अहमदाबाद। कोई भी मंजिल में पहुंचना हो तो पुरुषार्थ तो करना ही पड़ता है। एक मकड़े को अपनी जाल बनाने में कितना पुरूषार्थ कहना पड़ता है। वैसे सिद्धि हासिल करने के लिए भी प्रबल पुरूषार्थ करना अनिवार्य है।
श्री लब्धि-विक्रम गुरुकृपा प्राप्त, मौलिक चिंतक सुप्रसिद्ध जैनाचार्य, गीतार्थ गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयशसूरीश्वरजी म.सा. ने विशाल संख्या में उपस्थित धर्मानुरागी आराधकों को संबोधित करते हुए फरमाया है कि मोक्ष मंजिल तक पहुंचने के लिए तप रुपी साधना का सहारा लेना पड़ता है। तप की व्याख्या करते हुए पूज्यश्री ने फरमाया तुरंत मोक्ष पहुंचाये ऐसा यह तप धर्म है। काया को कष्ट तो होता है लेकिन आंतरिक प्रसन्नता, प्रशांति की प्राप्ति होती है। तप से कर्मों की निर्जरा होती है मोक्ष में जाने के लिए पुण्य-पाप दोनों का बैलेंस जीरो होना चाहिए। तप पद की आराधना अनेक प्रकार से ही सकती है। व्रत-पच्चक्खाण और नियम लेने द्वारा तप करने की अपूर्व शक्ति मिलती है। शास्त्रकार भगवंत फरमाते है कि परम कृपालु दया के सागर परमात्मा ने विविध प्रकार के तप बताये है। प्रत्येक आत्मा की शक्ति भिन्न होती है अत: उसके मुताबिक आराधना करें। कोई आराधना से वांछित ना रहे इसलिए यह उपाय बताया गया है।
बाह्रय-अभ्यंतर दो भेद बताये है कुल बारह प्रकार के तप है। बाह्रय तप यानि शरीर संबंधी अर्थात् उपवासादि, अनशन, रस त्याग, कायक्लेश संलीनता ऊनोदरी, वृत्ति संक्षेपादि बाह्य तप के प्रकार है तो प्रायश्चित, विनय, वैयावच्च, स्वाध्याय, कायोत्सर्ग तथा ध्यानादि अभ्यंतर तप के प्रकार के है। कोई भी प्रकार के विरति के पच्चक्खाण ग्रहण करना यानि तप पद की आराधना। इसी संदर्भ में एक युवक की स्मृति हो आती है। वह युवक मेहनत से महीने के हजार रुपए कमाता था। उसकी माताजी की शत्रुंजय यात्रा करने की उत्कृष्ट भावना थी परंतु शक्ति नहीं होने के कारण नहीं करवा पा रहा था। एक बार उसके सेठजी उस पे खुश हुए और उसकी सैलरी से अधिक रुपए उसे दिये। उस दिन घर गया और मां के आशीर्वाद लेकर सीधा ट्रेन की टिकट लेने पहुंच गया। दूसरे दिन मां को लेकर निकल पड़ा। माता को यात्रा करवाई, फिर वहां रसोड़ा खोला-सुपात्र दान का अनुपम लाभ लिया। प्रतिदिन उसके यहां अनेक श्रमण-श्रमणी भगवंत गोचरी वहोरने पधारते। एक साधू भगवंत ने अपनी दीर्घ दृष्टि से उस युवक को परख लिया और कहा, तेरे भव इतने शुभ और शुद्ध है। अत: तेरे सर्व संकल्प पूर्ण होंगे। तू संकल्प कर कि डेढ़ लाख से अधिक रुपए कमा लो तो उन पैसों को धर्म मार्ग में सद्व्यय करना तथा ेक भव्य संघयात्रा निकालना। तब तो उस युवक के लिए यह सपना जैसा ही था। अत: उसने भी हाथ जोड़कर नियम लिया। कुछ वर्ष बाद उनकी कमाई खूब अच्छी हुई और पू. गुरूदेव विक्रमसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में आयोजित सिकंद्राबाद से पालिताणा की सुदीर्घ छ री पालित संघ के संघपति बनें। यह युवक और कोई नहीं बल्कि संघवी श्री इंद्रमलजी धोका थे।
नियम के प्रभाव से इतिहास का सर्जन कर पाये। बस ऐसे आलंबन लेकर शुभ भावनाओं द्वारा आत्मा को भावित बनाकर उत्कृट आराधना करें। तप के बारह प्रकार में से कोई भी प्रकार की आराधना करें, भीतर रहे हुए कषायों को नष्ट कर शीघ्र कर्म क्षय द्वारा परमात्मा बने यही मंगल कामना।
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