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मुंबई। मानवी के शरीर के अंग जैसे कि हाथ-पैर एवं मुंह ऐसे अंग है जो हमारे प्रतिक्षण-प्रतिपल काम आते हैं। इन तीनों के बगैर आहार-विहार की क्रिया शक्य नहीं, घूमना फिरना भी इन तीनों के बगैर शक्य नहीं, देखने-सुनने में भी इन तीनों की आवश्यकता होती ही है। इसी तरह वाणी विचार एवं वर्तन भी मानवी के सहवर्ती है। इनका भी उपयोग मानवी को प्रतिक्षण काम आता है। विचार के बिना मानवी का मन किसी काम का नहीं है। वाणी का उपयोग भी मानवी के जीवन के छोटे बड़े व्यवहारों में करना ही पड़ता है। इसी तरह वर्तन का उपयोग भी हर पल अच्छे अथवा तो पूरे प्रसंगों में भी हम करते रहते हंै।
मुंबई में बिराजित प्रखर प्रवचनकार संत मनीषि, प्रसिद्ध जैनाचार्य प.पू. राजयण सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते हैं कि विचार-वाणी एवं वर्तन इन तीनों में से वर्तन को किस प्रकार से उत्तम बनाना अपने व्यक्त्वि के प्रकाश के लिए पूज्यश्री तीन उत्तम बात बताते है वे हैं सरल बनना-सच्चा बनना एवं सरस (अच्छा) बनना।
पूज्यश्री प्रथम सरल बनना इस विषय पर प्रकाश डालते हुए फरमाते है कि सरलता, वह जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है, जहां सरलता होती है वहां अल्प शक्ति संपन्न व्यक्ति भी पूज्यों के कृपा पात्र एवं प्रीति पात्र बनते हैं। सरल व्यक्ति के विचारों एवं व्यवहार भी निर्दंभता तथा सरलता के कारण ही अच्छे होते हंै। कहते है जहां सरलता नहीं उस व्यक्ति के विचार वर्तन भी अच्छे नहीं होते है। इसी संदर्भ में एक खातेदार घटना पूज्यश्री बताते है। एक छोटे से गांव में 80 वर्ष की एक बूढ़ी स्त्री रहती थी। उसके शरीर पर झुर्री पड़ गई थी तथा कमर से शरीर झुक गया था। ऐसी हालत में वह बड़ी मुश्किल से कहीं जा रही थी। उसी समय आकाश में एक देव विमान जा रहा है। देव विमान में बैठी हुई देवी उस वृद्धा स्त्री की हालत देख रही थी। उसे दया आई, तुरंत ही उसने अपने स्वामी देव से कहा कि आपके पास इतनी समृद्धि एवं शक्ति है तो आप इस वृद्धा स्त्री के दु:ख को दूर करे। देवी की बात सुनकर देव तुरंत उस स्त्री के पास आया और कहा मांजी! आप चिन्ता मत करो अभी आपके इस दु:ख को दूर करता हूं। देव कुछ करे इसके पहले ही मांजी ने कहा, भैया! आपके पास शक्ति है तो आप एक काम करे। मेरे शरीर की चिन्ता को छोड़ दो। मैं अपने इस दर्द को सहन कर लूंगी। मुझे तो अब सिर्फ चार पांच साल ही निकालता है। आप मुझे खुश करना ही चाहते हो तो एक काम करें। इस गांव के सभी युवान हष्ट पुष्ट शरीर वाले है, आप इनके शरीर को वक्र कर दो।. क्या? देव आश्चर्य से बोले ऐसा क्यों? ये लोग मेरी हंसी मजाक करते हैं। मैं इन लोगों को पाठ सिखाना चाहती हूं। मेरा शरीर अच्छा हो जाए इससे बेहतर औरों का शरीर खराब हो मुजे ऐसे रस है। देव इस बात को सुनकर  अदृश्य हो गया। 
पूज्यश्री फरमाते हैं कि सरलता का जहां अभाव हो वहां विचारों एवं वर्तन में ऐसी ही कुटिलता आती है। ऐसी कुटिल वृत्ति से बचने के लिए हमें हमारे जीवन में सरलता को मिलाना है। वर्तन को उत्तम बनाने की दूसरी प्रक्रिया सच्चा का इस कलियुग में सच्चा बनना दुष्कर है। सच्चाई आज सिर्फ सोने चांदी में ही नहीं होती बल्कि प्रेम में भी सच्चाई मिलाना दुर्लभ है। धर्म क्रियाएं भी शुद्ध मनमें होती है। कहते है जीवन में जो भी शुभ अवृत्ति को उस शुद्ध मन से सच्चे अंत: करण पूर्वक करना चाहिए।
 वर्तन को उत्तम बनाने की तीसरी प्रक्रिया सरल (अच्छा) अच्छा बनना याने सौंदर्यशाली बनना अथवा तो फैशनवाले कपड़े पहनना ऐसा नहीं बल्कि स्मित सुख रखना। रास्ते में चलते फिरते कोई व्यक्ति हमें मिल जाए तो हमारे मुख से स्मित की जलक दिखनी चाहिए तभी हमारी पहचान अच्छे व्यक्ति में गिनी जाएगी।पूज्यश्री फरमाते है आप सभी भी अपने जीवन वर्तन को उत्तम बनाने की त्रिपदी सरल बनो, सच्चा बनो सरल (अच्छा) बनकर शीघ्र आत्मा से परमात्मा बनें।