक-श्राविकाओं को कोई भी चीज खाने के या पीने के पूर्व नवकार स्मरणकरने की पावन प्रेरणा दी। नवकार  के स्मरण से विश्व का कोई भी परबिल हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता। नवकार में बताये गए पंच परमेष्ठि को भावपूर्वक नमस्कार करने का फल भी इसी में बताया गया है। वो सर्व पापों को दूर करने वाला महाप्रभाविक, सत्वशाली, अचिंत्य महिमा निधि, चौदह पूर्वों का सार श्री नमस्कार महामंत्र सर्व मंगलों में प्रथम मंगल है। जो पुण्यात्मा इस महामंत्र का नौ लाख बार जाप करे उसे थिर्यंच और नरक गति में नहीं जाना पड़ता।
पूज्यश्री फरमाते है कि जिसे नवकार पे श्रद्धा आस्था हो उसे ही चमत्कारों का अनुभव होता है। वर्तमान काल में भी इसका प्रयोग करने वाले अनेकानेक आत्माएं है। श्री भक्कम भाई शेठ को सुकृतों की धून लगी कैसे? उनके पूर्वजों के संस्कार से, चौदह-चौदह पीढिय़ों से परिग्रह परिणाम व्रत ग्रहण करने वाले पूर्वजों द्वारा संस्कारों की परंपरा को भी बखूबी आगे बढ़ाया आगे बढ़ाया गया। फलस्वरूप श्रेष्टीवर्य ने भी अपना जीवन शासन को समर्पित किया। इस पुण्यशाली परिवार ने शत्रुंजय गिरिराज पर स्थित श्री विमलनाथ प्रभु के भव्य जिनालय का अनुपम जीर्णोद्धार करवाया, आबू-अचलगढ़ तीर्थ में प्रतिमाजी भराने का लाभ लिया और सुपात्र दान तो उनका सविशेष प्रिय सुकृत था। उनकी स्मृति में अब उनका कार्यभार उनके ही सुपुत्र श्री देवलभाई शेठ संभाल रहे है। प्रभु की कृपा से, गुरूदेव के आशीर्वाद से तथा शासन देवों के सहाय से वे भी अपने पिताश्री की तरह शासन की अद्भुत सेवा में आगे बढ़ सके और हम सब मिलकर पुण्यशाली आत्मा की स्मृति में नवकार महामंत्र का जाप भावपूर्वक कर सकें ऐसे देवाधिदेव से मंगलमय प्रार्थना।