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0 मुख्यमंत्री बघेल ने की छेरापहरा की रस्म से श्री जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरूआत

0 मुख्यमंत्री ने श्री जगन्नाथ मंदिर में पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि की कामना की

रायपुर/बिलासपुर/जगदलपुर/। राजधानी रायपुर में शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा धूमधाम से मनाने की तैयारी शुरू हो गई है। राज्यपाल अनुसुईया उईके भगवान जगन्नाथ को प्रथम सेवक के रूप में रथ तक लेकर पहुंची हैं। इस दौरान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छेरापहरा की रस्म की और स्वर्ण झाड़ू से रास्ता साफ किया। इससे पहले मुख्यमंत्री बघेल ने यहां गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर में छेरापहरा की रस्म पूरी कर सोने की झाड़ू से बुहारी लगाकर रथ यात्रा की शुरुआत की। इसके पहले मुख्यमंत्री ने यज्ञशाला के अनुष्ठान में सम्मलित हुए और हवन कुण्ड की परिक्रमा कर पूजा-अर्चना की। उन्होंने श्री जगन्नाथ मंदिर में महाप्रभु जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की आरती की। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मंदिर में पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की सुख, समृद्धि और खुशहाली तथा प्रदेश में अच्छी बारिश की कामना की। मुख्यमंत्री का मंदिर में पगड़ी पहनाकर समिति ने स्वागत किया गया था।

गायत्री नगर में पुरी की ही तरह रथों को सजाया गया है। भगवान इसकी सवारी करेंगे। महाप्रभु के महापर्व से जुड़ी छटा देखने को मिलेगी। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और बस्तर सहित कई जिलों में भी पुरी की तर्ज पर भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाएगी। बिलासपुर में 16 फीट लंबा, 17 फीट ऊंचा और 12 फीट चौड़ा रथ बनाया गया है। बस्तर में भी भगवान जनकपुरी स्थित गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर जाएंगे।

रायपुर में आयोजन समिति ने गायत्री नगर में तीन रथ तैयार करवाए हैं। इसी तरह पुरी में भी रथ यात्रा निकलती है। जिस रथ में जगन्नाथ विराजेंगे उसे 'नंदीघोष कहा जाता है। भाई बलराम जी के रथ का नाम ‘तालध्वज’ है,बहन सुभद्रा जी ‘दर्पदलन’ रथ पर सवार होती हैं। ये तीनों रथ शुक्रवार को लोगों के दर्शन के लिए मौजूद रहेंगे।

यहां भगवान के लिए पुरी से आती है जड़ी बूटियां
मान्यता के मुताबिक गायत्री नगर के जगन्नाथ मंदिर में स्नान पूर्णिमा के बाद से ही बीमार हैं। पिछले करीब 15 दिनों से भगवान जगन्नाथ को काढ़ा दिया जा रहा था। इसके लिए जगन्नाथ पुरी और ओडिशा के नरसिंह नाथ से जड़ी-बूटियां हर साल रायपुर आती हैं। इसी से बने काढ़े का भोग भगवान को लगता है।

शहर में करीब 10 रथ निकलेंगे
टुरी हटरी, पुरानी बस्ती स्थित 500 साल पुराने जगन्नााथ मंदिर में महंत रामसुंदर दास के नेतृत्व में अभिषेक, हवन-पूजन के बाद दोपहर बाद रथयात्रा निकाली जाएगी। दोपहर 2:30 बजे भगवान जगन्नाथ जी, माता सुभद्रा और बलदाऊ जी रथ पर विराजित होंगे। इसके बाद लोहार चौक, पुरानी बस्ती थाना, कंकालीन तालाब, तात्या पारा चौक, आजाद चौक, आमापारा चौक होते हुए लाखे नगर चौक तथा टिल्लू चौक पहुंचेंगे। यहां भगवान जनकपुर में विश्राम करेंगे। सदरबाजार स्थित 150 साल पुराने जगन्नााथ मंदिर में पुजारी परिवार के नेतृत्व में पूजन के बाद गाजे-बाजे के साथ यात्रा निकाली जाएगी। यात्रा कोतवाली चौक, कालीबाड़ी होते हुए टिकरापारा पुजारी पार्क के समीप गुंडिचा मंदिर में समाप्त होगी। इसके अलावा कोटा स्थित श्रीरामदरबार परिसर, अश्विनी नगर, गुढ़ियारी, आकाशवाणी कालोनी, पुराना मंत्रालय, लिली चौक और आमापारा नगर निगम कालोनी से और बढ़ई पारा से भी दिन भर रथ यात्राएं निकलेंगी।

