नई दिल्ली। विश्व मुक्केबाजी के चैंपियनशिप के फाइनल में भारतीय मुक्केबाज निकहत जरीन ने 52 किलोग्राम भारवर्ग में थाईलैंड की जितपोंग जुटामेंस को एकतरफा अंदाज में 5-0 से हरा दिया। इसके साथ ही निकहत भारत की पांचवीं महिला मुक्केबाज बन गईं, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। विश्व चैंपियनशिप का फाइनल भले ही उन्होंने एकतरफा अंदाज में जीता हो, लेकिन यहां तक का सफर तेलंगाना की मुक्केबाज के लिए आसान नहीं रहा है। अपने करियर की शुरुआत से ही उन्हें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
निकहत ने जब मुक्केबाजी में अपना करियर बनाने का फैसला किया था, तब उनके पिता ने कहा था कि बॉक्सिंग महिलाओं के लिए नहीं है, समाज यही सोचता है और यह पुरुषों का खेल है। इसके बाद निकहत ने अपने पिता की बात गलत साबित करने की ठानी और अब वो ऐसा कर चुकी हैं।
मैरी कॉम के क्लब में शामिल हुईं निकहत
निकहत से पहले दिग्गज एम सी मैरीकॉम ने 2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018 में खिताब जीते थे। इसके अलावा 2006 में सरिता देवी, जेनी आर एल और लेखा केसी ने अपने-अपने भारवर्ग में स्वर्ण पदक जीता था।
ट्रायल के लिए किया संघर्ष
निकहत जरीन दिग्गज बॉक्सर मैरीकॉम के साथ विवाद को लेकर चर्चा में आई थीं। विश्व चैंपियनशिप में मैरकॉम को लगातार अच्छे प्रदर्शन के चलते चुन लिया गया था और निकहत जरीन को ट्रायल देने का मौका नहीं मिला था। इसके बाद टोक्यो ओलंपिक में भी यही प्रकिया अपनाई गई। इसके खिलाफ निकहत ने आवाज उठाई और तत्कालीन खेल मंत्री किरण रिजीजू को पत्र लिखा और न्याय की मांग की। इस पर मैरी कॉम ने कहा कि निकहत जरीन कौन हैं।
इस पर निकहत जरीन ने कहा था "बचपन से ही मैरी कॉम मेरे लिए बड़ी प्रेरणा रही हैं। इस प्रेरणा के साथ सबसे बड़ा न्याय यही होगा कि मैं उनके जैसी बड़ी बॉक्सर बनूं। मैरी कॉम इस खेल में इतनी बड़ी दिग्गज हैं, उन्हें किसी मैच से बचने की जरूरत नहीं है और ना ही उन्हें ओलंपिक क्वालीफिकेशन बचाने की जरूरत है।"
इस घटना के बाद मैरी कॉम और निकहत के बीच ट्रायल मैच हुआ, जिसे निकहत 1-9 के अंतर से हार गईं। इस मैच के बाद उन्होंने निकहत से हाथ नहीं मिलाया। निकहत ने उनके गले लगने की कोशिश की, लेकिन मैरी कॉम ने मना कर दिया। यह सब देखकर निकहत की आंखों में आंसू आ गए।
जूनियर विश्व कप में कमाल करने के बाद एक मैच के दौरान जरीन के कंधे में चोट लगी थी और वो लगभग एक साल तक रिंग में वापसी नहीं कर सकीं। इसके बाद उन्होंने सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता और बेलग्रेड अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप भी अपने नाम की। अगला साल उनके लिए और शानदार रहा। उन्होंने यूरोप के सबसे पुराने अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग इवेंट स्ट्रान्दजा मेमोरियल में स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद थाइलैंड ओपन में रजत पदक, लेकिन इंडिया ओपन में मैरी कॉम से हार गईं।
2022 में किया कमाल
साल 2022 में निकहत ने शानदार खेल दिखाया। वो स्त्रान्दजा मेमोरियल में दो स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय मुक्केबाज बनीं। इस दौरान उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली मुक्केबाज को भी पराजित किया। इसके बाद विश्व चैंपियनशिप में अपने सभी मैच एकतरफा अंदाज में जीतते हुए उन्होंने भारत को चार साल बाद स्वर्ण पदक दिलाया।
माता-पिता को दिया सफलता का श्रेय
विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद निकहत ने कहा "ये सब कुछ मेरे माता-पिता के समर्थन की वजह से संभव हो सका। मुश्किल समय में वो मेरे साथ खड़े रहे। मेरी चोट ने मुझे मजबूत बनाया। मैंने पिछले दो सालों में हार मानने की बजाय लड़ने का फैसला किया और अपनी कमजोरियों पर काम किया। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए प्रतिबद्ध थी।"