उल्लेखनीय है कि भगवान जगन्नाथ ओडिशा और छत्तीसगढ़ की संस्कृति से समान रूप से जुड़े हुए हैं। रथ-दूज का यह त्यौहार ओडिशा की तरह छत्तीसगढ़ की संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है। छत्तीसगढ़ के शहरों में आज के दिन भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। उत्कल  संस्कृति और दक्षिण कोसल की संस्कृति के बीच की यह साझेदारी अटूट है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान छत्तीसगढ़ का शिवरीनारायण-तीर्थ है। यहीं से वे जगन्नाथपुरी जाकर स्थापित हुए। शिवरीनारायण में ही त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने माता शबरी के मीठे बेरों को ग्रहण किया था। यहाँ वर्तमान में नर-नारायण का मंदिर स्थापित है। शिवरीनारायण में सतयुग से ही त्रिवेणी संगम रहा है, जहां महानदी, शिवनाथ और जोंक नदियों का मिलन होता है। छत्तीसगढ़ में भगवान राम के वनवास-काल से संबंधित स्थानों को पर्यटन-तीर्थ के रूप में विकसित करने के लिए शासन ने राम-वन-गमन-परिपथ के विकास की योजना बनाई है। इस योजना में शिवरीनारायण भी शामिल है। शिवरीनारायण के विकास और सौंदर्यीकरण से ओडिशा और छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक साझेदारी और गहरी होगी। छत्तीसगढ़ में भगवान जगन्नाथ से जुड़ा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र देवभोग भी है। भगवान जगन्नाथ शिवरीनारायण से पुरी जाकर स्थापित हो गए, तब भी उनके भोग के लिए चावल देवभोग से ही भेजा जाता रहा। देवभोग के नाम में ही भगवान जगन्नाथ की महिमा समाई हुई है।

बिलासपुर : 101 मीटर लंबी रस्सी से रथ को खीचेंगे भक्त
बिलासपुर‎ में सुबह 5.30 बजे‎ मंगल आरती हुई। इसके बाद सुबह 6.30 बजे‎ सूर्य पूजा, 7 बजे द्वारपाल पूजा, 7.30‎ बजे नवग्रह पूजा, 7.30 से 10 बजे‎ तक हवन कर महाप्रसाद‎ अर्पित किया जा रहा है। दोपहर में पहंडी भीज होगा।‎ इसके बाद भगवान का अह्वान किया‎ जाएगा। फिर छेरा पहरा की रस्म होगी।‎ इसके बाद भगवान रथ पर संवार होंगे।‎ दोपहर 2 बजे भगवान का रथ 101‎ मीटर की रस्सी से भक्त खीचेंगे। भक्त‎ भगवान को पूरा शहर भ्रमण कराएंगे।‎
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की‎ यह परंपरा 104 साल पुरानी है। शहर के तीन मंदिरों से रथयात्रा निकलकर व्यंकटेश‎ मंदिर पहुंचती है। शाम 4 बजे सदर बाजार स्थित पारासर मंदिर, गोंड़पारा दर्जी‎ मंदिर, जूना बिलासपुर स्थित राधा-कृष्ण मंदिर से शोभायात्रा निकलेगी। व्यंकटेश‎ मंदिर पहुंचेगी। यहां पूजा-अर्चना होगी। भगवान को भोग लगाया जाएगा। 9 जुलाई को‎ भगवान की घर‎ वापसी के लिए‎ बहुड़ा यात्रा‎ निकलेगी।

जगदलपुर : 615 साल पुरानी है रथ निकालने की परंपरा
बस्तर में 615 सालों से चली आ रही है परंपरा लगातार जारी है। जगन्नाथ‎ पुरी के बाद बस्तर में ही गोंचा महापर्व में विशाल रथयात्रा निकाली जाती है।‎ शुक्रवार को तीन रथ निकलेंगे, जिसमें इस साल एक रथ, जिस पर भगवान‎ जगन्नाथ आरूढ़ होंगे, नया बनाया गया है। जबकि बाकी दूसरे दो रथ पिछले‎ साल के हैं, जिनमें बहन सुभद्रा और भ्राता बलभद्र सवार होंगे।‎  बस्तर का इतिहास भी भगवान जगन्नाथ से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। सन् 1408 में बस्तर के राजा पुरुषोत्तमदेव ने पुरी जाकर भगवान जगन्नाथ से आशीर्वाद प्राप्त किया था। उसी की याद में वहां रथ-यात्रा का त्यौहार गोंचा-पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार की प्रसिद्धि पूरे विश्व में है। उत्तर-छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के पोड़ी ग्राम में भी भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। वहां भी उनकी पूजा अर्चना की बहुत पुरानी परंपरा है।

ओड़िशा की तरह छत्तीसगढ़ में भी भगवान जगन्नाथ के प्रसाद के रूप में चना और मूंग का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रसाद से निरोगी जीवन प्राप्त होता है। जिस तरह छत्तीसगढ़ से निकलने वाली महानदी ओडिशा और छत्तीसगढ़ दोनों को समान रूप से जीवन देती है, उसी तरह भगवान जगन्नाथ की कृपा दोनों प्रदेशों को समान रूप से मिलती रही है।

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